जब योगी की कारों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाता था मुख्तार अंसारी, पिस्टल के साथ इंटरव्यू देता था अंसारी
मुंबई– एक दौर में उत्तर प्रदेश के अखबार मुख्तार अंसारी के कारनामों से रंगे होते थे। इसमें खौफ और उसके दहशत की कहानी होती थी। चाय के नुक्कड़ तक यही चर्चा होती थी। पूर्वांचल के माफिया डॉन अंसारी के लिए यह विश्वास करना मुश्किल हो रहा है कि जिस साम्राज्य को उसने डर और दहशत के बल पर खड़ा किया था, उस पर एक दिन बुल्डोजर चलेगा। यह बुल्डोजर चलाने वाला कोई और नहीं, बल्कि वह शख्स होगा, जिसका रास्ता कभी उसके गुंडे रोक देते थे।
कहते हैं वक्त किसी का नहीं होता है। 2005 में मऊ में दंगे हुए थे। सबको पता था कि दंगे किसने कराए, पर कोई डर से बोलने को तैयार नहीं होता था। उस दौरान गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने चुनौती दी थी कि वे मऊ आकर पीडि़तों को इंसाफ दिलाएंगे। लेकिन उन्हें मऊ के दोहरीघाट पर रोक दिया गया। 2008 में जब योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ जा रहे थे तब उनके कार पर तो़ड़ फोड़ की गई थी और आगजनी भी हुई थी। योगी का आरोप था कि मुसलिम पक्ष गोलियां चला रहा था और पुलिस मौन बनी थी। यानी सत्ता और अपराध का गठबंधन मजबूत था।
साल 2005 में जब मुख्तार अंसारी जेल मेँ था, तब उसने भाजपा के नेता कृष्णानंद राय को खुली सड़क पर मरवा दिया था। एके 47 से करीबन 400 गोलियां चली जिसमें कृष्णानंद राय सहित 7 लोग मारे गए और उन सातों पर 67 गोलियों के निशान थे। एफआईआर तो दर्ज हुई, लेकिन एसपी ने कुछ भी करने से इस मामले में इनकार कर दिया। बहुत दबाव के बाद सीबीआई ने मामला तो दर्ज किया, लेकिन मुख्तार अंसारी की डर से सीबीआई ने इस केस को ही छोड़ दिया। कृष्णानंद राय की पत्नी ने दोबारा फिर एफआईआर दर्ज कराई और 2006 में इसकी जांच फिर शुरू हुई। इसमें एक गवाह थे कृष्णानंद राय के भाई शशिकांत जिनकी हत्या कर दी गई। पुलिस ने इस फाइल को आत्महत्या करार देकर बंद कर दिया।
इसे हम थोड़ा पीछे से देखते हैं। बात 1980 की है। छात्रों की एक दुकानदार से बहस हो गई और दुकानदार ने उस समय पिस्टल निकाल ली। उस समय छात्रों में से एक छात्र एसएसपी के घर की दिवार पर चढ़ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। यही छात्र बाद में जाकर योगी आदित्यनाथ बना। उस समय हरिशंकर तिवारी और विरेंद्र शाही की तूती बोलती थी। उस समय गोरखपुर की गुंडों की कहानी रोज बीबीसी पर आती थी। गोरखपुर का गैंगवार बहुत फेमस था।
यूपी की राजनीति गोरखपुर से तय होती थी। यहां से विरेंद्र शाही और श्री प्रकाश शुक्ल आते थे। 1985 में गोरखपुर से बीर बहादुर मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने गैंगवार को खत्म करने के लिए गुंडा एक्ट लाया। लेकिन इसी बीच हरिशंकर तिवारी और विरेंद्र शाही ने राजनीति का रास्ता पकड़ा और सब कुछ यहीं से तय होने लगा।
कहते हैं 1990 में उत्तर प्रदेश में अपराध राजनीति के एक बिजनेस में बदल चुका था। 1997 में श्री प्रकाश शुक्ल ने लखनऊ में वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून डाला। इसके बाद कल्याण सरकार में कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी को शूट करने का फैसला किया। उसने 6 करोड़ रुपए में कल्याण सिंह को मारने की सुपारी भी ले ली थी। यूपी में इसके बाद ही एसटीएफ का गठन हुआ और श्री प्रकाश शुक्ल को मार दिया गया।
हरिशंकर तिवारी और विरेंद्र शाही की दुश्मनी में से ब्रिजेश सिंह और मुख्तार अंसारी का उदय हुआ। आजमगढ़ में पिता की हत्या के बाद ब्रिजेश सिंह मुख्तार का दुश्मन हो गया। मुकाबला सीधा इन दोनों के बीच हुआ। आमने सामने गोलियां इनके बीच चलती थी। मुख्तार हमेशा जेल में जबकि ब्रिजेश हमेशा अंडरग्राउंड रहता था। मुख्तार को जेल सबसे सुरक्षित लगती थी। यूपी में अपराध और राजनीति एक दूसरे के पूरक हो गए थे।
ब्रिजेश सिंह और मुख्तार के बीच हमेशा ठेके को लेकर मारामारी होती थी। अपहरण जैसे बिजनेस होने लगे। 1995 में मुख्तार अंसारी राजनीति में आ गया और मऊ से 4 बार विधायक बना। पहले वह बसपा की ओर से विधायक बना। फिर दो बार निर्दलीय विधायक बना। वह इंटरव्यू के दौरान भी 3 बंदूकें लेकर ही इंटरव्यू मीडिया को देता था। 1990 से 2008 के बीच बनारस, गाजीपुर, आजमगढ़ और मऊ मुख्तार अंसारी के गढ़ थे। 2005 में राय की हत्या के बाद वह बसपा से नजदीकियां बढ़ा लिया फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में वह मुरली मनोहर जोशी से बनारस से हार गया। मुख्तार को गाजीपुर जेल में अंदर फ्रिज, टीवी सहित सभी सुविधाएं दी गई थी।
2012 में मुख्तार ने कौमी एकता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गया। 2016 में सपा में उसे शामिल करने की बात तो आई, पर अखिलेश ने इसे मना कर दिया। विधानसभा चुनाव से पहले मुख्तार के भाई ने अपनी पार्टी बसपा में मिला दिया। 2017 में भारी बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाले योगी आदित्यनाथ ने अब इसी मुख्तार अंसारी को पूरी तरह से किनारे कर दिया है। उसकी अरबों की संपत्ति पूरी तरह से खाक में मिला दी गई है।