सबसे सीनियर IPS अधिकारी संजय पांडे छुट्‌टी पर गए, कहा नौकरी करना है या नहीं, इसे सोचने के लिए समय चाहिए

मुंबई– मुंबई पुलिस में इस समय सब कुछ सही नहीं चल रहा है। पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के तबादले के बाद बगावत छिड़ गई है। सबसे सीनियर IPS अधिकारी संजय पांडे छुट्‌टी पर चले गए हैं। वे कहते हैं कि पिछले कई सालों से उनको साइड में रखा जा रहा है। अब मुझे यह सोचना है कि नौकरी करनी भी है या नहीं। मैं अब चिंतन करना चाहता हूं। 

पांडे कहते हैं कि कोई भी सरकार आए, हमें साइड पोस्टिंग में ही रखी है। वर्तमान सरकार भी हमारा करियर बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पांडे जब 1992-93 में DCP थे, तब वे धारावी में थे। वे इस जोन के पहले DCP (पुलिस उपायुक्त) थे। उनके कार्यकाल में यहां कोई भी दंगा नहीं हुआ। जबकि धारावी मुस्लिम बहुल इलाका है। 1997 में चमड़े के एक बड़े घोटाले में उनकी जांच की प्रशंसा पूरा पुलिस महकमा करता है। 

दैनिक भास्कर से संजय पांडे ने विशेष बात की। बुधवार को ही उनका तबादला DG होमगार्ड से महाराष्ट्र स्टेट सिक्योरिटी फ़ोर्स (MSF) के पुलिस महानिदेशक (DG) के तौर पर कर दिया गया। मजे की बात है कि वे इसका अतिरिक्त कार्यभार पहले से ही देख रहे थे। पर बुधवार को ट्रांसफर ऑर्डर आने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री को बता दिया और वे छुट्टी पर चले गए।  

पांडे ने कहा कि मैने 20 दिन की छुट्‌टी मांगी है। मैने छुट्‌टी के लिए पर्सनल कारण ही लिखा है। पर नौकरी मुझे करनी है। मेरी नौकरी सवा साल बची है। मुझे यह सोचने के लिए समय चाहिए कि मै नौकरी करूं या नहीं करूं। हिंदुस्तान में इकलौता मुंबई शहर है, जहां सिक्योरिटी फोर्स में IPS की नियुक्ति होती है। ऐसा कहीं नहीं होता है।  

पांडे कहते हैं कि मैने परीक्षा दी तो उस समय IAS, IFS की बजाय IPS का करियर चुना। क्योंकि पुलिस में मुझे नौकरी करनी थी। पर संजोग की मुझे कभी पुलिस यूनिफॉर्म पहनने का मौका नहीं मिला। मुझे कभी पुलिसिंग का मौका नहीं मिला। वे कहते हैं कि मै तो वॉलेंटरी रिटायरमेंट लेना चाहा, वो भी मुझे नहीं लेने दिया गया। 2006 में विजिलेंस में ज्वाइंट कमिश्नर के बाद मैं बीमार हो गया। मुझे 4 साल तक पुलिस की सेवा से बाहर रखा गया।  

संजय पांडे कहते हैं कि 2012 में जब मैने फिर वापसी की तो फिर से साइड पोस्टिंग ही मिली। मेरे करियर में करीबन 20 साल की साइड पोस्टिंग की नौकरी रही है। संजय पांडे ने इकोनॉमिस अफेंस विंग (EOW) में भी काम किया है। वे हार्वर्ड से पढ़ाई भी बीच में किए हैं।   

अंबानी कार विस्फोटक मामले में चारों ओर से घिर चुकी ठाकरे सरकार ने सचिन वझे की गिरफ्तारी के बाद पुलिस के दामन पर लगे दाग को धोने के लिए 4 वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला किया। इसी में संजय पांडे अपने तबादले से काफी अपसेट हैं।  

माना जा रहा है कि अगर वे बगावती तेवर अपना लेते हैं तो सरकार की फजीहत और भी बढ़ सकती है। उन्होंने कहा है कि अब शायद ही वे कभी पुलिस फ़ोर्स में वापस आयें। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी कमियों को ठीक करने के बजाय हम जैसे सीनियर मोस्ट अधिकारियों को को अनाप-शनाप तरीके से ट्रांसफर कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को ट्रांसफर के पहले कम से कम एक बार उनसे प्रोटोकॉल (शिष्टाचार) के तहत बात तो कर लेनी चाहिए थी, पर सरकार ने इसकी भी जरूरत नहीं समझी। 

1986 बैच के तेज तर्रार IPS अधिकारी पांडे की पिछले कुछ सालों से लगातार उपेक्षा की जाती रही है और उन्हें साइड पोस्टिंग दी जाती रही है। जबकि पांडे की तारीफ़ मुंबई दंगों की जाँच करने के लिए बनाए गए श्रीकृष्ण आयोग और 1993 के मुंबई ब्लास्ट मामले को नियंत्रित करने के लिए उनके काम को एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्था कर चुकी है। 

वरिष्ठता के आधार पर संजय पांडे की नियुक्ति पुलिस महानिदेशक या फिर मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद पर की जा सकती थी। पर उन्हें इन पदों पर तो दूर, एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) के DG का पोस्ट दिया जा सकता था। पर उन्हें हर तरह से नजरअंदाज किया गया। मुंबई कमिश्नर की पोस्ट राज्य के डीजीपी के बराबर होती है। इसलिए मुंबई पुलिस का कमिश्नर डीजीपी के अंडर में नहीं आता है।  

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