दिसंबर तक सताएगी महंगाई, आरबीआई गवर्नर ने कहा, राहत उसके बाद 

मुंबई- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास मौद्रिक और राजकोषीय नीति के बीच समन्वय का एक नया युग लाए हैं। महामारी के दौरान सरकार के साथ काम करके उन्होंने अर्थव्यवस्था को संभालने का काम किया। उन्होंने बताया कि भारत को चिंता करने की अधिक जरूरत नहीं है।  

वे कहते हैं कि आर्थिक गतिविधियों में लगातार रिकवरी आई है और इसमें तेजी बनी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 2019-20 के स्तर को पार कर गया है और अप्रैल 2022 से कई संकेतक लगातार सुधार दिखा रहे हैं। अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ गई है। व्यावसायिक गतिविधियों या निवेश के संदर्भ में, फार्मा, टेक्नोलॉजी और रीन्यूएबल आदि में अवसर अधिक हैं।  

वे कहते हैं कि जहां तक चुनौतियों का सवाल है, तो महंगाई निश्चित रूप से अधिकांश देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। लगभग सभी बाजार अर्थव्यवस्थाएं बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं। यह एक ऐसी समस्या है, जो दुनिया भर में सरकारों और केंद्रीय बैंकों को चिंता में डाल रही है। हमारी महंगाई में मौजूदा उछाल मुख्य रूप से वैश्विक कारकों के कारण है।  

उन्होंने कहा कि अपनी अप्रैल 2022 की पॉलिसी में हमने विकास पर महंगाई को प्राथमिकता देते हुए एक स्पष्ट संदेश दिया। हमने स्थायी जमा सुविधा की शुरुआत रिवर्स रेपो दर से 40 आधार अंक अधिक की दर से की थी। नतीजतन, ओवरनाइट कॉल रेट – जो कि मौद्रिक नीति का ऑपरेटिंग टार्गेट है, एक साथ बढ़ी। 

वे कहते हैं कि जब आप चिंता करने लगते हैं, तो यह आपके कार्यों को प्रभावित करता है। नीति निर्माताओं को हमेशा सचेत रहना चाहिए और हम कड़ी निगरानी रख रहे हैं। मुद्रास्फीति अब व्यापक हो गई है और यही वह मुद्दा है, जिसे ध्यान में रखते हुए हम कदम उठा रहे हैं। 

अभी का फ्रेमवर्क 6% तक लचीलेपन की अनुमति देता है। उच्च महंगाई लोगों को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाती है, विशेष रूप से समाज का निचला वर्ग मुद्रास्फीति से सबसे अधिक प्रभावित होता है। यह जरूरी है कि हमारे पास एक फ्रेमवर्क हो और उसके भीतर काम करें। आरबीआई के विश्लेषण से पता चलता है कि जब उपभोक्ता महंगाई जब 6% से अधिक हो जाती है, तो यह विकास के लिए नकारात्मक होती है। 

अर्थव्यवस्था स्थिर है। मैक्रो फंडामेंटल्स भी स्थिर हैं। रुपये में गिरावट और पैसा निकासी पर हम काम कर रहे हैं। लेकिन यह क्यों हो रहा है। वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ रही है। अमेरिका में सीपीआई महंगाई 40 साल के उच्च स्तर 8.6 फीसदी पर है। यहां तक कि यूरोप में भी जर्मनी और यूके की तरह महंगाई उच्च स्तर पर है। सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मौद्रिक नीति को टाइट कर रही हैं। वे अपने दरें बढ़ा रहे हैं। ऐसी स्थिति में उभरती अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी की निकासी की जा रही है। 

वे कहते हैं कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार काफी मजबूत है। दूसरा, हमारे मैक्रो फंडामेंटल्स काफी बेहतर हैं और भारत कई दूसरे देशों की तुलना में अच्छी स्थिति में है। वहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रोथ रिकवर हो रही है। 

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