तेल कंपनियां आ सकती हैं मुनाफे में, लेकिन ग्राहकों को कोई फायदा नहीं 

मुंबई- सरकारी तेल कंपनियां चालू वित्त वर्ष में मुनाफे में आ सकती हैं। रेटिंग एजेंसी फिच ने एक रिपोर्ट में कहा, पिछले वर्ष में इन कंपनियों को घाटा हुआ था, लेकिन अब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के सस्ते होने से ये मुनाफे में आ सकती हैं। हालांकि, सस्ते तेल के बावजूद ग्राहकों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है, क्योंकि कंपनियां पिछले साल हुए घाटे की भरपाई के लिए लंबे समय से पेट्रोल और डीजल की कीमतों को स्थिर रखी हैं। 

एजेंसी ने अनुमान जताया है कि देश में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग मध्यम समय में 5-6 फीसदी के बीच रह सकती है। अगले कुछ वर्षों तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6-7 फीसदी के बीच बढ़ सकती है। साथ ही सरकार इन्फ्रा पर भारी खर्च कर रही है और इससे औद्योगिक गतिविधियों में भी तेजी आ रही है। 

फिच का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतें उसके अनुमान 78.8 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जा चुकी हैं। इससे इन कंपनियों को फायदा होगा। हालांकि, भारतीय रिफाइनरियों का सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) वित्त वर्ष 2023 के रिकॉर्ड उच्च स्तर से वित्त वर्ष 2024 में कम हो जाएगा, क्योंकि उद्योगों की परिस्थितियों में धीमापन आ सकता है। भारत ने हाल में डीजल और विमान ईंधन के निर्यात पर विशेष उत्पाद शुल्क को को खत्म कर दिया है। 

फिच का अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमतें पिछले वित्त वर्ष की तुलना में इस साल कम रह सकती हैं। इससे ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को चालू वित्त वर्ष में नकदी प्रवाह को और मजबूती मिल सकती है। एजेंसी का मानना है कि वित्त वर्ष 2024 में भारत का कच्चे तेल का उत्पादन स्थिर हो जाएगा। वित्त वर्ष 2023 में कच्चा तेल का उत्पादन 1.7 फीसदी गिरा था। जबकि इसी दौरान कच्चे तेल का आयात 10 फीसदी बढ़ गया था। 

दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक सऊदी अरब और रूस ने सोमवार को तेल उत्पादन में कटौती बढ़ा दी। सऊदी अरबिया ने कहा, 10 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती को अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया गया है जो उसके बाद भी जारी रह सकती है। इसके तुरंत बाद रूस ने भी तेल निर्यात में हर दिन 5 लाख बैरल कटौती को अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने पहले ही 36 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती की है। इससे वैश्विक मांग में करीब 3.6 फीसदी की कटौती हो गई है। इन दोनों की घोषणा के बाद सोमवार को तेल की कीमतें बढ़कर 76 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गईं। 

रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते भारतीय तेल कंपनियां रूस से आ रहे कच्चे तेल का कुछ भुगतान अब डॉलर की जगह चीन की करेंसी युआन में कर रहे हैं। कुछ बैंक डॉलर में कारोबार का निपटान नहीं कर रहे हैं, जिससे ऐसा करना पड़ रहा है। रूस पर लगे प्रतिबंधों का ही असर है कि वैश्विक व्यापार में भी बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। रूस अभी भारत के लिए कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन चुका है। साथ ही, रूस अब चीन का भी सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। 

भारतीय रिफाइनर यूआन में ऐसे समय में भुगतान कर रहे हैं, जब चीन अपनी मुद्रा को वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचारित कर रहा है। मौजूदा हालात रूस के ऊपर प्रतिबंधों से डॉलर का दबदबा कम हुआ है, जबकि यूआन का महत्व बढ़ गया है। सूत्रों का कहना है कि सबसे पहले यह काम इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने जून में किया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत की कम से कम 2 निजी रिफाइनर कंपनियां भी यूआन में भुगतान कर रही हैं। 

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