कांट्रैक्ट वर्कर्स की बढ़ेगी मांग, मिलेगी चार गुना ज्यादा सैलरी

मुंबई- लॉक डाउन हटने से कारोबार खुलने लगे हैं। देश भर में त्योहार का सीजन चल रहा है। छोटे-छोटे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स की भर्ती में तेजी आई है। कंज्यूमर सेंटीमेंट में तेजी आने से मांग में बढ़ोतरी हुई है।  

त्योहारी सीजन की शुरुआत के साथ छोटे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स की भर्ती चार गुना बढ़ गई है। इससे पहले, इस साल की पहली तिमाही में कई बिजनेस और कंपनियां पूरी ताकत से काम नहीं कर पा रही थीं और ग्रोथ रुक सी गई थी। दूसरी तिमाही से चीजें सुधरने लगी थीं। सभी क्षेत्रों में ऐसे श्रमिकों की मांग बढ़ी। महामारी के प्रभाव को देखते हुए, कंपनियां त्वरित भर्ती प्रक्रियाओं को प्राथमिकता दे रही हैं, इसलिए कम समय के वर्कर्स की ज्यादा मांग है। 

वर्तमान में छोटे-छोटे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स की मांग सभी जगह देखी जा रही है। खासकर एडटेक, फिनटेक, मोबिलिटी, ई-कॉमर्स, फूडटेक और रिटेल सहित कई क्षेत्रों में। उन्होंने कहा कि बिजनेस डेवलपमेंट, सेल्स, मार्केटिंग ऑनबोर्डिंग, ऑडिटिंग, रिटेल और वेयरहाउस ऑपरेशन्स की नौकरियां ज्यादातर मांग में हैं। जैसे-जैसे लॉकडाउन के बाद कंपनियां खुल रही हैं, कस्टमर केअर, टेली-सेल्स, ऑनबोर्डिंग पार्टनर्स, ऑडिटिंग, पैकिंग, ग्राहक सेवा, लोडर-अनलोडर और सैंपलर जैसे जॉब्स में बढ़ती मांग दिख रही है।  

पहली और दूसरी तिमाही की तुलना में छोटे कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स का वेतन सवा से डेढ़ गुना अधिक है। मांग में कमी और बढ़ती खरीदारी तथा ई-कॉमर्स से इस त्योहारी अवधि में 1 लाख रोजगार निर्माण होने की उम्मीद है। भारतीय जॉब मार्केट रिकवरी की राह पर है। क्योंकि ज्यादातर कंपनियां इस तिमाही में भर्ती करने का इरादा रखती हैं। जो कि डेढ़ साल की अवधि में सबसे ज्यादा होने की उम्मीद है।  

त्योहारों के मौसम में डिमांड को पूरा करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर्स को संभालने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने अनुमान लगाया कि मौजूदा ट्रेंड को देखते हुए ई-कॉमर्स सेक्टर में 50%, ई-फार्मा और लॉजिस्टिक्स में 30-40% और फूड डिलीवरी में 50% से ज्यादा की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। ई-कॉमर्स, ई-फार्मा और लॉजिस्टिक्स अभी छोटे कांट्रैक्चुअल ब्लू-कॉलर स्पेस में सबसे बड़े जॉब क्रिएटर हैं। 70% नए हायर ब्लू-कॉलर होंगे, जबकि 30% व्हाइट कॉलर होंगे। इसके अलावा लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, टेक्नोलॉजी और सपोर्ट सर्विसेज जैसे सेक्टर्स में छोटे कांट्रैक्चुअल वर्कर्स की मांग ज्यादा है। क्योंकि कंपनियां अपनी सप्लाई चेन का विस्तार करती हैं। रिटेल, हेल्थ सर्विसेज, होम सर्विसेज और फिनटेक जैसे क्षेत्र का भी यही हाल है। 

महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में ब्लू-कॉलर श्रमिकों की मांग में 50% की वृद्धि हुई है। ज्यादातर भर्तियां दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, कोलकाता, पुणे और लखनऊ में हो रही हैं। भले ही भारत की छोटे कांट्रैक्चुअल वर्कर्स की अर्थव्यवस्था एक असंगठित क्षेत्र है जहां मजदूरी तय नहीं है, फिर भी जहां ज्यादा काम है वहां ऐसे कामगार 25 से 30% ज्यादा कमाई कर सकेंगे। 

ई-कॉमर्स प्लेयर्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, अपैरल, फुटवियर, फूड एंड बेवरेजेज, ब्यूटी और वेलनेस सेक्टर्स द्वारा सेल और मार्केटिंग को बढ़ावा देने के कारण छोटे कांट्रैक्चुअल वर्कर्स की हायरिंग बढ़ी है। छोटे कांट्रैक्चुअल वर्कर्स कई तरह की भूमिका निभाते हैं। जिनका लास्ट माइल डिलीवरी में सबसे बड़ा रोल है। कंटेंट, डिजिटल मार्केटिंग, सप्लाई चेन ऑपरेशंस, सोर्सिंग कंज्यूमर लोन एप्लिकेशन, ब्यूटीशियन और टेक्नीशियन, ब्यूटी एन्ड वेलनेस जैसे डोमेन में ऐसे वर्कर्स की वृद्धि दिखी।  

त्योहारी सीजन के लिए मेट्रो, टियर- 2 और -3 शहरों ने ये नौकरियां पैदा की हैं क्योंकि खरीदारी का मूड बना चुका ग्राहक अब खरीदारी करने के होड़ में हैं। अब जबकि कोविड का डर कम हो गया है, कंज्यूमर सेंटिमेंट में एक उछाल दिख रहा है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शहरों के बहुत से लोग अपने घर कस्बों की ओर वापस चले गए हैं और खरीदारी करने की शक्ति अब सिर्फ महानगरों तक सीमित नहीं है। नतीजतन, टियर-2 और टियर-3 शहरों में छोटे कांट्रैक्चुअल वर्कर्स की मांग में 50%से अधिक की वृद्धि दिख सकती है।  

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