चीन-अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में धीमापन, बढ़ सकता है टैरिफ का समय

मुंबई- अमेरिका और चीन के बीच व्यापार वार्ता काफी धीमी गति से आगे बढ़ रही है। इससे यह संभावना बढ़ रही है कि वर्तमान टैरिफ समय-सीमा को बढ़ाया जा सकता है। एसबीआई फंड्स की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत एक बार फिर उसी गतिरोध पर पहुंच गई है, जहां दोनों पक्षों की प्रगति सीमित रही है।

रिपोर्ट के अनुसार, इन चर्चाओं में एक बड़ी चिंता दुर्लभ खनिज प्रसंस्करण क्षेत्र में चीन का प्रभुत्व है, जहां वैश्विक क्षमता का 90 प्रतिशत हिस्सा चीन के नियंत्रण में है। चीन ने पहले ही दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम का असर वैश्विक ऑटोमोबाइल क्षेत्र विशेष रूप से अमेरिका, यूरोप और भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन पर पड़ने लगा है। यह स्थिति चल रही व्यापार वार्ताओं को और जटिल बना रही है।

टैरिफ निर्णयों के लिए वर्तमान समय सीमा 9 जुलाई थी। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की थी कि अप्रैल में घोषित टैरिफ एक अगस्त से उन देशों के खिलाफ लागू किए जाएंगे जो समझौते पर हस्ताक्षर करने में विफल रहे हैं। रिपोर्ट में संदेह व्यक्त किया गया है वार्ता की धीमी गति के कारण समय सीमा को और बढ़ाया जा सकता है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई देश अब भी चीन के साथ स्थिर व्यापार संबंध बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इससे अमेरिका के लिए अपनी टैरिफ योजनाओं को आगे बढ़ाना मुश्किल हो रहा है। अमेरिकी प्रयासों के बावजूद चीन वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख देश बना हुआ है और बनने वाले नए व्यापार समझौतों में वह मुख्यतः शामिल नहीं है।

अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों में भारत, वियतनाम और जापान व्यापार समझौतों को अंतिम रूप देने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। भारत विशेष रूप से टैरिफ कम करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। सेमीकंडक्टर और जहाज निर्माण जैसे अमेरिकी क्षेत्रों में निवेश करने में रुचि दिखाने वाले कुछ देशों में से एक है। भारत के लिए, अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंध विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अब भारत के कुल निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 20 प्रतिशत है।

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