क्रिएटर इकनॉमी : वर्ष 2030 तक 89 लाख करोड़ रुपये के खर्च पर डाल सकती है असर
मुंबई- देश में 20 से 25 लाख डिजिटल क्रिएटर्स (ऑनलाइन कंटेंट बनाने वाले लोग) हैं, जो 30 फीसदी से ज्यादा उपभोक्ताओं को यह तय करने में मदद करते हैं कि वे कौन सी चीज खरीदें। मंगलवार को जारी बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की रिपोर्ट के मुताबिक, यह तेजी से बढ़ती हुई क्रिएटर इकनॉमी पहले से ही अनुमानित करीब 31.15-35.6 लाख करोड़ रुपये के सालाना खर्च को प्रभावित कर रही है। 2030 तक इसके लगभग 89 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च पर असर डालने का अनुमान है।
पहले क्रिएटर्स का काम सिर्फ इन्फ्लुएंसर कैम्पेन्स (जैसे सोशल मीडिया पर प्रचार करना) तक सीमित था। लेकिन अब ये लोग कैसे लोग उत्पाद खरीदते हैं, इसका मुख्य हिस्सा बन गए हैं। ये क्रिएटर फैशन, सौंदर्य, इलेक्ट्रॉनिक्स और रोजमर्रा की चीजों जैसे कई उत्पादों को बढ़ावा देते हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि 60 फीसदी लोग नियमित रूप से क्रिएटर्स के वीडियो और पोस्ट देखते हैं। इनमें से 30 फीसदी लोग मानते हैं कि उनकी खरीदारी का फैसला क्रिएटर की सलाह से होता है। इसका मतलब यह है कि अब लोग पुराने तरीकों से विज्ञापन देखकर नहीं, बल्कि क्रिएटर्स की सलाह पर चीजें खरीद रहे हैं।
बीसीज की मार्केटिंग, सेल्स और प्राइसिंग प्रैक्टिस की इंडिया लीडर पारुल बजाज ने कहा, भारत में क्रिएटर इकनॉमी अब एक नया मोड़ ले चुकी है। अब ये इन्फ्लुएंसर केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं हैं, बल्कि 20-25 लाख क्रिएटर्स एक तिहाई खरीदारी फैसलों को प्रभावित करते हैं जिनका मूल्य सालाना 350-400 अरब डॉलर होता है।
क्रिएटर्स के साथ लंबी साझेदारी की जरूरत
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कंपनियों को अब सिर्फ एक बार के प्रचार की बजाय लंबे समय तक क्रिएटर्स के साथ साझेदारी करनी चाहिए। इससे उनके उत्पाद को अधिक लोग जानेंगे और खरीदी बढ़ेगी। जो कंपनियां क्रिएटर्स को अपने लंबे समय तक पार्टनर के रूप में देखेंगी और उनके साथ मिलकर काम करेंगी, वही अगले दशक में भारत के डिजिटल विकास का फायदा उठाने में सफल हों।

