कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रहीं, लेकिन नहीं बढ़ा रही हैं कर्मचारियों का वेतन

मुंबई- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज इकनॉमिक सर्वे 2024-25 पेश किया। इसमें कहा गया है कि भारतीय कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं लेकिन कर्मचारियों का पैसा बढ़ाने को तैयार नहीं हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन द्वारा तैयार किए गए सर्वे में कहा गया है कि कंपनियों के प्रॉफिट और वेतन शेयर की जांच जरूरी है। इससे पता चलता है कि लेबर और कैपिटल के बीच इनकम डिस्ट्रीब्यूशन से उत्पादकता, प्रतिस्पर्धात्मकता और सतत विकास पर क्या असर होता है।

सर्वे में कहा गया है कि कॉरपोरेट का मुनाफा 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है लेकिन कर्मचारियों की सैलरी इसके मुताबिक नहीं बढ़ी है। सर्वे में कहा गया है, ‘वित्तीय, ऊर्जा और ऑटोमोबाइल सेक्टर में मजबूत वृद्धि के कारण वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट का फायदा 15 साल के टॉप पर पहुंच गई। निफ्टी 500 कंपनियों में प्रॉफिट-टू-जीडीपी रेश्यो वित्त वर्ष 2003 में 2.1% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 4.8% हो गया, जो वित्त वर्ष 2008 के बाद सबसे अधिक है। 59 बड़ी कंपनियों विशेष रूप से गैर-वित्तीय सेक्टर की कंपनियों ने प्रॉफिटैबिलिटी में अपने सेक्टर की छोटी कंपनियों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया।

सर्वे में दावा किया गया है कि कंपनियों का मुनाफा बढ़ने के बावजूद उनके कर्मचारियों के वेतन में कमी आई है। कॉरपोरेट इंडिया में एक बड़ी असमानता सामने आई है। वित्त वर्ष 2024 में मुनाफा 22.3% बढ़ा लेकिन रोजगार में सिर्फ 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। एसबीआई के एक एनालिसिस से पता चलता है कि 4,000 लिस्टेड कंपनियों ने 6% रेवेन्यू ग्रोथ दर्ज की। इस दौरान कर्मचारियों पर कंपनियों के खर्च में 13% की वृद्धि हुई जो वित्त वर्ष 2023 के 17 प्रतिशत से कम है। इससे पता चलता है कि उन्होंने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के बजाय कॉस्ट कटिंग पर फोकस किया।

सर्वे के मुताबिक सस्टेनेबल इकनॉमिक ग्रोथ रोजगार आय को बढ़ावा देने पर निर्भर करता है। इससे सीधे उपभोक्ता खर्च बढ़ता है और उत्पादन क्षमता में निवेश को बढ़ावा मिलता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान में औद्योगीकरण का उदाहरण देते हुए सर्वे में कहा गया है कि दीर्घकालिक स्थिरता को सुरक्षित करने के लिए, पूंजी और श्रम के बीच आय का उचित और वाजिब वितरण अनिवार्य है। यह मांग को बनाए रखने और मध्यम से दीर्घ अवधि में कॉर्पोरेट रेवेन्यू और लाभप्रदता वृद्धि का समर्थन करने के लिए आवश्यक है।

सर्वे में कहा गया है, ‘जापानी वर्कर्स, कंज्यूमर और रिटायर लोगों ने वस्तुओं और सेवाओं के लिए अधिक भुगतान करके अपने देश के विकास में योगदान दिया। वे पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में राष्ट्रीय उत्पादन का कम हिस्सा अपने घर ले गए। इसके बदले में जापानी कंपनियों ने देश के मैन्यूफैक्चरिंग बेस को अपग्रेड किया और उत्पादकता लाभ को कामगारों तक पहुंचाया। इसके साथ-साथ सरकार ने टॉप क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया।

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