रूपे से वीजा और मास्टर कार्ड दिक्कत में, भारत में कम हो सकता है मार्केट 

मुंबई- मास्टर और वीजा कार्ड ने अमेरिका में शिकायत की है कि उनके लिए भारत में समान फील्ड उपलब्ध नहीं है। रूपे की बढ़ रही ताकत से ग्लोबल लेवल के टॉप प्लास्टिक कार्ड वाली कंपनियां हड़बड़ा गई हैं।  

सरकार से मिल रहे सपोर्ट के साथ रूपे ने 60 करोड़ से अधिक कार्ड जारी किए हैं। RBI के अनुसार 2017 में यह केवल 15 करोड़ था जो 2020 तक चार गुना बढ़ गया। हालांकि, अधिकांश इंस्ट्रूमेंट डेबिट कार्ड हैं, जो बिना तामझाम के सेविंग अकाउंट से जुड़े हैं। इन्हें मोदी सरकार ने अपने फाइनेंशियल इंक्लूजन अभियान के हिस्से के रूप में समाज के गरीब वर्गों के लिए बड़ी संख्या में सामने लाया है।  

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रूपे को इतने आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया है कि इससे वीजा इंक और मास्टरकार्ड भी हड़बड़ा गया है। इस बीच, डिस्कवर फाइनेंशियल सर्विसेज के डाइनर्स क्लब के साथ-साथ मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस डेटा स्थानीय नियमों को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के साथ नियामकीय संकट में आ गए हैं। 

दरअसल, रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई के कारण रूपे की मांग बढ़ रही है क्योंकि इसमें एक देशहित की भावना दिखती है। हालांकि देश के 140 करोड़ लोगों की बढ़ती आर्थिक शक्ति के बावजूद वीज़ा इंक, मास्टरकार्ड का क्षेत्र बढ़ रहा है। मोदी ने 2018 के भाषण में कहा था कि देश की रक्षा के लिए हर किसी को बॉर्डर पर जाने की जरूरत नहीं। यदि आप भारतीय रुपे कार्ड का उपयोग करते हैं तो देश की ताकत को और भी मजबूत बनाते हैं और यह भी राष्ट्र की सेवा करने का एक माध्यम बन जाएगा।

रूस के मीर और चीन की यूनियनपे कंपनी की तरह, रूपे एक घरेलू कार्ड नेटवर्क है, जिसे 2012 से भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा लॉन्च किया गया है। 2018 में मोदी ने वेस्टर्न नेटवर्क के बारे में सार्वजनिक रूप से जो कुछ भी कहा था,  वह विदेशियों के साथ प्रोसेसिंग फीस साझा करने के बारे में उनकी नाखुशी थी। हालांकि, जब से रूस का बायकाट करने का फैसला लिया गया है तब से प्लास्टिक और पॉलिटिक्स के बीच की कड़ी ने और अधिक गंभीर मोड़ ले लिया है और वह है सेवा से देने से कार्ड कंपनियों का इनकार।

हालांकि, अगर भारत को रूपे के लिए अपने दम पर आगे बढ़ना है तो किसी विदेशी या अमेरिकी कार्ड फर्म की तकनीक पर इतना अधिक भरोसा नहीं कर सकते। न ही रूपे की जापान की जेसीबी इंटरनेशनल कंपनी के साथ अन्य साझेदारी से उसे वह लाभ मिलने की संभावना है जिसकी उसे जरूरत है।

लेकिन भारत के पास प्लास्टिक से बेहतर कुछ और भी है जिसका वह अंतरराष्ट्रीयकरण कर सकता है। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) NPCI द्वारा संचालित एक पब्लिक यूटिलिटी है। यह मोबाइल की ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसे भारत खुद कंट्रोल करता है। इस पर चलने वाले ऐप्स मर्चेंट पेमेंट में उतना ही काम कर रहे हैं जितना डेबिट और क्रेडिट कार्ड एक साथ रखते हैं।

एक देश से दूसरे देश में डील करने के बजाय, भारत एक और विकल्प चुन सकता है वह है नेक्सस, जो दिन रात चौबीसों घंटे बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स का ब्लूप्रिंट है और जिससे रियल टाइम पर सभी जगह पेमेंट हो जाता है। एनपीसीआई और सिंगापुर के मॉनिटरी अथॉरिटी के सहयोग से विकसित प्रोटोटाइप, 60 से अधिक देशों में मौजूद डिजिटल पेमेंट सिस्टम को आपस में जोड़ सकता है।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *