त्योहारी सीजन का असर, बैंकों के जमा में आई 69,000 करोड़ की कमी 

मुंबई- त्योहारी सीजन में लोगों ने जमकर खरीदी की है। इसका सीधा असर बैंकों के जमा पर दिखा है। 21 अक्तूबर को समाप्त सप्ताह में बैंकों का जमा 69,000 करोड़ रुपये घट कर 172.03 लाख करोड़ रुपये रह गया जो 7 अक्तूबर को 172.72 लाख करोड़ रुपये था।  

इसी दौरान लोगों ने 29,000 करोड़ रुपये की ज्यादा उधारी भी ली, जिससे बैंकों का कुल कर्ज 128.60 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 128.89 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। हालांकि, त्योहारी सीजन बीतने के बाद बैंकों के पास नवंबर के पहले तीन दिनों में 71,090 करोड़ रुपये की तरलता बढ़ गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़े के अनुसार, भारतीय बैंकों का कुल कर्ज सालाना आधार पर 17.9 फीसदी बढ़ा है। जमा में केवल 9.5 फीसदी की बढ़त आई है। इस साल जनवरी से देखें तो जमा की तुलना में बैंकों का कर्ज ज्यादा बढ़ा है। 

जनवरी में बैंकों का कुल जमा 159.82 लाख करोड़ रुपये था जबकि कर्ज 112.76 लाख करोड़ रुपये था। अप्रैल में जमा बढ़कर 167.42 लाख करोड़ और कर्ज 119.88 लाख करोड़ रुपये हो गया। हालांकि, जून तक जमा में गिरावट आई और यह 165.69 लाख करोड़ रुपये रह गया। जबकि कर्ज में लगातार बढ़ोतरी जारी रही और यह 121.49 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया।

आंकड़े बताते हैं कि जुलाई के बाद जमा और कर्ज दोनों में जमकर तेजी आई। सितंबर में जमा जहां 170.56 लाख करोड़ रुपये हो गया वहीं कर्ज भी बढ़कर 125.51 लाख करोड़ रुपये हो गया। जबकि अक्तूबर के पहले हफ्ते में जमा 172 लाख करोड़ के पार हो गया और कर्ज 128 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया। 

बैंकों ने जमकर बांटे खुदरा कर्ज (पिछले साल की तुलना) 

बैंक खुदरा लोन (लाख करोड़ रुपये) बढ़त(फीसदी में) 
एसबीआई 10.74 18.84 
केनरा बैंक 1.34  12.52 
बैंक ऑफ बड़ौदा 1.58 28.40 
पीएनबी 1.55 16.95 
एचडीएफसी बैंक 5.80 20.20 
आईसीआईसीआई बैंक 4.78 25.00 

गौरतलब है कि मई से लेकर सितंबर तक के बीच में आरबीआई ने रेपो दर में 1.90 फीसदी की बढ़त की। इससे होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन सहित सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए। होम लोन लेने वालों को अब अप्रैल की तुलना में 2 फीसदी ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ रहा है। बावजूद इसके बैंकों से कर्ज के उठाव में तेजी बनी हुई है। 

आरबीआई द्वारा रेपो रेट में वृद्धि के कारण कम होती तरलता के बीच एक रिपोर्ट में बैंकों को चेतावनी देते हुए कहा गया कि वे संपत्ति और देनदारी में निहित जोखिम का सही निर्धारण नहीं कर रहे हैं। ये ऐसे समय पर किया जा रहा है जब उधारी की मांग एक दशक के उच्चतम स्तर 18 फीसदी पर पहुंच गई है। जमा की वृद्धि दर काफी पीछे है। एसबीआई रिपोर्ट के अनुसार, तरलता कम होने का प्रमुख कारण आरबीआई की ओर से ब्याज दर बढ़ाना है। महंगाई को कम करने के लिए आरबीआई ने मई से अब तक ब्याज दरों में 1.90 फीसदी की वृद्धि की है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्याज दर बढ़ने से पहले बैंकिंग सिस्टम अप्रैल 2022 में एवरेज नेट ड्यूरेबल लिक्विडिटी 8.3 लाख करोड़ रुपये था, जो अब घटकर 3 लाख करोड़ रुपये के करीब रह गया है। सरकार ने दिवाली के हफ्ते में कैश बैलेंस का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर दिया है, जिससे कुछ सुधार हुआ है। सरकारी और निजी सेक्टर की ओर से दिए गए बोनस से भी मदद मिली है। रिपोर्ट में एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने कहा कि बैंक भी ब्याज दरों को बढ़ाकर तरलता की समस्या को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। 

घोष ने एक रिपोर्ट में कहा कि बैंकों में एक तरफ ब्याज दर बढ़ी है, दूसरी तरफ नकदी को सोच-विचार कर कम किया गया है। लेकिन कर्ज को लेकर जोखिम का पर्याप्त रूप से प्रबंधन अभी भी नहीं बदला है। रिपोर्ट के अनुसार, भले ही बैंकों में शुद्ध तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) घाटा देखा जा रहा है, लेकिन बाजार सूत्रों का कहना है कि मुख्य कोष की लागत के ऊपर कर्ज को लेकर जो जोखिम है, उसका पूरा ध्यान नहीं रखा गया है। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *