अब कंपनियों के अधिकारियों की सैलरी बढ़ाना आसान नहीं, शेयरधारकों के विरोध से हो रहा है विवाद
मुंबई- कुछ समय पहले तक कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों की सैलरी में बढ़त शेयरधारक बिना किसी विवाद के मंजूर कर लेते थे। पर अब मामला पूरी तरह से बदल गया है। हाल के सालों में कई सारी कंपनियों में शेयरधारकों ने सैलरी की बढ़त पर विवाद कर दिया है।
एक्सीलेंस एनेबलर्स के चेयरमैन और सेबी के पूर्व चेयरमैन एम. दामोदरन कहते हैं कि शेयरधारक अब कई मापदंडों के आधार पर सैलरी की बढ़त का समर्थन करने से कतराने लगे हैं। उनके मन में पहला सवाल यह उठता है कि क्या सैलरी में वृद्धि उचित है। खासकर तब जब ऐसी स्थिति में जिसमें कर्मचारियों के वेतन में कटौती, छंटनी और इसी तरह के अन्य उपाय किए गए हैं।
दामोदरन कहते हैं कि कंपनियों के CEO की सैलरी में वृद्धि का प्रस्ताव या तो मुश्किल से ही खत्म हो रहा है, या उन्हें शेयरधारकों, विशेष रूप से लिस्टेड संस्थागत शेयरधारकों, से आवश्यक समर्थन नहीं मिल रहा है। हालाँकि कुछ कंपनियों से संबंधित घटनाक्रम के संदर्भ में इस मुद्दे पर हाल के दिनों में चर्चा छिड़ गई है।
वे कहते हैं कि हाल में एक कंपनी में CEO की प्रस्तावित सैलरी की वृद्धि को इस आधार पर कम कर दिया गया था क्योंकि कंपनी ने उस वर्ष में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। इसलिए सैलरी में बढ़ोतरी नहीं की जा सकती है।
यह तर्क भी दिया गया कि आने वाले सालों में बेहतर प्रदर्शन दिखाने के लिए सीनियर लोगों को बेहतर सैलरी देने की आवश्यकता है। पर इसे भी शेयरधारकों ने नकार दिया।
दामोदरन के मुताबिक, पुराने और नए दोनों मामलों में समस्या की जड़ कम्युनिकेशन में कमी है। CEO की सैलरी के संबंध में उन शेयरधारकों के समर्थन को हमेशा के लिए नहीं लिया जा सकता है, जिनका पर्याप्त विश्वास बना हुआ है। भले ही CEO के कंधे पर जिम्मेदारियां रहती हैं। उन्हें कंपनी को नेतृत्व प्रदान करने का काम सौंपा जाता है। पर उनकी सैलरी कंपनी में अन्य लोगों की सैलरी की तुलना में बहुत अलग होना अनुचित है।
हाल के ऐसे अनुभवों से कंपनियां अब दो तरह से काम कर रही हैं। पहला CEO की नियुक्ति रिजोल्यूशन और दूसरा सैलरी का रिजोल्यूशन। मतलब अब दोनों अलग-अलग रिजोल्यूशन होने चाहिए। इससे शेयरधारकों को नियुक्ति के रिजोल्यूशन का समर्थन करने में सक्षम बनाया जा सकेगा।