झाडू पोछा किया औऱ् मरीजों के जूते चप्पल उठाया, अब 150 करोड़ का मालिक 

मुंबई- चाय सुट्टा बार के लीडिंग मैनेजर मनोज मोरे कभी डेंटल क्लीनिक में पार्ट टाइम जॉब के दौरान झाड़ू-पोछा करने और मरीजों के जूते-चप्पल उठा कर रखने वाले 150 करोड़ की कंपनी चाय सुट्टा बार के लीडिंग मैनेजर हैं। मनोज का यह सफर आसान नहीं रहा।  

मनोज मोरे मध्य प्रदेश के छोटे से गांव सनावद से आते है। गांव में करने को ज्यादा कुछ था नहीं तो उनके माता-पिता अपने परिवार के साथ इंदौर काम की तलाश मे आ गए। 7 लोगों के परिवार में मनोज के साथ उनकी 3 बहनें, एक भाई और माता-पिता थे। इंदौर में उनके पिता ने चौकीदारी का काम शुरू किया और उनकी मां घरों में काम करती थी और इन दोनों के आमदनी से ही घर का गुजारा हो रहा था। फैमिली में सबसे छोटे मनोज और उनकी बहन ही थीं, जिन्हें पढ़ाई का मौका मिला। दोनों का सरकारी स्कूल में दाखिला हुआ। 

धीरे-धीरे समय बीता और 2009 से मनोज की कठिनाइयां बढ़ने लगीं। उनके पिता की सेहत खराब होने लगी, क्योंकि उनको पैरालिसिस अटैक आया। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उनका इलाज सही तरीके से नहीं हो पाया और 2 महीने के अंदर उनका देहांत हो गया। मनोज के पिता के जाने के बाद उनकी मां ने घर की और अपने बच्चों की जिम्मेदारी उठाई। उनकी मां ने और कुछ घरों में काम करना शुरू कर दिया।  

मां की परेशानी देख मनोज और उनके बड़े भाई ने भी काम करना शुरू किया। उनके भाई को तो फूड डिलीवरी का काम मिल गया, लेकिन मनोज की कम उम्र के कारण उन्हें कहीं काम नहीं मिल रहा था। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें गाड़ी साफ करने का काम मिला। इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। कुछ समय बाद उन्हें एक डेंटल क्लीनिक पर पार्ट टाइम जॉब मिल गई। वहां वह झाड़ू-पोछा और मरीजों के जूते-चप्पल उठा कर रखते थे। बाद में पता चला कि उनकी मां को ब्लड कैंसर है। कुछ समय बाद उनकी मां ने भी मनोज का साथ छोड़ दिया। 

मां के देहांत के बाद मनोज अपने परिवार के साथ वापस अपने गांव सनावद चले गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे क्या होगा। तभी उनके चाचा ने उनको हिम्मत दिलाई और वापस इंदौर लेकर आ गए। वापस आने के बाद एक दिन उनकी मुलाकात चाय सुट्टा बार के को-फाउंडर आनंद नायक से हुई। आनंद ने उन्हें अपने साथ अपने कपड़े की दुकान में काम करने का प्रस्ताव दिया, जिसके लिए मनोज तैयार हो गए।  

मनोज ने 2 साल आनंद नायाक के कपड़े की दुकान में काम किया। बाद में आनंद और अनुभव दुबे (वर्तमान में चाय सुट्टा बार के को-फाउंडर) ने चाय सुट्टा बार शुरू करने का सोचा तो मनोज को भी अपने साथ रखा। इस तरह वह चाय सुट्टा बार के पहले कामगार भी बने। मनोज से जब पूछा कि क्या तुम एस्प्रेसो मशीन चला लोगे तो मनोज ने हां कह दिया।  

एस्प्रेसो मशीन सीखने में मनोज ने अपना हाथ भी जला लिया था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उस दौरान चाय सुट्टा बार का सारा काम वही देखते थे। इसी दौरान अनुभव और आनंद के एक और राहुल भी चाय सुट्टा बार के साथ जुड़ गए। मनोज जहां चाय मनोज बनाते थे तो आनंद चाय सर्व करते थे। राहुल का काम कैश काउंटर और अनुभव का काम पार्किंग संभालना था। 

इस तरह शुरुआत हुई चाय सुट्टा बार और मनोज की ऊंचाइयों की। आनंद ने मनोज को हमेशा अपना छोटा भाई माना। आनंद ने चाय सुट्टा बार के शुरुआती दिनों में ही मनोज से एक वादा किया था कि वह मनोज का इंदौर में अपना घर बनवाएंगे। साथ ही मनोज की खुद की अपनी गाड़ी होगी। आज मनोज का इंदौर में अपना घर भी है और गाड़ी भी।  

मनोज अपनी मां से हमेशा कहा करते थे कि मध्यप्रदेश में उनको अपना घर बनाना है और जिस दिन यह सपना पूरा हुआ उस दिन उन्होंने अपने माता-पिता को याद किया। मनोज ने चाय सुट्टा बार में अपनी शुरुआत चाय बनाकर की और आज वह दो टीम लीड करते हैं। एक फैट टीम और दूसरी ट्रेनिंग टीम। वह अभी तक चाय सुट्टा बार में 3500 लोगो को ट्रेनिंग दे चुके हैं।  

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