चीन के एशियाई व्यापार गुट से हटने से भारत के मैन्युफैक्चरिंग निर्यात बाजार को हो सकता है नुकसान
मुंबई– चीन से समर्थित एशियाई व्यापार गुट (एशियन ट्रेड ब्लॉक) द्वारा भारत के प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग निर्यात बाजार हिस्सेदारी का नुकसान हो सकता है। इस गुट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले साल स्थानीय किसानों और उद्योग के हितों की रक्षा के लिए निकल गए थे।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के एक सीनियर रिसर्च फेलो अमितेंदु पालित ने कहा कि जिन सेक्टर्स में भारत कुछ हद तक ग्लोबल सप्लाई चेन में योगदान दे रहा है, उसके लिए आरसीईपी नुकसानदेह साबित होगा। “आरसीईपी के तहत, व्यापार की लागत में कमी आएगी जो एक बड़ा लाभ साबित होगा। व्यापार समझौता शुरू होने के साथ ही प्रतिभागी देशों के बीच कम से कम 92% कारोबार करने वाले सामानों पर टैरिफ खत्म हो जाएगा। यह जापान, दक्षिण कोरिया या आसियान के साथ अपने मौजूदा एफटीए के तहत भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
मोदी ने किसानों को खुश करने के लिए दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते से खुद को पीछे खींच लिया है। इसे भारत के गरीब किसानों की जीत बताया। लेकिन जिस तरह से कोरोनावायरस प्रकोप के बाद से अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो गई है उससे अब परिस्थितियां काफी हद तक बदल गई हैं। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाईजेशन के अध्यक्ष शरद कुमार सराफ ने कहा कि कई सेक्टर्स बाजार तक पहुंच पाने के लिए ब्लॉक वाले राष्ट्रों में शिफ्ट होना चाहते हैं और यह नियम एक बड़े एडवांटेज जैसा है।
आरसीईपी को अब ऐसे समय में सदस्य राष्ट्रों के लिए व्यापार बाधा को कम करने का रास्ता तय करते हुए देखा गया है जब महामारी ग्लोबल ट्रेड के लिए एक चुनौती बन गई है। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र की प्रमुख प्रियंका किशोर ने कहा कि ओरिजिन के आम नियम, आरसीईपी सदस्यों के लिए आसान बनाकर सप्लाई चेन के लिए एक आकर्षक डेस्टिनेशन बनाते हैं।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत के टॉप 10 निर्यात जैसे इंजीनियरिंग गुड्स, केमिकल, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स को कम टैरिफ के कारण बाजार हिस्सेदारी में कमी का सामना करना पड़ता है। इसका फायदा 15 देशों की क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के सदस्य आपस में लेते हैं। दूसरी ओर पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के एक पेपर के मुताबिक, भारत के पैर खींच लेने से 2030 तक देश के अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1.2% का नुकसान होगा। इससे निर्यातकों को विस्तार योजनाओं के बारे में चिंता हो गई है जो भारत जैसे एक विशाल बाजार की अनुपस्थिति के कारण बुरी तरह से प्रभावित हो सकती है।
चीन एशियाई व्यापार में और भी बड़ी भूमिका निभाता है। सराफ का कहना है कि RCEP के बाद की दुनिया में भारतीय निर्यातकों के लिए एकमात्र सांत्वना यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार सौदे हैं। यही तीनों अर्थव्यवस्थाएं भारत के टॉप एक्सपोर्ट डेस्टिनेशन हैं। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के किशोर ने कहा कि इससे भारत को बहुपक्षीय समझौतों में शामिल होने पर अंततः फिर से सोचने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिसे वह वर्तमान में द्विपक्षीय समझौतों के पक्ष में छोड़ रहा है।