वित्त मंत्रालय ने कहा, देश में बढ़ सकती है और महंगाई 

मुंबई- वित्त मंत्रालय ने शनिवार को अपनी मासिक इकोनॉमिक रिपोर्ट में कहा कि ग्रोथ और स्टैबिलिटी को लेकर इंडिया की चिंताएं दूसरे देशों के मुकाबले कम हैं। मंत्रालय की इस रिपोर्ट में मीडियम टर्म में इंडिया की इकोनॉमिक ग्रोथ 6% से ऊपर रहने का अनुमान भी जताया गया है। 

वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल एनर्जी क्राइसिस और सप्लाई चेन को लेकर चिंता बनी हुई है। वैश्विक टकराव बढ़ने से सप्लाई चेन पर दबाव फिर से बढ़ सकता है। इसकी वजह से 2023 में महंगाई कम होने की बजाय बढ़ सकती है। एक ओर फेडरल रिजर्व महंगाई के खिलाफ लड़ाई में आक्रामक बना हुआ है, जिससे ब्याज दरों में और बढ़ोतरी का संकेत मिल रहा है। इससे कैपिटल फ्लो कम हो सकता है। 

रुपए पर दबाव बढ़ सकता है और आवश्यक वस्तुओं का इंपोर्ट महंगा हो सकता है। इससे महंगाई बढ़ सकती है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि बेशक भारत को ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रंट पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मगर, बेहतर इकनॉमिक ग्रोथ के साथ भारत की आर्थिक स्थिति दूसरे देशों से बेहतर है। भारत की आर्थिक विकास दर और उसकी स्थिरता से जुड़ी चिंताएं दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम चिंताजनक है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे इंतजार के बाद घरेलू निवेश का जो चक्र शुरू हुआ था, उसमें जियोपॉलिटिकल टकराव और मॉनेटरी टाइटनिंग घटने के बाद तेजी आएगी। इंडिया में कॉर्पोरेट और बैंक बैंलेंसशीट इसके लिए तैयार हैं। कई साल के डेवलपमेंट के बाद इंडिया का पब्लिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंशियल एक्सेस पर बड़े नतीजे देने को तैयार है। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हालिया वैश्विक घटनाक्रम के बाद इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में इंडिया का आकर्षण दूसरे देशों के मुकाबले बढ़ा है। इस साल इंडिया दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी होगी। वो भी तब, जब रूस-यूक्रेन के बीच लड़ाई, रहने के ज्यादा खर्च, बढ़ती एनर्जी क्राइसिस और बढ़ती ब्याज दरों की वजह से ग्लोबल इकोनॉमी की ग्रोथ को लेकर चिंता जताई जा रही है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम आधा दशक के वित्तीय तनाव और फिर आई कोरोना की महामारी के बाद से इकोनॉमी में ग्रोथ की क्षमता पैदा करने के उपायों के नतीजें दिखेंगे। दुनिया के लिए इन नतीजों की अनदेखी करनी मुश्किल होगी। इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में ग्रोथ को देखकर ऐसा लगता है कि पूंजी खर्च बढ़ाने के लिए सरकार के उपायों का असर दिख रहा है। अगस्त तक सरकार का खर्च एक साल पहले की इसी अवधि के मुकाबले 46.8% ज्यादा था। 

सितंबर में खुदरा महंगाई बढ़ने में फूड प्राइसेज में उछाल का बड़ा हाथ रहा। अगर मौसम को लेकर कोई निगेटिव खबर नहीं आती है, तो इस साल की बाकी अवधि में रिटेल इनफ्लेशन में नरमी आने की उम्मीद है, जिससे कुल खुदरा मुद्रास्फीति भी कम होगी। हालांकि, महंगाई पर भौगोलिक और राजनीतिक घटनाक्रम का असर पड़ सकता है। क्रूड ऑयल की कीमतों को लेकर तस्वीर अनिश्चित बनी हुई है। 

​​​​​​​रिपोर्ट के मुताबिक, जियोपॉलिटिकल तनाव बढ़ने की स्थिति में सप्लाई चेन का दबाव बढ़ सकता है, जिसमें हाल में कुछ कमी आई है। ऐसा होता है तो 2023 में महंगाई घटने के बजाय बढ़ सकती है। छह महीनों में भारत में रिटेल इन्फ्लेशन 7.2% पर रही है, जो विश्व स्तर पर 8% पर रही। 

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए में 5.4% की गिरावट आई, जो छह प्रमुख मुद्राओं में आई 8.9% फीसदी की गिरावट से कम है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने जुलाई 2022 के दौरान कई कदम उठाए हैं, जिनसे कैपिटल फ्लो में और स्थिरता आने की उम्मीद है, जिससे रुपए को मजबूती मिलेगी। 

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