रिक्शा चलाने वाले एकनाथ शिंदे की मां घरों में करती थीं काम
मुंबई- ठाणे के ठाकरे कहे जाने वाले एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने हैं। ठाणे की कोपरी-पछपाखाड़ी विधानसभा सीट से विधायक और उद्धव सरकार में नगर विकास और सार्वजनिक निर्माण मंत्री रहे शिंदे की ठाणे में मजबूत पकड़ है।
एकनाथ, एक नाम नहीं बल्कि अपने आप में एक पार्टी हैं। ठाणे की जनता उन्हें शिवसेना के संस्थापकों में से एक आनंद दिघे के प्रतिबिंब के रूप में देखती है। यही वजह है कि लोग आंख बंद करके शिंदे के फैसले के साथ खड़े हैं। पूरे ठाणे से उद्धव की फोटो गायब, हर तरफ अब दिखते हैं शिंदे।
एकनाथ शिंदे के पीछे न सिर्फ ठाणे की जनता खड़ी है, बल्कि दो तिहाई से ज्यादा, यानी शिवसेना के 40 विधायक भी हैं। शिंदे ने उद्धव के खिलाफ बगावती सुर क्या बुलंद किए, पूरे ठाणे जिले में उनके समर्थन में बैनर और पोस्टर लग गए। इन पोस्टर्स में बाला साहब तो थे, लेकिन मौजूदा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तस्वीर गायब हो गई।
शिंदे का बचपन ठाणे के किसन नगर वागले स्टेट 16 नंबर में बीता। आज यहां उनका एक फ्लैट भी है। इसमें वे अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों के साथ रहते थे। उनके बचपन के दोस्त जगदीश पोखरियाल बताते हैं कि एकनाथ शुरू से ही लोगों के लिए खड़े होने वालों में से थे। यहां पीने के पानी की भारी समस्या थी।
महिलाओं को दूर से पानी लाना पड़ता था। इस परेशानी को देखते हुए शिंदे एक दिन रमेश के पास आए और कहा कि इस परेशानी का हल कैसे होगा। इस पर रमेश ने उन्हें पॉलिटिक्स में उतरने की सलाह दी। शुरू में शिंदे ने मना किया, लेकिन बाद में वे RSS शाखा से जुड़ गए।
ठाणे में शिंदे का कद कुछ ऐसा है कि शिवसेना का मूल कैडर यानी हिंदू ही नहीं, मुस्लिम भी उनके साथ खड़ा है। यही वजह है कि शिंदे के नाम पर दोनों समुदायों के लोगों ने उनके बेटे श्रीकांत शिंदे को चुन कर लोकसभा में भेजा। एकनाथ के PA रह चुके इम्तियाज शेख उर्फ ‘बच्चा’ ने बताया कि शिवसेना से जुड़ने से पहले शिंदे RSS शाखा प्रमुख थे और ऑटो रिक्शा चलाते थे।
आनंद दिघे एक दिन उनके इलाके में आए और उन्होंने लोगों से पूछा कि वे अपने पार्षद (नगर सेवक) के रूप में किसे देखना चाहते हैं। इस पर इम्तियाज समेत सैकड़ों मुसलमानों ने एक सुर में एकनाथ शिंदे का नाम आगे कर दिया। इसके बाद ही शिंदे की सक्रिय रूप से शिवसेना में एंट्री हुई।
शिंदे आज भले ही महाराष्ट्र के नए CM बन गए हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। उनके पिता संभाजी शिंदे एक गत्ते की कंपनी में और मां घरों में काम किया करती थीं। इतनी गरीबी के बावजूद शिंदे ने कभी कोई गलत रास्ता नहीं चुना और हमेशा अपनों की मदद के लिए तैयार रहते थे।
एकनाथ शिंदे का कहना है कि उन्हें राजनीति में लाने और अहम जिम्मेदारियां देकर नेतागीरी सिखाने वाले आनंद दिघे ही थे। आज से 22 साल पहले, यानी 2 जून 2000 को शिंदे की लाइफ में ऐसा टर्न आया कि उन्होंने पार्टी तक छोड़ने का निर्णय ले लिया। सतारा में हुए नाव हादसे में उनकी आंखों के सामने उनके छोटे बेटे दीपेश और बेटी सुभद्रा की डूबने से मौत हो गई थी।
इस हादसे के बाद शिंदे इस कदर टूट गए कि उन्होंने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया। शिंदे के साथ पिछले 40 सालों से रह रहे देविदास चालके ने बताया कि बच्चों की मौत के बाद एकनाथ ने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया। वे किसी से नहीं मिलते थे और न ही किसी से बात करते थे। फिर उनके राजनीतिक गुरु और शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दिघे ही उन्हें वापस राजनीति में लाए थे।
एकनाथ शिंदे ऑटो चलाने के साथ-साथ लेबर कॉन्ट्रैक्टर के रूप में भी काम करते थे। कई बार ऐसा हुआ कि काम ज्यादा आ गया और मजदूर कम होते थे। ऐसे वक्त में खुद शिंदे ने बतौर लेबर काम किया। वे अपने हाथों से मछलियां भी साफ करते थे।
एकनाथ शिंदे के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया, जब उनकी आवाज तकरीबन 15 दिनों के लिए चली गई थी। यह वक्त 2014 के लोकसभा चुनावों का था। शिंदे ने पूरे महाराष्ट्र में इतना प्रचार किया कि उनकी आवाज ही चली गई थी। हालांकि डॉक्टर्स के प्रयास से उसे फिर से वापस लाया गया। इसके बावजूद वे शिवसेना के लिए लड़ते रहे और आज उन पर बागी होने का आरोप लगाया जा रहा है। उन पर आरोप वे लोग लगा रहे हैं, जो कभी लोगों से मिलते तक नहीं थे।
शिंदे के बचपन के दोस्त पोपट धोत्रे ने बताया कि एक बार उनकी चॉल में राशन की कमी हो गई थी। स्थानीय लोगों को न चावल मिल रहा था और न ही चीनी। यह जानकारी जब एकनाथ को हुई तो वे सीधे इन्हें पैक करने वाली कंपनियों के गोदाम में पहुंचे और वहां से राशन उठा कर कमला नगर में रहने वालों तक पहुंचाया।