गूगल जैसी टेक कंपनियां बैंकों को दे सकती हैं कड़ी टक्कर
मुंबई- देश के पारंपरिक बैंकिंग के लिए टेक कंपनियां अब खतरे के रूप में उभर रही हैं। गूगल जैसी टेक कंपनियां इसमें तेजी से अपना पांव जमा रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि देश में डिपॉजिट लेने वाले संस्थानों पर टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री की निर्भरता बढ़ रही है।
गूगल पे छोटे भारतीय बैंकों के टाइम-डिपॉजिट प्रॉडक्ट्स को पुश करना चाहता है। खासकर उन बैंकों के लिए, जिनके पास अपनी खुद की ज्यादा रिटेल लायबिलिटी फ्रैंचाइजी नहीं है। उदाहरण के रूप में इक्विटास स्मॉल फाइनेंस बैंक गूगल पे ग्राहकों को सालाना 6.85% ब्याज देगा। इसकी देखा-देखी अन्य बैंक भी ऐसा कर सकते हैं।
इस कदम की चर्चा विश्व भर में हो रही है। यह वित्तीय संस्थानों की उस कमजोर कड़ी की ओर इशारा करता है जो केवल मुख्य काम पर फोकस करते हैं। फिनटेक स्टार्टअप्स की तुलना में अल्फाबेट, फेसबुक इंक और अमेजन डॉट कॉम फिजिकल बैंकिंग के लिए बड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बैंकों के पास इस प्लेटफार्म पर बिजनेस करने का ज्यादा अनुभव नहीं है।
डिपॉजिट का संकट झेल रहे कई बैंक लाखों ग्राहकों को तकनीकी बिचौलियों (tech intermediaries) के हवाले कर सकते हैं। जब बड़े-बड़े दिग्गज लामबंद हो जाएंगे तो बैंक बैंकिंग का नियंत्रण खो देंगे। चीन की बड़ी टेक कंपनियों ने पहले ही यह दिखा दिया है कि पारंपरिक उधारदाताओं (traditional lenders) को उखाड़ फेंकना कितना आसान है।
ग्राहकों का नेटवर्क इन टेक कंपनियों पर तेजी से बढ़ रहा है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि बैंकों के क्रेडिट स्कोर की तुलना में रियल टाइम नॉन फाइनेंशियल डेटा ट्रेंड बताने वाला कहीं अधिक शक्तिशाली साधन हो सकता है। चीन की कंपनी अलीबाबा पर जब तक चीन नकेल कसता, उससे पहले ही यहां का आंट ग्रुप ने यही काम किया था।
अब देश में डिजिटल टेक्नोलॉजी के कारण काफी कुछ आसान हो गया है। खासकर बैंकों की बोझिल जानकारियां और केवाईसी (अपने ग्राहक को जानिए) जैसी प्रक्रिया में डिजिटल उपयोग आसान हो गया है। अब वॉलेट से भी ग्राहक की पहचान को उतनी ही आसानी से जाना जा सकता है जैसा की केवाईसी से।
भारत में ज्यादातर ग्राहक बैंक ऐप या कार्ड पर लेन-देन करने की बजाय एक दूसरे ग्राहक और व्यापारियों को पेमेंट करने के लिए गूगल पे या फोन पे का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। इन दोनों वॉलेट पर जुलाई में 5 लाख करोड़ रुपए का पेमेंट ट्रांसफर किया गया। कई बैंकों और 50 ऐप पर किए गए कुल ट्रांसफर की तुलना में यह 85% है।
जब फेसबुक का वॉट्सऐप पेमेंट पूरी तरह से तैयार होगा तो मैसेजिंग सर्विस के 50 करोड़ भारतीय यूजर्स इसका फाइनेंशियल उपयोग करने के लिए बाध्य हो जाएंगे। मौजूदा माहौल बैंकिंग में घुसने हेतु इन टेक कंपनियों के लिए काफी अच्छा है। इक्विटास का गूगल पे ग्राहक के साथ पहले से संबंध नहीं है। इसलिए ग्राहक हमेशा इक्विटास के साथ बने रहेंगे, यह भी जरूरी नहीं है।
ऐसा इसलिए क्योंकि पैसा डिपॉजिट करने में 2 मिनट से भी कम समय लगता है। यह भी बात सच है कि कस्टमर्स की लॉयल्टी सिर्फ उनके फायदे तक ही सीमित रहती है। जब भी उन्हें कोई नया ऑफर मिलता है, तो वे तुरंत स्विच कर लेते हैं। टेक कंपनियों को कमीशन जितना अधिक होगा, बैंकों का लाभ उतना ही कम होगा।
ऐसी स्थिति में विशेष रूप से भारत के सरकारी बैंकों को और अधिक बेहतर बनने की आवश्यकता होगी। या फिर रेगुलेटर्स के साथ लॉबी कर टेक दिग्गजों पर लगाम लगाना होगा। पिछले हफ्ते आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेजन, गूगल और फेसबुक सभी भारत में एक बिल्कुल नया पेमेंट नेटवर्क बनाने की होड़ में थे। हालांकि डेटा सेफ्टी चिंताओं की वजह से रिजर्व बैंक ने उनके लाइसेंस को होल्ड पर डाल दिया है।