फर्जी तरीके से आईपीओ में आवंटन, 165 करोड़ रुपये के घोटाले में 8 गिरफ्तार
मुंबई- प्रवर्तन निदेशालय ने हांगकांग और थाईलैंड में बैठकर देश में साइबर अपराध का सिंडिकेट चला रहे एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का भंडाफोड़ किया है। डिजिटल गिरफ्तारी, फर्जी आईपीओ आवंटन और शेयर बाजार में निवेश के जरिये उच्च रिटर्न का वादा कर 159.70 करोड़ रुपये की ठगी करने के मामले में ईडी ने 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। अपराध की आय को 24 फर्जी कंपनियों के जरिये वैध बनाने का खुलासा हुआ है। ईडी ने यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के तहत की।
ईडी ने एक बयान में शनिवार को बताया कि उसने पिछले महीने बंगलूरू में विशेष धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) कोर्ट के समक्ष आठ आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया। इन पर कथित तौर पर धोखाधड़ी वाले एप्स के जरिये से फर्जी आईपीओ आवंटन और शेयर बाजार में निवेश के जरिये आम लोगों को ठगने का आरोप है। जांच में पता चला कि देश में साइबर घोटालों का एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क है। इसमें फर्जी शेयर बाजार निवेश और डिजिटल गिरफ्तारी करने जैसे साजिशें शामिल हैं।
इन गतिविधियों को मुख्य रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से अंजाम दिया जाता है। ईडी ने 17 ठिकानों पर छापा मारकर मोबाइल फोन, चेकबुक, कंपनी स्टांप, डेबिट कार्ड और अन्य डिजिटल उपकरण जब्त किए थे। ईडी ने आरोपियों की कंपनी साइबरफॉरेस्ट टेक्नोलॉजीज के बैंक खाते में जमा 2.81 करोड़ की जमा राशि को भी फ्रीज कर दिया।
ईडी ने बताया कि उसने कई पुलिस एफआईआर का अध्ययन करने के बाद मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया और आठ लोगों को गिरफ्तार किया। आरोपपत्र में चरण राज सी, किरण एसके, शाही कुमार एम, सचिन एम, तमिलरासन, प्रकाश आर, अजीत आर, अरविंदन और 24 फर्जी कंपनियों का नाम है। ईडी ने बताया कि यह साइबर अपराध मामला 159 करोड़ रुपये का है। ईडी ने बताया कि उसके पास चेकबुक, पासबुक और संचार रिकॉर्ड जैसे ‘अपराध’ साक्ष्य हैं, जो बताते हैं कि ये लोग एक ऐसे गिरोह में शामिल थे, जिसने पूरे देश में साइबर धोखाधड़ी से प्राप्त धन को सफेद किया।
ईडी ने बताया कि शेयर बाजार निवेश घोटाले को ‘पिग-बुचरिंग’ के नाम से जाना जाता है। इसमें ठग पीड़ितों को उच्च रिटर्न के वादे के साथ लुभाते हैं। इसके लिए फर्जी वेबसाइटों और भ्रामक व्हाट्सएप ग्रुपों इस्तेमाल किया जाता है जो बिल्कुल असली और प्रतिष्ठित वित्तीय कंपनियों जैसे प्रतीत होते हैं। ठग, धोखाधड़ी करने वाले फर्जी विज्ञापनों और फर्जी कामयाबी-सफलता की कहानियों के जरिये लोगों का विश्वास हासिल करते हैं। इससे पीड़ित बड़ी मात्रा में निवेश करने के लिए आकर्षित होते हैं।
ईडी ने बताया कि ठगों ने लोगों को फंसाने व ठगने के लिए डिजिटल गिरफ्तारी का सहारा लिया। नेटवर्क के कुछ सदस्य खुद को सीमा शुल्क, सीबीआई समेत अन्य केंद्रीय एजेंसियों के अधिकारियों के रूप में पेश करते थे। वे पीड़ितों को विभिन्न अपराधों में उनके शामिल होने का भय दिखाते थे और पीड़ितों को अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा उन्हें देने के लिए मजबूर करते थे।
जांच में पता चला कि आरोपियों ने पीड़ितों को फंसाने और अवैध आय को सफेद करने के लिए भी पुख्ता योजना तैयार की थी। जालसाजों ने सैकड़ों सिम कार्ड जुटाए थे। इनका इस्तेमाल फर्जी कंपनियों के बैक खातों का संचलान और व्हाट्एस अकाउंट बनाने के लिए किया गया। इन सिम कार्ड के जरिये आरोपियों ने अपनी असल पहचान भी छिपाई। साथ ही आरोपियों के लिए पीड़ितों को धोखा देना भी आसान रहता है और पकड़े जाने का जोखिम भी कम रहता है।
आरोपियों ने साइबर अपराधों से मिली रकम को हासिल करने और उसे वैध बनाने के लिए तमिलनाडु, कर्नाटक समेत कुछ अन्य राज्यों में 24 फर्जी कंपनियां भी बनाईं। ये फर्जी कंपनियां मुख्य रूप से सहकार्य स्थलों (जहां कोई वास्तविक व्यावसायिक उपस्थिति नहीं है) के पते पर पंजीकृत हैं।
ईडी के अनुसार, इस पूरे मामले में आरोपी चरण राज सी की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसका फर्जी कंपनियों के निदेशक से लेकर अन्य लोगों की भर्ती करने और बैंक खाते खोलने से प्रबंधन तक अहम योगदान रहा। शशि कुमार एम ने कई फर्जी कंपनियों को जोड़ने में मदद की, जो अपराध की आय को बैंकिंग प्रणाली में भेजने और एकीकृत करने में सहायक बनीं। कई फर्जी कंपनियों से जुड़े किरण एसके का संबंध विदेशी घोटालेबाजों की ओर से बनाई गई कई फर्जी कंपनियों के बैंक खातों से था, जिन्होंने इन कंपनियों को शामिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज पेश किए थे।