भारतीय बंदरगाहों पर 10 लाख टन चावल अटका, खरीदार नहीं चुका रहे हैं 20 फीसदी शुल्क  

मुंबई- सरकार द्वारा चावल के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले से निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। विदेशी चावल खरीदारों ने अतिरिक्त शुल्क चुकाने से मना कर दिया है। इससे तमाम बंदरगाहों पर 10 लाख टन चावल फंस गया है। पिछले दिनों सरकार ने घरेलू बाजार में चावल की कीमतें बढ़ने से रोकने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध के साथ ही 20 फीसदी अतिरिक्त शुल्क चुकाने का भी नियम लगा दिया था।  

भारतीय चावल निर्यातक संगठन के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव का कहना है कि सरकार ने तो तत्काल प्रभाव से शुल्क लगा दिया, लेकिन खरीदार इसके लिए तैयार नहीं थे। फिलहाल हमने चावल का लदान रोक दिया है। दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक देश भारत के रोक लगाने के बाद अब पड़ोसी देशों सहित दुनियाभर के चावल आयातक देशों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। देश में औसत बारिश कम होने से धान की रोपाई पर असर हुआ है। 

भारत हर महीने करीब 20 लाख टन चावल का निर्यात करता है। इसमें सबसे ज्यादा लोडिंग आंध्र प्रदेश के कनिकड़ा और विशाखापट्टन बंदरगाह से होती है। व्यापारियों की दिक्कत इस बार इसलिए बढ़ी है क्योंकि सरकार निर्यात पर रोक लगाने के बावजूद पहले से करार हुए चावल को भेजने की अनुमति देती थी। पर इस बार ऐसा नहीं है। गेहूं पर रोक लगाने के बाद भी पहले के करार वाले गेहूं भेज दिए गए थे। 

भारतीय बंदरगाहों पर फंसे चावल का निर्यात चीन, सेनेगल, संयुक्त अरब अमीरात और तुर्की जैसे देशों को होना था। इसमें सबसे ज्यादा शिपमेंट टूटे चावल का था। भारत 150 देशों को चावल का निर्यात करता है और इसमें कमी आने से वैश्विक बाजारों में कीमतों पर असर पड़ेगा। दुनिया भर में 3 अरब से ज्यादा लोग चावल पर निर्भर रहते हैं। 

उद्योग के अधिकारियों के मुताबिक, चावल के निर्यात पर भारत के प्रतिबंधों ने एशिया में कारोबार को पंगु बना दिया है। खरीदार वियतनाम, थाईलैंड और म्यांमार से वैकल्पिक आपूर्ति के लिए परेशान हैं, जहां विक्रेता कीमतों में बढ़त के रूप में सौदों पर रोक लगा रहे हैं। भारत के प्रतिबंध के फैसले के बाद से एशिया में चावल की कीमतें 5 फीसदी बढ़ गई हैं। इसमें और बढ़त की आशंका है। भारत ने 2007 में जब चावल पर प्रतिबंध लगाया था, उस समय कीमतें 1,000 डॉलर प्रति टन पहुंच गई थीं। 

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