मिले सुर मेरा तुम्हारा जैसे वाक्यों को रचने वाले एड गुरू पियूष पांडे नहीं रहे
मुंबई- भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे का शुक्रवार, 24 अक्टूबर को निधन हो गया है। वे 70 वर्ष के थे। पांडे अपने रचनात्मक और भावनात्मक विज्ञापनों के लिए जाने जाते थे, जिन्होंने लोगों की जुबान और दिल दोनों को छू लिया। उनके बनाए विज्ञापन न केवल ब्रांड का संदेश देते थे, बल्कि भारतीय जीवन और संस्कृति को भी दर्शाते थे।
पीयूष पांडे की कुछ सबसे यादगार और चर्चित विज्ञापन श्रृंखलाएं इस प्रकार हैं:
फेविकोल – “ये फेविकॉल का जोड़ है, टूटेगा नहीं”
पांडे ने पिडिलाइट इंडस्ट्रीज के लिए कई मजेदार और यादगार विज्ञापन बनाए। इनमें सबसे लोकप्रिय है भीड़भाड़ वाले बस वाले विज्ञापन, जिसमें यात्री फेविकॉल के जोड़े से सुरक्षित रहते हैं। इसके अलावा, FeviKwik वाला विज्ञापन भी बेहद पसंद किया गया, जिसमें एक मछुआरा फेविक्विक की मदद से मछली पकड़ता है।
कैडबरी डेरी मिल्क – “कुछ खास है… जिंदगी में”
इस विज्ञापन में एक महिला अपने साथी के मैच जीतने के बाद क्रिकेट मैदान पर दौड़ती हुई, खुशी में नाचती दिखाई देती है। यह विज्ञापन भारतीय विज्ञापन जगत में लिंग समानता और खुशी के नए नजरिए को पेश करता है।
Pulse Polio – “दो बूंद जिंदगी की”
पीयूष पांडे ने सार्वजनिक जागरूकता अभियानों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। अमिताभ बच्चन के साथ मिलकर चलाया गया यह अभियान भारत को पोलियो मुक्त बनाने में सहायक रहा।
एशियन पेंट्स – “हर घर कुछ कहता है”
साधारण काम को भी भावनात्मक रूप देने में पांडे माहिर थे। इस अभियान ने घरों को केवल रहने की जगह नहीं, बल्कि उनकी कहानियों का हिस्सा बताया।
‘अब की बार मोदी सरकार’
विज्ञापन की दुनिया में पीयूष पांडे ने अपनी अलग पहचान बनाई है। साल 2014 में उन्होंने भाजपा के प्रसिद्ध ‘अब की बार मोदी सरकार’ स्लोगन को तैयार किया, जो आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय है।
इसके अलावा, उन्होंने संगीत और विज्ञापन को मिलाकर समाज को जोड़ने वाले अभियानों में भी योगदान दिया। उनका प्रसिद्ध अभियान ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ भारत की एकता और सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करता है।
पीयूष पांडे ने यह साबित किया कि विज्ञापन सिर्फ किसी उत्पाद को बेचने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह लोगों के दिलों और भावनाओं तक पहुँचने का एक ताकतवर जरिया भी हो सकता है।
कोकाकोला – “ठंडा मतलब कोका-कोला”
पीयूष पांडे ने कोका-कोला को सिर्फ एक पेय नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का हिस्सा बना दिया। पांडे की रचनाएं हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगी। उनके विज्ञापन न केवल ब्रांड की पहचान बनाते थे, बल्कि भावनाओं और संस्कृति को भी जोड़ते थे।

