कोर्ट पर टिकी है महामारी से तबाह कंपनियों की मदद, कई मामलों में होनी है सुनवाई
मुंबई– आने वाले महीनों में संकटग्रस्त परिसंपत्तियों में अरबों डॉलर से जुड़े मामलों में कोर्ट के फैसले पर काफी कुछ निर्भर है। इन फैसलों से कंपनियों को मदद मिलेगी। साथ ही इन फैसलों से यह पता चलेगा कि महामारी से तबाह कंपनियों की मदद करने में बैंक क्या भूमिकाएं निभा रहे हैं।
इन सभी फैसलों में सबसे महत्वपूर्ण फैसला लोन मोरेटोरियम है। रिपेमेंट और डिफॉल्ट पर सुप्रीम कोर्ट इसमें फैसला सुनाएगा। इसमें उधार लेने वालों ने राहत मांगी है। अदालतों को दिवालिया होने के कई पेंडिंग मामलों में भी फैसला सुनाना है। इन फैसलों से आने वाले वर्ष में बैंकों के पास अरबों रुपयों का कैश आ सकता है।
फिलहाल तो भारत के बैंकों, रिजर्व बैंक और सरकार के बीच कॉर्पोरेट उधारकर्ताओं से कानूनी लड़ाई चल रही है। कंपनियां और राहत की मांग कर रही हैं। दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो महीने तक चली इस मामले में दलीलें पूरी कर ली है। यह आने वाले हफ्तों में फैसला सुना सकता है। हालांकि कोई तारीख की घोषणा नहीं की गई है। बैंकों द्वारा दिए गए लोन को बुरे फंसे कर्ज (NPA) घोषित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों पर प्रतिबंध लगा रखा है। इस पर भी कोर्ट फैसला सुना सकता है और एनपीए घोषित करने को मंजूरी दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से छोटे उधारकर्ताओं के लिए 65 अरब रुपए ब्याज माफी पर सब्सिडी देने की अपील की है। कुछ का तर्क है कि भारत के बैंक पहले से ही दुनिया के सबसे बड़े और बुरे लोन का बोझ ढो रहे हैं। ऐसे में अगर कोर्ट ऐसे आदेश जारी करती है तो उनकी मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ जाएंगी। जानकारों का कहना है कि उधारकर्ताओं के पक्ष में दिए गए ज्यादातर फैसलों के चलते 2020 में बैंक मुसीबत में रहे। यही वजह है कि उन्हें एक-एक करके कई याचिकाएं दाखिल करनी पड़ी।
रिजर्व बैंक, बैंक और केंद्र सरकार ने भी कोर्ट से अपील की है कि उधारकर्ताओं को और अधिक राहत नहीं दी जाए। क्योंकि यह एक ऐसा मसला है जो आर्थिक नीति में लिया जाना है। इसके लिए संबंधित पक्षों ने कोर्ट के समक्ष उन सभी राहत उपायों का ब्यौरा प्रस्तुत किया है, जो लाख डाउन के बाद लिए गए हैं। 12 बड़े दिवालियापन (bankruptcy) की फाइलिंग में से 6 के बारे में अभी तक कोई भी फैसला नहीं लिया जा सका है। इनमें से तीन मामले सुप्रीम कोर्ट में हैं। इस साल में ये किसी फैसले पर पहुंच सकते हैं।
11 जनवरी को एमटेक ऑटो लिमिटेड की सुनवाई होगी। इस पर बैंकों का 1.7 अरब डॉलर बैंक बकाया है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने इस साल के शुरू में अमेरिकी हेज फंड डेक्कन वैल्यू इन्वेस्टर्स एलपी कंपनी में बोली लगा टेक ओवर को मंजूरी दे दी। बाद में यह फंड अपनी योजना से मुकर गया। अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगी कि उसे अनुमति दी जाए या नहीं और क्या बैंकों को बोली लगाने के लिए का एक और राउंड के लिए कहा जाना चाहिए।
13 जनवरी को भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड मामले में कोर्ट तय करेगी कि जेएसडब्ल्यू स्टील द्वारा योजनाबद्ध खरीद को आगे बढ़ने की अनुमति दी जाए या नहीं। यदि सौदा आगे बढ़ता है, तो बैंकों को इससे 2.6 अरब डॉलर मिल सकता है। भारत में सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी जेपी इंफ्राटेक के दिवालियेपन के बारे में अभी तक कोई तारीख तय नहीं है। दिवालियापन रेगुलेटर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया के मुताबिक, अगर टॉप कोर्ट कंपनी के लिए एनबीसीसी लिमिटेड से अधिग्रहण की बोली को अंतिम रूप देती है तो बैंकों को करीब 3.2 बिलियन डॉलर की संपत्ति मिल सकती है।

