भारतीयों ने फॉरेन एक्सचेंज फीस पर खर्च किया 26,300 करोड़ रुपए, दूसरे देशों से भेजे पैसे

मुंबई- दूसरे देशों से पैसा भेजने वाले भारतीयों ने 2020 में फ़ॉरेन एक्सचेंज फीस के रूप में 26,300 करोड़ रुपए का पेमेंट किया है। मनी ट्रांसफर करने में शामिल एक टेक्नोलॉजी कंपनी द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इसमें कहा गया है कि इसमें से 9,700 करोड़ रुपए केवल एक्सचेंज रेट मार्क-अप के रूप में छिपे चार्ज थे। 

लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनी वाइज और अगस्त 2021 में कैपिटल इकोनॉमिक्स द्वारा किए गए स्टडी में कहा गया है कि 2016 में 18,700 करोड़ रुपए का पेमेंट भारतीयों ने किया था। इसकी तुलना में 2020 में यह रकम बढ़कर 26,300 करोड़ रुपए हो गई। हालांकि विदेशों में पैसा भेजने के लिए ट्रांजेक्शन फीस पर भारतीयों द्वारा खर्च की गई कुल रकम में पिछले पांच वर्षों में कमी आई है। एक्सचेंज रेट मार्जिन के लिए भुगतान की जाने वाली फीस बढ़ती जा रही है। 

एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि यह रेमिटेंस फीस स्ट्रक्चर में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे यूजर्स को छिपी हुई फीस का खतरा होता है। क्योंकि वे अनजाने में रेमिटेंस सर्विस के लिए विज्ञापन में दिए गए एक्सचेंज रेट से अधिक पेमेंट करते हैं। इसमें दुनिया में सबसे ज्यादा पैसे भेजने वाले भारतीय प्रवासियों को भी नहीं बख्शा गया है।  

अध्ययन में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में इनवर्ड रेमिटेंस पर एक्सचेंज रेट मार्जिन में खोया पैसा 4,200 करोड़ रुपए से बढ़कर 7,900 करोड़ रुपए हो गया है। लेन-देन की लागत (transaction costs) का पेमेंट 2016 में 10,200 करोड़ रुपए से बढ़कर 2020 में 14,000 करोड़ रुपए हो गया है। भारत में रेमिटेंस पर पेमेंट की जाने वाली इन फीस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खाड़ी देशों के लोगों से आता है। खाड़ी देशों में ज्यादातर लोग ब्लू-कॉलर नौकरी वाले होते हैं। वे अपने परिवार को पैसे भेजते हैं। 

2020 में भारत को इनवर्ड रेमिटेंस पर पेमेंट किए गए कुल फीस में सऊदी अरब 24% के साथ पर पहले स्थान पर है। इसके बाद अमेरिका (18%), यूनाइटेड किंगडम (15%), कतर (%) है। कनाडा (6%), ओमान (5%), संयुक्त अरब अमीरात (5%), कुवैत (5%) और ऑस्ट्रेलिया (4%) है। 

वाइज़ की कन्ट्री मैनेजर रश्मि सतपुते ने कहा कि टेक्नोलॉजी और इंटरनेट ने फ़ॉरेन फंड ट्रांसफर की सुविधा संबंधित कुछ मुद्दों को आसान कर दिया है। पर अब भी एक्सचेंज रेट में छुपी हुई फीस की सदियों पुरानी प्रथा के परिणामस्वरूप लोग छिपे हुए फारेन करेंसी फीस पर बहुत अधिक खर्च करते हैं।  

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