नगदी खत्म करने के लिए हुई नोटबंदी, अब 57 पर्सेंट ज्यादा नगदी लोगों के पास

मुंबई- करीब पांच साल पहले 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने एकाएक 500 और एक हजार रुपये मूल्य के नोट को बंद कर दिया था। सरकार ने लोगों को डिजिटल तरीके से भुगतान करने को प्रेरित किया। सरकार के मुताबिक नोटबंदी का एक अहम उद्देश्य सिस्टम में से नगदी घटाना था। हालांकि नोटबंदी के पांच साल बाद भी यह लगातार बढ़ रही है और 8 अक्टूबर 2021 को खत्म होने वाले फोर्टनाइट (14 दिनों की अवधि) में लोगों के पास रिकॉर्ड नगदी रही। 

8 अक्टूबर को समाप्त होने वाले पखवाड़े में लोगों के पास 28.30 लाख करोड़ रुपए का कैश था जो कि 4 नवंबर 2016 को उपलब्ध कैश के मुकाबले 57.48 फीसदी अधिक है। इसका मतलब हुआ कि लोगों के पास पांच साल में कैश 10.33 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया। 4 नवंबर 2016 को लोगों के पास 17.97 लाख करोड़ रुपये की नगदी थी जो नोटबंदी का ऐलान (8 नवंबर 2016) होने के बाद 25 नवंबर 2016 को 9.11 लाख करोड़ रुपए रह गई। इसका मतलब हुआ कि 25 नवंबर 2016 के लेवल से 8 अक्टूबर 2021 तक आने में 211 फीसदी नगदी बढ़ गई। जनवरी 2017 में लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपये की नगदी थी। 

सरकार व आरबीआई ‘लेस कैश सोसायटी सिस्टम’ और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दे रही है। इसके अलावा नगदी के लेन-देन को लेकर रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं. हालांकि इनके बावजूद सिस्टम में लगातार नगदी बढ़ रही है। कोरोना महामारी के चलते इसमें और तेजी आई क्योंकि लॉकडाउन के चलते अधिक से अधिक लोग नगदी की व्यवस्था करने लागे ताकि ग्रॉसरी व अन्य जरूरी चीजों के लिए भुगतान किया जा सके।  

आरबीआई का मानना है कि नॉमिनल जीडीपी में बढ़ोतरी के साथ सिस्टम में नगदी भी बढ़ेगी. फेस्टिव सीजन में कैश की डिमांड अधिक बनी रही क्योंकि अधिकतर दुकानदार एंड-टू-एंड ट्रांजैक्शंस के लिए कैश पेमेंट्स पर निर्भर रहे। लेन-देन के लिए नगदी की महत्ता बनी रहने वाली है क्योंकि करीब 15 करोड़ लोगों के पास बैंक खाता नहीं है और टियर-4 शहरों में 90 फीसदी से अधिक ई-कॉमर्स ट्रांजैक्शंस कैश में होते हैं जबकि टियर-1 शहरों में महज 50 फीसदी ही लेन-देन कैश से होते हैं। 

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