बैंकों से लेन-देन में महिलाएं और दमदार, पैसा जमा करने में हिस्सेदारी दोगुनी 
मुंबई- देश की बैंकिंग अर्थव्यवस्था में महिला-शक्ति की तेजी से बढ़ी हिस्सेदारी आरबीआई-एसबीआई की ताजा रिपोर्ट में सामने आई है। इसके अनुसार भारत की महिलाओं द्वारा बैंकों में इंक्रीमेंटल डिपॉजिट एक साल में दोगुने से ज्यादा बढ़े। इन डिपॉजिट में ग्रामीण महिलाओं का हिस्सा 66 प्रतिशत पहुंच गया।
रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर इंक्रीमेंटल डिपॉजिट में महिलाओं का हिस्सा 2021 के 15 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 35 प्रतिशत हो चुका है। ग्रामीण भारत के जमाकर्ताओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 2021 के 24 प्रतिशत से बढ़कर सबसे ज्यादा 66 प्रतिशत पहुंच गई। यहां एक साल में करीब 43 प्रतिशत का बदलाव आया।
इसी तरह महानगरों के वर्ग में उनका हिस्सा 2021 के 10 प्रतिशत से बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया। शहरी क्षेत्रों में यह 21 से बढ़कर 32 और उपनगरों में 22 प्रतिशत से बढ़कर 41 प्रतिशत हुआ है।
कृषि में 2022 में महिलाओं को 28.3 प्रतिशत लोन मिले, यह 2021 में 27.2 प्रतिशत था। शिक्षा के लिए 34.6 प्रतिशत निजी लोन मिले यह पिछले वर्ष के 33.9 प्रतिशत से अधिक है। कारोबारी ऋणों में उनका हिस्सा 27.9 प्रतिशत से बढ़कर 28.5 प्रतिशत पहुंचा।
एसबीआई के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि इस रिपोर्ट में महिलाओं का तीव्र सशक्तिकरण नजर आता है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिलाओं के नेतृत्व में हो रही आर्थिक वृद्धि और उन पर केंद्रित नीतियों को इसका श्रेय दिया। कहा, 2014 में आई पीएम जनधन योजना के साथ इस दिशा में बदलाव शुरू हो गए थे। महिलाओं का वित्तीय समावेशन तेज हुआ है और कई सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिला है।
देश के कौशल विकास व उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने वित्तीय समावेशन में जेंडर गैप भरने और महिला सशक्तिकरण के लिए केंद्र की विभिन्न योजनाओं को इसका श्रेय दिया। बैंकों में पिछले वर्ष के मुकाबले डिपॉजिट घटे। मार्च 2022 में यह 10 प्रतिशत गिरे।
हालांकि डिपॉजिट्स के लिहाज से चालू खाते में 10.9, बचत खाते में 13.3 और टर्म डिपॉजिट में 7.9 प्रतिशत वृद्धि हुई। मार्च 2022 में करंट अकाउंट व सेविंग्स अकाउंट (कासा) डिपॉजिट्स कुल डिपॉजिट के 44.8 प्रतिशत रहे, तीन वर्ष पूर्व यह 41.7 प्रतिशत थे। सात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों महाराष्ट्र, दिल्ली-एनसीटी, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और गुजरात से देश के 63.3 प्रतिशत बैंक डिपॉजिट हुए।
महिला जमाकर्ताओं और महिला उधारकर्ताओं पर आरबीआई के हालिया आंकड़े भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों के साथ जमा (मार्च 2022 -बीएसआर 2) के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 के दौरान इंक्रीमेंटल बैंक डेपोजिट्स में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 15% से बढ़कर 35% हो गई, जो कि 20 प्रतिशत अंकों की भारी वृद्धि है। भले ही हम वित्त वर्ष 2022 की तुलना वित्त वर्ष 2020 में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी से करें (क्योंकि वित्त वर्ष 2021 एक असाधारण वर्ष था) इनक्रीमेंटल बैंक डेपोजिट्स में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
जनसंख्या-समूह के आधार पर विश्लेषण बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इनक्रीमेंटल महिला डेपोजिट्स ज्यादा बढ़े हैं। इनक्रीमेंटल रूरल डेपोजिट्स में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2020 में 37% से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 66% हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों के बाद अर्ध-शहरी क्षेत्र आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि कुछ राज्यों ने यह अनिवार्य कर दिया है कि मौद्रिक संसाधनों का ट्रांसफर केवल एक महिला को ही दिया जा सकता है। अब इससे यह संभावना जताई जा रही है कि महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी बैंक जमाओं में यूं ही बनी रहेगी।
यदि हम बैंक-समूह के हिसाब से इसके आंकड़ों की जांच करें तो पाएंगे कि रीजनल रूरल बैंक महिलाओं के जमाकर्ताओं की बढ़ी हुई हिस्सेदारी में प्रमुख भूमिका निभाई है। भले ही हम वित्त वर्ष 2022 के आरआरबी की तुलना वित्तीय वर्ष 2020 के आंकड़ों से करें तो पाएंगे कि इसके शेयर में 60 प्रतिशत अंकों की पर्याप्त वृद्धि हुई है। महिला खाते खोलने में वृद्धि के संभावित कारणों में से एक कारण सेल्फ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) के सभी सदस्यों के लिए खाता खोलना हो सकता है जो कि पहले ग्रुप की अध्यक्ष और सचिव के लिए ही जरूरी था।
उदाहरण के लिए, भारतीय स्टेट बैंक ने स्पॉन्सर्ड आरआरबी के ज्यादा अकाउंट खोलने के लिए दिशा जैसे इन-हाउस ऐप डिवेलप किया और यह महिलाओं को विशेष रूप से लाभान्वित कर रहा है। अब जबकि समय पर केवाईसी के मानदंडों को कठोरता से लागू किया जा रहा है, पहले खोले गए पुरुषों के खाते अधिक बंद हो रहे हैं।
आरआरबी में जमा राशियों का बढ़ना इस बात की ओर इशारा करता है कि अब समय आ गया है कि आरआरबी को प्रभावित करने वाले रेग्युलेशन की व्यापक समीक्षा की जाए। उदाहरण के लिए EASE (एनहांस्ड एक्सेस एंड सर्विस एक्सीलेंस) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के लिए एक कॉमन रिफॉर्म एजेंडा है।
आरआरबी के प्रदर्शन में सुधार और वित्तीय स्थिरता, बेहतर मानव संसाधन प्रथाओं और व्यावसायिक रूप से विवेकपूर्ण व्यवसाय प्रथाओं (prudent business practices) को सुनिश्चित करने के लिए इसी प्रकार के सुधार एजेंडा शुरू किए जा सकते हैं। यह जमीनी स्तर पर महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रक्रिया को और सक्षम बना सकता है ।
दिलचस्प बात यह है कि प्राइवेट सेक्टर के बैंकों और स्मॉल फाइनेंस बैंकों में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में स्थिर रही। विदेशी बैंकों में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी में 11 प्रतिशत की गिरावट आई। दिलचस्प बात यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में इतनी ही वृद्धि हुई।
राज्य के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि टॉप 4 बड़े राज्य जहां वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वित्त वर्ष 202 में महिला जमाकर्ताओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, वे हैं यूपी, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल। दिल्ली, मध्य प्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों जैसे राज्यों में महिला जमाकर्ताओं की घटती हिस्सेदारी काफी परेशान करने वाली है और इसमें जल्द से जल्द सुधार की जरूरत है ।
कॉर्टर्ली बेसिक स्टटिस्टिकल रिटर्न्स (बीएसआर) -1 के अनुसार, महिला उधारकर्ताओं के संबंध में शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंकों (एससीबी) का बकाया लोन 2021-22 के दौरान महिला उधारकर्ताओं के (9.1 करोड़ खाते) का कुल व्यक्तिगत दिए गए लोन का 22.5% था।
यदि हम महिला ग्राहकों को दिए गए सेक्टर के हिसाब से क्षेत्रवार ऋण देखें, तो यह पता चलता है कि कृषि, उद्योग (माइनिंग, मैन्यफैक्चरिंग, बिजली, गैस और पानी) और व्यापार जैसे लगभग सभी प्रमुख क्षेत्रों में दिए जाने वाले ऋण में वृद्धि हुई है। हालांकि पर्सनल लोन सेगमेंट में थोड़ी गिरावट देखने को मिली। ऐसा लगता है कि महामारी ने महिलाओं को MSME ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिसकी गारंटी ECLGS योजनाओं के माध्यम से दी गई थी।