एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा, आईडीबीआई जैसे बैंक कर्ज के राइट ऑफ में नहीं कर पा रहे हैं वसूली
मुंबई- सरकार और भारतीय रिजव बैंक (आरबीआई) ने बार-बार यह कहा है कि कर्ज का राइट ऑफ मतलब एनपीए या माफी नहीं होती है। इसका मतलब है कि इस तरह के कर्ज की वसूली होती रहेगी। पर आंकड़े बताते हैं कि बैंकों द्वारा राइट ऑफ किया गया कर्ज एक तरह से डूबा हुआ ही है। बस यह घोषित नहीं होता है कि यह डूब गया है। बैंक केवल 7-8 प्रतिशत की रिकवरी कर पाते हैं।
दरअसल जब भी किसी कर्ज को राइट ऑफ किया जाता है तो उसकी वसूली ठंडे बस्ते में चली जाती है। सूचना अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी के मुताबिक देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 2012 से 2020 के दौरान एक लाख 23 हजार 432 करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया है। 31 मार्च 2020 तक इसमें से केवल 8,969 करोड़ रुपए की वसूली हुई है। यानी 7.26 प्रतिशत। बाकी की रकम की वसूली आज तक नहीं हो पाई है।
एसबीआई के जो बड़े कर्ज खोर हैं उसमें वीडियोकॉन, आलोक इंडस्ट्रीज और भूषण स्टील का समावेश है। इसी तरह से बैंक ऑफ बड़ौदा ने पिछले 8 सालों में (2012-2020) में 10 हजार 457 करोड़ रुपए कर्ज को राइट ऑफ किया। इसमें से उसने अब तक महज 607 करोड़ रुपए की वसूली की है। यानी यह वसूली महज 5 प्रतिशत रही है।
सरकारी बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने इसी तरह से 26 हजार 72 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया। हालांकि बैंक ने कितनी वसूली की, यह नहीं बताया, पर अनुमान यह है कि इसने भी 7-8 प्रतिशत की ही वसूली की है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने बताया कि उसने इसी दौरान 14,641 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है। इसमें से उसने 252 करोड़ रुपए की वसूली की है। यानी यह कुल राइट ऑफ का महज 4 प्रतिशत है।
डूबने की कगार पर पहुंचे आईडीबीआई बैंक की मेजोरिटी हिस्सेदारी हाल में एलआईसी ने लिया है। इसने 8 सालों में 45,693 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है। इसमें से इसने 8 प्रतिशत की वसूली की है। यानी यह करीबन 3,704 करोड़ रुपए रिकवर कर पाया है। हालांकि यह बैंकों द्वारा वसूली तो है, पर इस वसूली पर बैंकों ने खर्च भी किया है। उदाहरण के दौर पर आईडीबीआई को इस प्रक्रिया पर 29 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करना पड़ा है।
बता दें कि बैंक बड़े कर्जदारों के कर्ज को राइट ऑफ करते हैं। यह राइट ऑफ 100 करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज को किया जाता है। पिछले कुछ समय में देश में ऐसे सैकड़ों कर्जदार हैं जिन्होंने बैंकों से 100 करोड़ से ज्यादा का कर्ज लिया है। बाद में जब वसूली नहीं हुई तो उन्हें बैंकों ने राइट ऑफ कर दिया। यानी यह कर्ज न तो एनपीए है न बैंकों ने वसूली की है। जब तक पैसा मिलेगा तब तक ठीक है। हर बैंक इस तरह से बड़े कर्ज की रिकवरी न कर पाने की स्थिति में राइट ऑफ करते हैं।