20 साल में पहली बार चलन में नोटों की आई गिरावट, टेक का हो रहा उपयोग 

मुंबई- 20 साल में पहली बार चलन में नोटों की कमी आई है। खोजपरख वाली तकनीक और भुगतान व्यवस्था में बदलवा के कारण ऐसा हुआ है। चलन में मुद्राओं के कम होने का एक कारण यह भी रहा है कि आरबीआई ने मई में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की थी जिससे बैंकिंग सिस्टम से 78,000 करोड़ रुपये निकल गए थे।  

एसबीआई की एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि नकदी अर्थव्यवस्था वाला भारत अब स्मार्टफोन से भुगतान करने वाला देश बन गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दरअसल, यूपीआई और वैलेट जैसी भुगतान प्रणाली आसान और सस्ती है। इससे पान के दुकानदार तक इसका उपयोग कर रहे हैं। यहां तक कि जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं, वे भी इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा क्यूआर कोड भी इसमें योगदान दे रहा है।  

डिजिटल लेन देन में मूल्य के लिहाज से एनईएफटी की हिस्सेदारी 55 फीसदी है। इसमें ज्यादातर लेनदेन इंटरनेट बैंकिंग या बैंक की शाखाओं से होते हैं। स्मार्टफोन के जरिये अगर लेन देन की बात करें तो वित्त वर्ष 2022 में यूपीआई से 16 फीसदी, आईएमपीएस के जरिये 12 और ई-वैलेट से एक फीसदी लेन देन हुआ है। 

सीआईसी (चलन में नकदी) की बात करें तो यह 2016 में 88 फीसदी थी जो 2022 में घटकर 20 फीसदी हो गया है। 2027 तक इसके 11 से 15 फीसदी तक रहने का अनुमान है। इसी तरह से डिजिटल लेन की हिस्सेदारी 2016 में 11.26 फीसदी थी जो अब 80.4 फीसदी के पार पहुंच गई है। 2027 में इसके 88 फीसदी तक जाने का अनुमान लगाया गया है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में कुल लेन देन में एनईएफटी का हिस्सा 46.9 फीसदी जबकि यूपीआई का हिस्सा शून्य था। कागज के जरिये 46.9 फीसदी लेनदेन होते थे। 2020 में एनईएफटी का हिस्सा 59.4 फीसदी, यूपीआई का 5.5 फीसदी और कागज के जरिये लेन देन का हिस्सा केवल 20 फीसदी रह गया। 2022 में एनईएफटी का हिस्सा 54.8 फीसदी, यूपीआई का 16.1 फीसदी और कागज का हिस्सा घटकर 12.7 फीसदी हो गया। वित्तवर्ष 2022 में यूपीआई से कुल 84 लाख करोड़ रुपये का देन हुआ जबकि 2023 के अप्रैल-जून में यह 30 लाख करोड़ रुपये रहा। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *