पुरानी पेंशन की व्यवस्था से दिवालिया हो सकते हैं राज्य -डॉ. बिबेक देबरॉय

नई दिल्ली। अगर राज्य पुरानी पेंशन की व्यवस्था को लागू करते हैं तो इससे वे दिवालिया हो जाएंगे। हमें इस योजना से दिवालिया होने की राह पर ले जाया जा रहा है। हालांकि, यह आज नहीं होगा। ऐसा 2030 में होगा। यह बात प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) के चेयरमैन डॉ. बिबेक देबरॉय ने कही। अमर उजाला से एक विशेष इंटरव्यू में उन्होंने कहा, सभी राज्यों के हितों और उनकी सहमति के बाद नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) को काफी विचार विमर्श के बाद लाया गया है। जो कई राज्य फिर से पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की सोच रहे हैं वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है।

डॉ देबरॉय ने कहा, समस्या यह है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था का कितना बुरा असर होगा, इसका पता कुछ साल बाद चलेगा। जो राज्य इसे लागू कर रहे हैं, वह इसके भयावह आर्थिक परिणाम को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह बहुत खतरनाक रुझान है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नई पेंशन योजना लाने के पीछे क्या राजनीतिक और आर्थिक वजहें रही है।

देश में कई राज्यों में सरकारों राज्यपालों के बीच चल रहे विवाद पर उन्होंने कहा, राज्यपालों को लेकर कभी-कभी कुछ विवाद सामने आते हैं तो लोग इस मुद्दे को उछालते रहते हैं। सांविधानिक रूप से गवर्नर की जरूरत पड़ती ही है क्योंकि कभी कुछ विशेष परिस्थितियां ही ऐसी आन पड़ती हैं। ठीक वैसे ही जैसे कि राष्ट्रपति की जरूरत पड़ती रहती है। बड़ा मुद्दा वह नहीं है जो आप पूछ रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या हमें इस मद्देनजर संविधान को फिर से देखने या समीक्षा करने की जरूरत है। हमारा संविधान मुख्य रूप से भारत सरकार के एक्ट 1935 पर आधारित है। जब हम अंग्रेजों के जमाने की बात करते हैं तो इसमें सिर्फ गवर्नर ही नहीं कई सारे मुद्दे आते हैं। तो हमें सभी मुद्दों पर गौर फरमाने की जरूरत होगी, न किसी एक सिंगल मुद्दे पर।

इस पर डॉ देबरॉय ने कहा, रैकेट तो पैदा होते रहेंगे और तोड़े जाते रहेंगे। यह मानवीय स्वभाव है। इसका एकमात्र हल स्क्रूटिनी है।इसके अलावा कायदे कानून के जकड़न को कम करें और जो भी इसका उल्लंघन करें उस पर कड़ी से कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए। लेन देन में पारदर्शिता वक्त की जरूरत है। आज भी दुकानदार पूछते रहते हैं कि कच्चा रसीद चाहिए या पक्का। रियल स्टेट में ऐसे लेन-देन बहुत होते हैं। पर जब से सिस्टम का डंडा चला है तो इसमें काफी कमी आई है।

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