देश की छोटी और मझोली कंपनियों को लग सकता है वैश्विक मंदी से झटका
मुंबई- देश के कुल निर्यात में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले छोटे उद्यमों को अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों में आसन्न आर्थिक सुस्ती से प्रतिकूल हालात का सामना करना पड़ सकता है। एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, देश के पांच में से एक MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम क्षेत्र) को चालू वित्त वर्ष में महामारी से पहले की तुलना में अधिक कार्यशील पूंजी की जरूरत पड़ेगी। अमेरिकी एवं यूरोपीय बाजारों की भारत के कुल निर्यात में एक-तिहाई हिस्सेदारी है। ऐसे में इन दोनों बाजारों में आर्थिक सुस्ती की स्थिति देखते हुए घरेलू MSME इकायों पर बोझ पड़ने की आशंका है।
रिपोर्ट के मुताबिक, रत्न एवं आभूषण, निर्माण और रंग एवं रंगीन द्रव्य जैसे क्षेत्रों में सक्रिय छोटी इकाइयों को पहले से ही अधिक कार्यशील पूंजी की जरूरत पड़ रही है। इस अध्ययन में 69 क्षेत्रों और 147 संकुलों में सक्रिय MSME को शामिल किया गया है जिनका कुल राजस्व 63 लाख करोड़ रुपये है जो कि पिछले वित्त वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का करीब एक-चौथाई है।
क्रिसिल के निदेशक पुशान शर्मा ने कहा कि निर्यात पर केंद्रित MSME इकाइयों, खासकर सूरत एवं अहमदाबाद में स्थित इकाइयों को कोविड महामारी से पहले की तुलना में इस वित्त वर्ष में अधिक कार्यशील पूंजी की जरूरत पड़ेगी।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद संकुल वाली इकाइयों को 20-25 दिनों के लिए कार्यशील पूंजी बढ़ानी पड़ सकती है जबकि हीरा प्रसंस्करण के लिए मशहूर सूरत संकुल के लिए यह जरूरत 35 दिनों तक जा सकती है।