बीमा कंपनी के हेल्थ इंश्योरेंस से खुश नहीं हैं, जानिए कैसे बदल सकते हैं प्लान

मुंबई- हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी पॉलिसी की कंपनी बदलने की सुविधा देती है। इस सुविधा के तहत अगर आप अपनी पुरानी बीमा कंपनी से संतुष्ट नहीं हैं तो कंपनी बदल सकते हैं। अगर आप भी अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी दूसरी इंश्योरेंस कंपनी में पोर्ट करवाना चाहते हैं तो इससे पहले आपको प्रीमियम और वेटिंग पीरियड जैसी कई जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए।  

आपको पॉलिसी पोर्ट करवाने का फैसला कर लेने के बाद मौजूदा पॉलिसी की एक्सपायरी के कम-से-कम 45 से 60 दिन पहले नई इंश्योरेंस कंपनी के पास पहुंचना होगा। वहां पोर्टेबिलिटी प्रपोजल फॉर्म भरकर पॉलिसी की कॉपी जमा करानी होगी। आपका आवेदन स्वीकार करने के बाद नई कंपनी आपकी पुरानी इंश्योरेंस कंपनी से संपर्क करके आपका मेडिकल और क्लेम हिस्ट्री का पता लगाएगी। इसी के आधार पर वह पोर्टेबिलिटी प्रपोजल स्वीकार या खारिज करेगी। 

नई इंश्योरेंस कंपनी आपकी अभी की हेल्थ देखेगी न कि आपकी तब की पर जब आपने पहली पॉलिसी ली थी। अभी की हेल्थ को देखते हुए आपको को-पे के रूप में एक निश्चित रकम या प्रीमियम बढ़ाने की मांग कर सकती है। यानी, आपको पता होना चाहिए कि पॉलिसी पोर्ट करवाने पर आपको नई कंपनी में ज्यादा प्रीमियम भरना पड़ सकता है। इसलिए, यह स्पष्ट होना चाहिए कि आप अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्ट क्यों करवाना चाहते हैं? 

यदि आप बीमा कवर की राशि बढ़ाने का विकल्प चुनते हैं तो ध्यान रखें कि वेटिंग पीरियड का फायदा केवल पुरानी बीमा राशि पर लागू होगा। अतिरिक्त बीमा राशि के लिए आपको नई बीमा कंपनी के साथ वेटिंग पीरियड पूरा करना होगा। कई लोग इंश्योरेंस पॉलिसी इसलिए पोर्ट कराते हैं कि दूसरी कंपनी कम प्रीमियम ऑफर कर रही है। नई कंपनी के कवरेज, उसकी लिमिट और सब-लिमिट को समझें। यह क्लेम करते समय गफलत से बचाएगा। 

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी बाजार में उपलब्ध ऑफर्स पता लगाने की आजादी देती है। लेकिन पोर्टेबिलिटी का विकल्प चुनने से पहले इसका नफा-नुकसान सही तरीके से आंक लेना जरूरी है। बेहतर होगा कि ऑफर्स का तुलनात्मक अध्ययन कर लें। इसके बाद ही फैसला करें, ताकि बाद में निराशा हाथ न लगे। 

हर पॉलिसी की अपनी खूबी होती हैं। आप क्या छोड़ रहे हैं और क्या अतिरिक्त पा रहे हैं, यह जानने के लिए दोनों पॉलिसियों की खासियत ठीक से देख लें। नॉन-डिस्क्लोजर की परेशानी से बचने के लिए क्लेम और मेडिकल हिस्ट्री का विवरण नई कंपनी को देना चाहिए। पॉलिसी को पोर्ट करने के लिए पोर्टबिलिटी फॉर्म, पहचान पत्र, पता का सबूत, क्लेम का इतिहास और मेडिकल इतिहास की जरूरत होगी। 

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