सरकार कंपनियों की हिस्सेदारी बेच कर जुटा सकती है एक लाख करोड़ रुपए

मुंबई-बाजार की स्थितियां खराब होने के बाद भी केंद्र सरकार इस साल एक लाख करोड़ रुपए जुटा सकती है। यह पैसा सरकारी कंपनियों में शेयरों को बेचकर (विनिवेश) जुटाया जाएगा। हालांकि इतना पैसा जुटाने के बाद भी सरकार लक्ष्य से काफी पीछे रह जाएगी। इस वित्त वर्ष में सरकार ने 2.1 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य बजट में रखा था। एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक, प्रमुख सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), कंटेनर कॉर्पोरेशन (कॉनकोर) और आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेचने के बाद भी सरकार लक्ष्य से काफी दूर रह सकती है।   

हाल ही में केंद्र सरकार ने दूसरी छमाही में 12 लाख करोड़ रुपए की बढ़ी हुई उधारी सीमा में बदलाव नहीं करने की घोषणा की है। दरअसल सरकार ने एलआईसी में 10 पर्सेंट हिस्सेदारी बेचकर 80 हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था। अगर यह हो जाता है तो सरकार 2.10 लाख करोड़ रुपए आसानी से जुटा सकती है। पर सूत्रों का कहना है कि इस वित्त वर्ष में यह संभव नहीं है। इसी तरह एअर इंडिया भी अभी तक बिक नहीं पाई है। यह भी सरकार के रेवेन्यू में कमी पैदा करेगा। 

बता दें कि चालू वित्त वर्ष का 6 महीना पूरा हो चुका है। अभी तक बीपीसीएल में भी सरकार हिस्सेदारी नहीं बेच पाई है। इसमें सरकार 52.98 पर्सेंट हिस्सेदारी बेचनेवाली है। इसके एवज में सरकार को 39 हजार 69 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। नवंबर 2019 में इसी हिस्सेदारी से सरकार को 60 हजार करोड़ रुपए मिलते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि तब से कंपनी के शेयर में भारी गिरावट आई है। इससे इसकी कीमत 35 पर्सेंट घट गई है। हालांकि, मूल्यांकन और प्रीमियम का भी इस पर विचार सरकार करेगी। ओएनजीसी ने वित्त वर्ष 2018 में एचपीसीएल में केंद्र की हिस्सेदारी स्टॉक की कीमत के14% के प्रीमियम पर खरीदी थी। सरकार ने हाल ही में बीपीसीएल के लिए बोली की सीमा बढ़ाकर 16 नवंबर कर दी है।  

इसी तरह सरकार आईडीबीआई बैंक में अपनी 47.1% हिस्सेदारी के लिए 18 हजार 995 करोड़ रुपए पा सकती है। इस बैंक में एलआईसी ने जनवरी 2019 में 51 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदी थी। वह सबसे बड़ी प्रमोटर है। सरकार कॉनकोर में 30.8% हिस्सेदारी बिक्री के लिए ईओआई जल्द ही जारी करेगी। समय कम होने के बावजूद इसे 31 मार्च तक पूरा किया जा सकता है। वर्तमान शेयर भाव पर इसके जरिए सरकार को 6,957 करोड़ रुपए मिल सकता है।  

इसी तरह शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) में केंद्र सरकार की 63.75% पर्सेंट हिस्सेदारी का मूल्य 1,547 करोड़ रुपए और बीईएमएल में 54.03 पर्सेंट हिस्सेदारी के लिए 1,353 करोड़ रुपए कीमत है। इन सभी में सरकार जल्द ही हिस्सेदारी बेचेगी। इसके अलावा पवन हंस और सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स की स्ट्रेटेजिक बिक्री को भी तेजी से ट्रैक पर लाया जा रहा है। 

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2018 में रिकॉर्ड 1 लाख करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2019 में 85 हजार करोड़ रुपए विभिन्न कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर जुटाई थी। इसमें से कुछ कंपनियों में सरकारी कंपनियों ने ही हिस्सेदारी खरीदी थी। एक अधिकारी ने कहा कि इस साल में भी कुछ सरकारी कंपनियों को हिस्सेदारी बेची जा सकती है। चालू वित्त वर्ष में अब तक केंद्र ने कुल लक्ष्य का केवल 3 पर्सेंट यानी 6,389 करोड़ रुपए ही जुटा पाई है।  

इसी तरह आईआरसीटीसी में ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) के माध्यम से लगभग 15% हिस्सेदारी सरकार बेचेगी। इससे 3,200 करोड़ रुपए आज के भाव पर मिल सकता है। मिश्रा धातू निगम (मिधानी) में ओएफएस के जरिए 10% हिस्सेदारी बेचने से 400 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है। इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईआरएफसी) के आईपीओ से 4000 करोड़ रुपए और रेलटेल के आईपीओ से 1000 करोड़ रुपए सरकार को मिल सकते हैं।  

एअर इंडिया के लिए मौजूदा योजना के तहत बोलीदाता को अपने 60,000 करोड़ रुपए के कर्ज में से 23,286 करोड़ रुपए का कर्ज लेना होगा। इसलिए शुद्ध आधार पर, इस सौदे से केंद्र सरकार को कोई नकदी नहीं मिलेगी। अप्रैल-अगस्त में नेट टैक्स रेवेन्यू में लगभग 30% की गिरावट रही है। विश्लेषकों का अनुमान है कि केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) वित्त वर्ष 2021 में 16 लाख करोड़ रुपए हो सकता है। यह बजट के स्तर 8 लाख करोड़ से दोगुना है।  

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