वियतनाम में 4 लाख रुपये में और भारत में एक करोड़ में होता है एमबीबीएस

मुंबई- जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने भारत में मेडिकल एजुकेशन की आसमान छूती लागत पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब भारत और वियतनाम की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग समान है (लगभग 4700 डॉलर) तो वियतनाम और भारत में मेडिकल फीस में भारी अंतर क्‍यों है।

वियतनाम अपने मेडिकल कॉलेजों में विदेशी छात्रों से सालाना सिर्फ 4 लाख रुपये (4600 डॉलर) फीस लेता है। वहीं, भारत में निजी कॉलेजों में एमबीबीएस की फीस 60 लाख से 1 करोड़ रुपये या उससे भी ज्‍यादा है। वेम्बु ने इसे ‘शर्मनाक’ बताया है। यही कारण है कि भारतीय छात्रों को सस्ती मेडिकल शिक्षा के लिए चीन, रूस, यूक्रेन, फिलीपींस और बांग्लादेश जैसे लगभग 50 देशों में जाना पड़ता है।

जोहो के संस्‍थापक ने बताया कि उन्होंने हाल ही में देखा कि भारतीय छात्र वियतनाम में मेडिकल की पढ़ाई करने जा रहे हैं। वहां कॉलेज उनसे सालाना 4 लाख रुपये (लगभग 4600 डॉलर) फीस लेते हैं। उन्हें बताया गया कि शिक्षा की क्‍वालिटी अच्छी है। वेम्बु ने लिखा कि वियतनाम की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 4700 डॉलर है। भारत के दक्षिणी राज्यों की भी लगभग इतनी ही है या थोड़ी कम है।

उन्होंने पूछा कि वियतनाम के मेडिकल कॉलेज विदेशी छात्रों से जो फीस लेते हैं, वह उनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी के लगभग बराबर है, जो कि सही है। तो, हमारे मेडिकल कॉलेज हमारी प्रति व्यक्ति जीडीपी के मुकाबले इतने महंगे क्यों हैं? वियतनाम विदेशी छात्रों को कम लागत वाली शिक्षा कैसे दे पा रहा है? यह शर्म की बात है कि भारतीय छात्रों को सस्ती मेडिकल शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ता है।

वेम्बु की ये राय आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के बाद आई है। इसमें कहा गया था कि ऊंची स्नातक मेडिकल फीस के कारण कम सुविधा वाले छात्रों को शिक्षा नहीं मिल पाती है। वित्‍त वर्ष 2028-19 में 499 मेडिकल कॉलेज थे। ये वित्‍त वर्ष 2024-25 में बढ़कर 780 हो गए। MBBS की सीटें भी 70,012 से बढ़कर 1,18,137 हो गईं। लेकिन, इसके बावजूद फीस ज्यादा होने के कारण यह शिक्षा आम लोगों की पहुंच से दूर है।

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