वायर और केबल इंडस्ट्री में नवीनतम कोड अपनाने की मांग ने पकड़ा जोर

मुंबई- एक तरफ जहां इमारतों और अन्य सभी प्रतिष्ठानों में इलेक्ट्रिक सेफ़्टी पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देने की वकालत की जा रही है, वहीं वायरों के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली प्रमुख कच्ची सामग्री पॉली विनाइल क्लोराइड (पीवीसी) से बने वायर से दूर रहने के लिए आवाजें उभर रही हैं, क्योंकि ऐसे बने वायर आग और नुकसान को नहीं रोकते हैं।  

मांग की जा रही है कि अगर हमें “वायर नो फायर” के साथ आगे बढ़ना है, तो हमें वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करने की आवश्यकता है, जो जीरो हैलोजन प्रदान करते हैं और जो RoHS और REACH की शर्तों को अनिवार्य कर रहे हैं। इंडस्ट्री के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बीआईएस ने भी लंबे समय तक पीवीसी इंसुलेटेड वायर रेंज में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, खासकर तब जब वर्तमान नेशनल बिल्डिंग कोड और हाल ही में नेशनल इलेक्ट्रिक कोड 2023 ने बिल्डिंग इंडस्ट्री में विशेष रूप से हाई राइज में पालन करने के लिए कई सिफारिशें की हैं।

यदि हम थोड़ा गहराई में जाएं तो पाएंगे कि आजकल जिस प्रकार के उत्पादों का प्रचार किया जा रहा है, वे ऐसे वायर का मिश्रण हैं जो केवल आगजनी का कारण बनते हैं। ऐसे में ‘वायर नो फायर’ का दावा करने वाले बयान में बिल्कुल सच्चाई नहीं है।  

पीवीसी की सबसे खराब बात यह है कि यह केवल 70 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान का सामना कर सकता है और यह आग की स्थिति में 100% जहरीला और काफी घना धुआं छोड़ता है। इसके अतिरिक्त, यह विज़बिलिटी को शून्य तक सीमित कर देता है और साँस लेने पर मनुष्यों को नुकसान पहुंचाता है। ऐसे में विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि अगर पीवीसी इंसुलेशन से यह नुकसान हो सकता है, तो वायर और केबल निर्माता इस तरह के इंसुलेशन को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं?

विशेषज्ञों के अनुसार, हमारे देश में स्टैन्डर्ड का पालन नहीं हो रह है। भारत के बीआईएस स्टैन्डर्ड तत्कालीन ब्रिटिश के जमाने में तय की गई थी जब बिजली का इस्तेमाल रोशनी के उद्देश्यों के लिए आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों तक सीमित थी। 1970 के दशक में सरकार द्वारा बिजली के वायरों में तांबे के उपयोग को हतोत्साहित किया गया था क्योंकि इसके लिए कीमती विदेशी मुद्रा को खर्च करना पड़ता था। तांबा तकनीकी रूप से एक बेहतर कंडक्टर होने के बावजूद, तब कंडक्टर के रूप में एल्यूमीनियम काफी प्रचलन में था। बहरहाल, समय के साथ तांबे को उसका दर्जा मिला और घरेलू उपयोग के लिए तांबे के वायरों का निर्माण शुरू में छोटे पैमाने पर होने लगा।

इंडस्ट्री विशेषज्ञ और एईओएन कंसल्टेंट्स के मैनिजिंग पार्टनर आशीष राखेजा इमारतों में इलेक्ट्रिक सेफ़्टी के हिट में आवाज उठाते रहे हैं और कई स्टैन्डर्ड का मसौदा तैयार करने में शामिल हैं। उनका कहना है कि आईईईएमए जैसे इंडस्ट्री बॉडी और प्रमुख निर्माता इलेक्ट्रिक सेफ़्टी को बढ़ावा देने और आधुनिक प्रथाओं को भारत में लाने के लिए बड़ा काम कर रहे हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि नवीनतम कोड और मानकों को संबंधित राज्यों द्वारा सक्रिय रूप से अपनाया जाना चाहिए ताकि इलेक्ट्रिक आग के जोखिम को कम से कम किया जा सके।

असंगठित क्षेत्र में कई स्थानीय और क्षेत्रीय निर्माताओं की पैठ हो गई है जो बहुत कम कीमतों पर वायर और केबल बेच रहे हैं। ये रीसाइकिल्ड और पीवीसी के उपयोग का सहारा के रहे हैं। इसके अलावा कई तरह के टैक्सेस से भी बचते रहे हैं। कुल मिलाकर वे बड़ी बड़ी कंपनियों से प्राइसिंग के मामले में आगे निकाल जाते हैं। दिक्कत तो यह है कि ये छोटे खिलाड़ी अपनी तकनीक को अपग्रेड करने के इच्छुक नहीं हैं और हाउस वायरिंग रेंज के लिए बुनियादी बीआईएस मानदंडों को पूरा कर ही खुश हैं। 

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