एफ-16 जेट उड़ाने वाले पहले भारतीय थे रतन टाटा, लेकिन सादगी से बनी पहचान
मुंबई- देश के सबसे बड़े कारोबारी साम्राज्य खड़ा करने वाले रतन टाटा की गुरुवार को मुंबई के वर्ली में अंतिम क्रिया पूरी हो गई। दिग्गज हस्तियों ने उन्हें आखिरी बार विदाई दी। रतन टाटा पहले भारतीय थे, जिन्होंने 2007 में एफ-16 विमान उड़ाने का रिकॉर्ड बनाया। वे लगभग 40 मिनट तक अमेरिकी वायु सेना के ब्लॉक 50 से संबंधित लड़ाकू विमान के को-पायलट रहे थे।
रतन टाटा बताते हैं कि मुझे याद है कि मेरी दादी के पास एक बहुत पुरानी रोल्स रॉयस कार हुआ करती थी। वह उस कार को मेरे भाई और मुझे स्कूल से लेने के लिए भेजती थीं। लेकिन हम दोनों को उस कार में बैठने में इतनी शर्म आती थी कि हम पैदल घर लौट आते थे।
रतन टाटा ने एक इंटरव्यू के दौरान ये किस्सा बताया था। वो कहते थे कि लोगों के बीच बोलना या एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा लेने से वो हमेशा दूर ही रहे। उसकी सादगी हमेशा उनके जीवन की पहचान बनकर रही। 9 अक्टूबर को रतन टाटा ने 86 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली। 3,800 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक रतन टाटा ने अपनी पढ़ाई और काम से कभी समझौता नहीं किया। एक दौर में टाटा ग्रुप के बारे में कहा जाता था कि इस कंपनी का कोई भी शेयर उठा लो, मुनाफा ही देकर जाएगा।
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को नवल टाटा और सूनू टाटा के घर हुआ था। जब वे सिर्फ 10 साल के थे, तब उनके माता-पिता का तलाक हो गया। इसके बाद रतन और उनके भाई जिम्मी टाटा की देखभाल उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने की थी।
रतन, टाटा ग्रुप की स्थापना करने वाले जमशेदजी टाटा के परपोते थे। इतने बड़े खानदान में जन्मे रतन का स्वभाव स्कूल में शर्मीला था। वे बताते थे, ‘एक चीज जिससे मैं कभी उबर नहीं पाया, वह है सार्वजनिक रूप से बोलने का डर। स्कूल में मैं न कभी एसेंबली में बोलता था, न ही एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में शामिल होता था।’
रतन टाटा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के कैम्पियन स्कूल से की। इस स्कूल में वे 8वीं क्लास तक ही पढ़े। फिर आगे की पढ़ाई के लिए रतन मुंबई में कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल चले गए। अपनी पढ़ाई को हमेशा गंभीरता से लेने वाले रतन को हायर एजुकेशन के लिए शिमला के बिशप कॉटन स्कूल भेज दिया गया। 1955 में वे न्यूयॉर्क चले गए, जहां रिवरडेल कंट्री स्कूल से उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया।
वे हमेशा से आर्किटेक्ट बनना चाहते थे। हालांकि, उनके पिता नवल टाटा उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे। इसी के चलते रतन ने 17 साल की उम्र में अमेरिका की मशहूर कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के कॉर्नेल कॉल ऑफ आर्किटेक्चर में दाखिला लिया। 1962 में उन्होंने यहां से B.Arch की डिग्री हासिल की। रतन ने अपने पिता की इच्छा के मुताबिक, 7 साल के दौरान इंजीनियरिंग और आर्किटेक्ट दोनों डिग्रियां हासिल की थीं। इस दौरान उनकी दादी की तबीयत खराब होने की वजह से वे भारत वापस आ गए।
टाटा ने एक लेख में लिखा था कि मैं और मेरे पिता करीब थे और नहीं भी थे। मुझे कहना होगा कि एक पिता-पुत्र की तरह शायद हमारे विचारों में भी भिन्नता थी। हालांकि, मेरे पिता टकराव से नफरत करते थे। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने असिस्टेंट के तौर पर की थी। 1962 में उन्हें समूह की ओरिजनेटर कंपनी ‘टाटा इंडस्ट्रीज’ में नौकरी का प्रस्ताव मिला। 1977 में मशीन्स कोर की जिम्मेदारी मिली। रतन उसमें कामयाब रहे, लेकिन इन्वेस्टर नहीं मिला और 1986 में वह कंपनी बंद कर दी गई। किसी को नहीं लगा था कि रतन टाटा कभी जेआरडी टाटा के उत्तराधिकारी बनेंगे।