अमेरिकी यूनिर्वसिटी में विदेशी छात्रों की घट रही है संख्या, 16 साल में सबसे कम छात्रों का एनरोलमेंट

मुंबई– अमेरिकी यूनिर्वसिटी में पिछले 16 साल में सबसे कम अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने एनरोलमेंट कराया है। हालांकि एनरोलमेंट की यह तादाद कोरोना महामारी के पहले की है। इससे यह पता चलता है कि ट्रम्प प्रशासन की आव्रजन नीतियों (immigration policies) ने अमेरिकी उच्च शिक्षा को किस तरह से चोट पहुँचाई है। 

गैर-लाभकारी संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन द्वारा जारी ओपन डोर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2019-20 के शैक्षणिक वर्ष में विदेशी छात्रों के अटेंडेंस में 1.8% की गिरावट आई है। 70 साल के इतिहास में यह तीसरी सबसे बड़ी गिरावट है। सैनफ्रांसिस्को विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डोनाल्ड हेलर ने कहा कि यह काफी हद तक ट्रम्प सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से हुआ है। 

यह गिरावट चालू शैक्षणिक वर्ष में बहुत बड़ी है। क्योंकि महामारी पर अंकुश लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्रा करने और वीजा जारी करने में काफी कड़ाई बरती जा रही है। नेशनल क्लियरिंग हाउस रिसर्च सेंटर के इस महीने के आंकड़ों में ग्रैजुएट और अन्डर ग्रैजुएट में नामांकन में सेमेस्टर के लिए क्रमशः 15% और 7.8% की गिरावट आई है। 

कॉलेजों ने ट्रम्प की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के बाद अंतरराष्ट्रीय छात्रों के प्रवेश के बारे में चिंता व्यक्त की थी। कहा था कि विदेशी छात्र अमेरिकी स्कूलों में भाग लेने के लिए काफी हतोत्साहित हुए हैं, जिसे हायर एजुकेशन के प्लैटिनम स्टैन्डर्ड के रूप में देखा जाता है। 

अमेरिकी सरकार और प्रशासन की नीतियां छात्रों को अन्य देशों में जाने पर विचार करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल एजुकेटर्स द्वारा ट्रैक किये गए आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी छात्रों द्वारा आर्थिक लाभों से दो दशकों के दौरान अमेरिका सबसे ज्यादा नुकसान में रहा है।  

ट्रेड ग्रुप के अनुसार, इस तरह के छात्रों ने 2019-20 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 38.7 बिलियन डॉलर का योगदान दिया, जो एक साल पहले लगभग 41 बिलियन डॉलर था। ओपन डोर्स के अनुसार, उच्च शिक्षा में दाखिला लेने वाले सभी छात्रों में 5.5% हिस्सा विदेशों से आता है। 

विदेशी छात्र अमेरिका के कॉलेजों में दाखिला लेकर ना सिर्फ पैसा बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को भी साथ में लाते हैं। वे अमेरिकी कॉलेजों के पसंदीदा छात्र होते हैं क्योंकि वे पढ़ाई पर ज्यादा खर्च करते हैं। हेलर ने कहा कि स्कूलों को अब विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए ट्यूशन में छूट की पेशकश करने की जरूरत पड़ सकती है। 

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय छात्रों ने एजुकेशन वर्ष 2019-20 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 7.6 अरब डॉलर का योगदान दिया है। हालांकि इस दौरान भारतीय छात्रों की कुल संख्या में 4.4% की गिरावट आई। बावजूद इसके भारत 1.93 लाख छात्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बना रहा। 

चीन, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत बना रहा। अमेरिका में चीनी छात्रों की संख्या लगातार 16 वें साल बढ़ती रही है। ओपन डोर 2020 रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 वर्ष के दौरान अमेरिका में 3.72 लाख से अधिक चीनी छात्र थे। डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के ब्यूरो ऑफ एजुकेशनल एंड कल्चरल अफेयर्स और इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन (आईआईई) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, लगातार पांचवें साल अमेरिका में एक अकादमिक वर्ष में 175,496 से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने प्रवेश लिया। 

अमेरिकी वाणिज्य विभाग के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने 2019 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 44 अरब डॉलर का योगदान दिया। इसमें भारतीय छात्रों से 769 अरब डॉलर मिले थे। शैक्षिक और सांस्कृतिक मामलों के लिए राज्य की सहायक सचिव मैरी रॉयस ने कहा कि महामारी से पहले अमेरिका में 10 लाख से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने दाखिला लिया। लगातार पांचवें वर्ष य़ह कामयाबी देखकर हमें खुशी हुई। टॉप 20 देशों में सबसे ज्यादा वृद्धि बांग्लादेश (7%), ब्राजील (4%) और नाइजीरिया (3%) के छात्र से दर्ज की गई। 

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