अगले साल 2 लाख करोड़ रुपए के आ सकते हैं आईपीओ

मुंबई- भारत में प्राइमरी मार्केट में 2021 में तमाम रिकॉर्ड बनते नजर आए है। कंपनियों में आईपीओ लाने की होड़ मची हुई है। साल 2022 में भी हमें करीब 2 लाख करोड़ रुपये के आईपीओ आते नजर आ सकते हैं। इसमें अकेले एलआईसी ही 1 लाख करोड़ रुपए जुटा सकती है।  

चालू साल की बात करें तो 2021 में 65 भारतीय कंपनियों ने मेन बोर्ड आईपीओ के जरिए 1.29 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। इसके पहले 2020 में 15 आईपीओ के जरिए 26,613 करोड़ रुपए जुटाए गए थे। इसका मतलब यह है कि 2020 की तुलना में 2021 में आईपीओ से जुटाई गई राशि 4.5 गुना ज्यादा रही है।  

बता दें कि इसके पहले 2017 में आईपीओ के जरिए 75 हजार करोड़ रुपए जुटाने का सबसे बेहतर रिकॉर्ड रहा था। अगर तुलनात्मक रुप से देखे तो 2017 की तुलना में 2021 में आईपीओ के जरिए जुटाई गई राशि लगभग दोगुनी रही है। 

वर्तमान में करीब 35 कंपनियों ने अगले साल आने वाले अपने आईपीओ के लिए सेबी से मंजूरी हासिल कर ली है।  

आंकडों के मुताबिक इन आईपीओ से 50,000 करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे। इसके अलावा 33 कंपनियों के आईपीओ की अर्जी सेबी में मंजूरी के लिए दाखिल की जा चुकी है। इन 33 आईपीओ से 60,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी है। इनमें Life Insurance Corp. of India (एलआईसी) का आईपीओ भी शामिल है जिसके इस वित्त वर्ष में लॉन्च होने की उम्मीद है। 

जानकारी के मुताबिक कम से कम आधा दर्जन और ऐसी कंपनियां है जो दिसंबर के अंत तक सेबी में अपनी आईपीओ की अर्जी दाखिल करने की तैयारी में हैं। इसमें बच्चों के हॉस्पिटल का चेन चलाने वाली Rainbow Children’s Hospitals,एनालिटिक्स फर्म Course5 Intelligence,एयरपोर्ट लॉउंज ऑपरेटर DreamFolks,TBO Travel,CJ DARCL Logistics और Campus Shoes के नाम शामिल हैं। 

दिसंबर महीने में करीब 8 कंपनियों ने सेबी में अपने आईपीओ के पेपर दाखिल किए है, जिसमें Foxconn की भारतीय शाखा Bharat FIH Ltd और Snapdeal के नाम शामिल हैं। इसके अलावा आईपीओ की पाइपलाइन में Adani Wilmar Ltd, Go Airlines,Pharmeasy और Dehlivery के नाम भी शामिल हैं। 

हालांकि प्राइमरी मार्केट की पाइपलान बहुत मजबूत दिख रही है लेकिन ग्लोबल मैक्रो चुनौतियां नीयर टर्म में आईपीओ लॉन्च पर दबाव बना सकती हैं। महंगाई के दबाव के चलते आगे ब्याज दरों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। जिससे लिक्विडिटी की समस्या पैदा हो सकती है। इसके अलावा कोरोना के ओमीक्रोन वैरिएंट से जुड़ी खबरों का असर सेकेंडरी और प्राइमरी दोनों मार्केट पर देखने को मिल सकता है। वहीं, प्राइमरी मार्केट में नए युग के टेक्नोलॉजी कंपनियों की फंड रेजिंग गतिविधियों ने मार्केट रेगुलेटर सेबी के कान खड़े कर दिए हैं। जिसके चलते आईपीओ संबंधित रेगुलेटरी नियमों में बदलाव हो सकते हैं।

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