ग्रामीण परिवारों की वित्तीय स्थितियों में सुधार की उम्मीद, जून में उत्साह 39.7 पर
मुंबई- देश का ग्रामीण परिवार अपनी वित्तीय स्थितियों को लेकर बहुत ज्यादा उत्हासित नजर आ रहा है। मई की तुलना में जून में उनका उत्साह करीब तीन फीसदी बढ़ गया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी यानी सीएमआईई के मुताबिक, मई में उत्साह का सूचकांक 36.6 फीसदी था जो जून में बढ़कर 39.7 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि, यह अप्रैल में 31.6 प्रतिशत की तुलना में बहुत अधिक है। वास्तव में, यह अनुपात महीने में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।
मई में ऐसे परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई जो अपने परिवारों की मौजूदा वित्तीय स्थिति को एक साल पहले की तुलना में बेहतर मानते हैं और जून में और भी बढ़ गए। यह उत्साहपूर्ण भावना भविष्य की आय अपेक्षाओं में भी दिखाई दी। ग्रामीण परिवारों का मानना है कि उनके परिवार एक साल पहले की तुलना में वर्तमान में आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं। जो इसी तरह से उत्साहित थे। इसके विपरीत, एक साल पहले की तुलना में अपने परिवारों की वित्तीय स्थितियों के बारे में निराशावादी परिवारों का अनुपात जून में घटकर नौ प्रतिशत रह गया, जो मई में 9.9 प्रतिशत और अप्रैल में 11.6 प्रतिशत था।
ग्रामीण परिवारों की हिस्सेदारी जो अपने परिवारों से एक साल आगे वित्तीय रूप से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद करते हैं, जून में बढ़कर 44.8 प्रतिशत हो गई। मई में 38.5 प्रतिशत और अप्रैल 2025 में 36.4 प्रतिशत थी। अप्रैल और जून के बीच आशावादी परिवारों में 8.4 प्रतिशत अंकों की वृद्धि उल्लेखनीय है। इसी अवधि के दौरान निराशावादी परिवारों की हिस्सेदारी में मामूली रूप से 1.8 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई।
वर्तमान और भविष्य की आय अपेक्षाओं के बारे में आशावाद में वृद्धि अप्रैल और जून, 2025 के बीच देखी जाने वाली बंपर रबी और ग्रीष्मकालीन फसल की पैदावार के साथ हुई है। सामान्य से अधिक दक्षिण-पश्चिम मानसून की उम्मीदों ने 2025 में अनुकूल खरीफ फसल की उम्मीदें बढ़ा दी हैं, जिससे ग्रामीण आशावाद को और बढ़ावा मिला है।
आय संबंधी धारणाओं में तेज वृद्धि विशेष रूप से किसान परिवारों के बीच प्रमुख थी, जो लगभग पूरी तरह से ग्रामीण भारत में रहते हैं। किसान परिवारों का अनुपात, जो मानते थे कि उनके परिवार एक साल पहले की तुलना में आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं, अप्रैल में 35.6 प्रतिशत से बढ़कर जून में 43.1 प्रतिशत हो गया। जनवरी, 2016 में उपभोक्ता भावना सूचकांक की शुरुआत के बाद से यह अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाले किसानों का उच्चतम अनुपात है।
अधिकतर किसान परिवार अगले साल अपने परिवार की वित्तीय स्थिति को लेकर आशावादी हो गए हैं। ऐसे किसान परिवारों की हिस्सेदारी, जो मानते हैं कि अगले साल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, जून में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई, जबकि मई में यह 38.5 प्रतिशत और अप्रैल में 36.4 प्रतिशत थी।
छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर परिवारों के बढ़ते आशावाद में भी यह झलक देखी जा सकती है। उनमें से लगभग तीन-चौथाई ग्रामीण भारत में रहते हैं। उनके परिवारों का अनुपात जो मानते थे कि उनके परिवार की वित्तीय स्थिति एक साल पहले की तुलना में बेहतर थी, अप्रैल में 23 प्रतिशत से बढ़कर जून में 35 प्रतिशत हो गई। एक साल आगे अपनी आय की संभावनाओं को लेकर आशावादी परिवारों के अनुपात में 4.2 प्रतिशत अंकों की मामूली वृद्धि देखी गई।
भारत के सुदूर इलाकों में आय के मोर्चे पर उत्साह का मतलब है कि लोगों ने खरीदारी के लिए मजबूत इरादे दिखाए। अप्रैल में 27.6 प्रतिशत से जून में 35.5 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों का अनुपात बढ़ा, जो मानते थे कि उपभोक्ता टिकाऊ सामान खरीदने का यह अच्छा समय है।

