दुनियाभर में सबसे तेज बढ़ेगी हमारी जीडीपी, चालू वित्त वर्ष में 6.3 फीसदी

मुंबई- मजबूत मांग और खपत के दम पर चालू वित्त वर्ष में दुनियाभर में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से बढ़ेगी। अप्रैल, 2024 से मार्च, 2025 के बीच सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वृद्धि दर 6.3 फीसदी रह सकती है। तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) में 6.2 से 6.3 फीसदी रहने का अनुमान है।

तीसरी तिमाही के आंकड़े 28 फरवरी को जारी होंगे। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, 2024-25 के लिए वास्तविक और नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर क्रमशः 6.4 प्रतिशत और 9.7 प्रतिशत अनुमानित है। एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 36 उच्च आवृत्ति संकेतक अर्थव्यवस्था में मजबूती का संकेत दे रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, स्वस्थ ग्रामीण अर्थव्यवस्था स्थिरता को मजबूत कर रही है। मौजूदा घरेलू महंगाई की उम्मीदों में मंदी उच्च विवेकाधीन खर्च को प्रोत्साहित करती है और मांग आधारित विकास को बढ़ावा देती है। तीसरी तिमाही में पूंजीगत खर्च में सुधार दिख रहा है। देशों के बीच तनाव और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों के कारण कैलेंडर वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में मंदी ने न केवल भारत बल्कि अन्य देशों को भी प्रभावित किया।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि 2025 में यूरो क्षेत्र की विकास दर एक फीसदी रह सकती है। अमेरिका की 2.7 फीसदी, ब्रिटेन की 1.6 फीसदी और चीन की विकास दर 4.6 फीसदी रहने का अनुमान है। भारत की वृद्धि दर 6.5 फीसदी, रूस की 2.2 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका की विकास दर 1.5 फीसदी रह सकती है। यही नहीं, 2026 के भी अनुमान में भारत को 6.5 फीसदी के साथ सबसे ऊपर रखा गया है। 2024 से 2026 के बीच तीनों वर्षों में भारत की जीडीपी 6.5 फीसदी के ही स्तर से बढ़ेगी।

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने कहा, अमेरिकी पारस्परिक टैरिफ का प्रभाव भारत पर सीमित होगा, क्योंकि अर्थव्यवस्था निर्यात पर कम निर्भरता के साथ घरेलू स्तर पर केंद्रित है। भारत दो वर्षों में 6.7-6.8 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि हासिल करेगा। 2025-26 का बजट कुछ वर्षों के लिए विकास को बढ़ावा देगा। विकास के लिए निर्यात पर भारत की निर्भरता उतनी अच्छी नहीं है। माल के मामले में जिन क्षेत्रों पर अधिक टैरिफ लग सकता है उनमें आभूषण, फार्मा, कपड़ा और केमिकल शामिल हैं। अमेरिका मूल रूप से जेनेरिक दवाओं पर अधिक टैरिफ नहीं लगा सकता है, क्योंकि इससे उसके देश में स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाएगी। कपड़ा और केमिकल पर उच्च टैरिफ का सबसे अधिक खतरा है।

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