सेबी ने फाइव कोर इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रमोटर्स पर प्रतिबंध लगाया, आईपीओ का पैसा गबन करने का आरोप

मुंबई- पूंजी बाजार नियामक सेबी ने फाइव कोर इलेक्ट्रॉनिक्स के प्रमोटर्स सहित कुल 7 लोगों पर शेयर बाजार में खरीदारी, बिक्री या किसी अन्य प्रकार के कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसी के साथ सेबी ने एनएसई को यह आदेश दिया है कि वह एक इंडिपेंडेंट ऑडिटर की नियुक्ति करे। यह ऑडिटर इसके अकाउंट बुक की फारेंसिक जांच करेगा। जांच में यह देखना होगा कि कंपनी ने आईपीओ से जुटाई गई राशि का कहां उपयोग किया है।

सेबी ने जिन लोगों पर यह आदेश जारी किया है उसमें फाइव कोर इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रमोटर्स अमरजीत सिंह कालरा, सुरिंदर कालरा, जगजीत कालरा, अमरजीत कालरा (एचयूएफ), सुरिंदर कालरा और सुरिंदर सिंह कालरा (एचयूएफ) शामिल हैं। सेबी ने कहा कि नई दिल्ली की यह कंपनी एनएसई इमर्ज (एसएमई) प्लेटफॉर्म पर 21 मई 2018 को लिस्ट हुई थी। इसने 33.33 लाख इक्विटी शेयर जारी किए थे और इससे 46 करोड़ रुपए जुटाया था। आईपीओ का मूल्य 140 रुपए तय किया गया था।

सेबी ने आदेश में कहा कि उसे इस मामले में ढेर सारी शिकायतें मिली थीं। 5 मई 2019 को आदित्य अग्रवाल जो कंपनी के स्वतंत्र निदेशक हैं, उन्होंने यह शिकायत की कि कंपनी में अनैतिक तरीके से मैनेजमेंट काम कर रहा है। 9 अगस्त 2019 को कॉर्पोरेट मंत्रालय ने इस संबंध में आनंद लखोटिया की शिकायत को भी सेबी को भेजा।

सेबी को कंपनी द्वारा आईपीओ से जुटाई गई 46 करोड़ रुपए की राशि को गलत तरीके से उपयोग किए जाने की शिकायत की गई। साथ ही सभी मुख्य अधिकारियों और डायरेक्टर की नियुक्ति, कई बिजनेस एक्टिविटी नहीं होने और कंपनी बंद होने जैसी शिकायतें भी मिलीं। यही नहीं फरवरी 2019 से कंपनी का कोई एमडी भी नहीं है।

सेबी ने पाया कि प्रमोटर की होल्डिंग कंपनी में करीबन 69.63 प्रतिशत है। इसके डायरेक्टर में अमरजीत सिंह कालरा, सुरिंदर कालरा, जगजीत कालरा, राजकुमार प्रजापति, नीरज शर्मा आदि हैं। सेबी ने मिली शिकायतों को एनएसई को जांच के लिए भेजा तो पता चला कि कंपनी की 27 अप्रैल 2019 को बोर्ड मीटिंग में कंपनी के कोई अधिकारी शामिल नहीं हुए। इसी दौरान कंपनी के मुख्य कर्मचारियों ने इस्तीफे भी दे दिए थे। कोई भी प्रोडक्शन, मैन्युफैक्चरिंग भी नहीं हो रही है। रजिस्टर्ड ऑफिस भी बंद थी।

जिन अधिकारियों ने इस्तीफा दिया उसमें सीएफओ अमिताभ सिंह, सेक्रेटरी सौरभ कुमार जैन मुख्य थे। इन लोगों ने मार्च 2019 में इस्तीफा दे दिया था। नीजर शर्मा ने भी इस्तीफे की पेशकश थी। एनएसई की जांच में यह भी पाया गया कि 27 अप्रैल 2019 के बाद से कंपनी ने किसी भी तरह की कोई घोषणा एक्सचेंज पर नहीं की। इसमें फाइनेंशियल रिजल्ट में भी देरी हुई थी। जांच करने के बाद एनएसई ने 25 जून 2019 को इसके शेयरों को कारोबार से सस्पेंड कर दिया।

इस कंपनी का मर्चेंट बैंकर आईपीओ के समय साऱ्थी कैपिटल एडवाइजर्स थी। एनएसई ने जांच में पाया कि आईपीओ के समय कंपनी का जो बैंक खाता आंध्रा बैंक में था, उसमें कंपनी ने कोई कारोबार नहीं किया। इसी दौरान कंपनी ने 5 मई और 9 मई 2018 को एक्सिस बैंक में दो खाता खोला और बाद में इसे मई 2018 में ही बंद कर दिया। इसमें 42 करोड़ और 4.6 करोड़ रुपए कंपनी और सारथी कैपिटल एडवाइजर्स के खाते में ट्रांजेक्शन हुए। इसके बाद इन खातों से कोई लेन देन नहीं हुआ।

सेबी ने अपने विश्लेषण में पाया कि कंपनी ने किसी भी तरह की कोई भी जानकारी एक्सचेंज पर फाइल नहीं की। यही नहीं, इस मामले में डीआरआई भी कंपनी की जांच कर रही है। सेबी ने पाया कि कंपनी और प्रमोटर्स ने मिलकर नियमों का उल्लंघन किया है। इसलिए उसने गुरुवार को आदेश जारी कर दिया।

सेबी ने जारी आदेश में कहा कि ऑडिटर्स को 30 दिनों के अंदर नियुक्त करना चाहिए। सेबी ने अपने आदेश में यह भी कहा कि उपरोक्त कंपनी और प्रमोटर्स सहित सभी को किसी भी तरह के पैसों या संपत्तियों को इधर उधर करने पर प्रतिबंध है। आदेश के मुताबिक सभी आरोपियों को स्वतंत्र ऑडिटर के साथ जांच में मदद करनी होगी। जब भी उनसे समय समय पर मदद की अपेक्षा होगी उनको करनी होगी।

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