अमेरिका में दरों में कटौती रुकी तो आरबीआई को फैसला लेने में होगी मुश्किल

नई दिल्ली। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल की टिप्पणियों से भारतीय रिजर्व बैंक की मुश्किल बढ़ सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका में अगले साल दरों में कटौती रुकती है तो आरबीआई को दरों को घटाने के लिए कई बार सोचना पड़ सकता है। ऐसा अनुमान है कि ब्याज दरों में दो साल बाद पहली कटौती फरवरी की बैठक में हो सकती है।

एंजल वन की रिपोर्ट के अनुसार, फेडरल रिजर्व का दर बढ़ोतरी रोकने का फैसला अप्रत्याशित नहीं था, क्योंकि बाजार ने पहले ही कम दर कटौती चक्र की आशंका जताई थी। फेडरल रिजर्व की 2025 में दो और 2026 में दो बार दरों में कटौती बाजार अनुमानों के अनुरूप है। सितंबर में चार बार कटौती की उम्मीद की गई थी।

फेड का आक्रामक रुख, मजबूत डॉलर और अमेरिकी बॉन्ड की ऊंची ब्याज दरें उभरते बाजारों के लिए सावधानी का संकेत है। उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव सहित वैश्विक कारक आरबीआई के निर्णय को जटिल बना सकते हैं। फेडरल रिजर्व का निर्णय उभरते बाजारों के लिए मौद्रिक नीतियों को आगे बढ़ाने में चुनौतियां पैदा कर सकता है। आरबीआई और अन्य केंद्रीय बैंकों के लिए आगे का रास्ता घरेलू और वैश्विक दोनों कारकों से तय होने की उम्मीद है।

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