फ्रीलांसर का जॉब करने पर भी देना होगा टैक्स, नहीं तो फंस सकते हैं

मुंबई- अगर आप फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं और इससे आपकी अच्छी खासी कमाई होती है तो आप भी टैक्स के दायरे में आते हैं। अगर आप टैक्स की अदायगी करते हैं तो यह आपके लिए फायदेमंद होता है।  

फ्रीलांसर का मतलब आप एक साथ कई कंपनियों के लिए काम कर सकते हैं। इसमें समय का या घंटे का बंधन नहीं होता है। यह प्रोजेक्ट के आधार पर होता है। फ्रीलांसर का काम करने वाले वे लोग होते हैं जो ग्राहकों के लिए अपने घर, पार्क या कैफे में बैठकर विभिन्न प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं।  

विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत ऐसे फ्रीलांसर होते हैं जो मार्केटिंग, वेबसाइट डिज़ाइनर, कंसल्टेंसी, सॉफ्टवेयर डिज़ाइनर, सोशल मीडिया पर कंटेंट राइटिंग करते हैं। यह काम करने की सुविधा मुफ्त में नहीं मिलती है। क्योंकि फ्रीलांसर भी होने वाली इनकम के लिए सरकार को टैक्स देने के लिए बाध्य होते हैं।  

चूंकि फ्रीलांसर अलग-अलग असाइनमेंट पर काम करते हैं और उनकी इनकम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सेवाओं से होती है, इसलिए उनकी आय पर टैक्स का कैलकुलेशन कई दफा माथापच्ची वाला काम हो सकता है। किसी भी टैक्स पेनाल्टी से बचने और ज्यादा से ज्यादा टैक्स छूट का लाभ उठाने के लिए हमेशा टैक्स सलाहकारों की सेवा लेने की सिफारिश की जाती है। 

ज्यादातर इंप्लॉयर फ्रीलांसर्स की फीस से टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) काट लेते हैं। ITR (इनकम टैक्स रिटर्न) जमा करते समय फ्रीलांसर काटे गए TDS का क्लेम कर सकते हैं। आप फॉर्म 26AS से काटे गए TDS की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। काटे गए TDS की कुल रकम इनकम टैक्स पोर्टल पर फॉर्म 26AS में उपलब्ध होती है। ऐसे मौके पर टैक्स की रकम 10,000 रुपए या उससे अधिक है तो फ्रीलांसर को हर तिमाही में पेमेंट करना होता है। हर तिमाही में दिया जाने वाला यह टैक्स एडवांस टैक्स होता है। 

टैक्स देते समय सबसे पहले, सभी प्राप्तियों (receipts) को जोड़ दिया जाता है। फिर खर्च और TDS काट लिया जाता है। इसके बाद अन्य साधनों से कमाई को जोड़ा जाता है। जैसे प्रॉपर्टी से हुई कमाई, ब्याज से कमाई, निवेश से फायदा (capital gain) आदि। फिर, जिस टैक्स स्लैब से वे संबंधित हैं, उसके अनुसार रकम की गणना की जाती है।   

जब इसमें फ्रीलांसर्स का टैक्स शामिल होता है तो उसे इनकम टैक्स रिटर्न (ITR-3 या ITR-4) दाखिल करना होता है। यह फ्रीलांसर के टैक्स का डिक्लेरेशन होता है। ITR डिक्लेरेशन में नीचे बताए गए विवरण शामिल होने चाहिए। सभी तरह के सेल और उनके सोर्स। सेल के लिए किया गया खर्च। एडवांस टैक्स के साथ अदा किए गया कुल टैक्स और संपत्तियों की कीमतों में गिरावट (depreciation)। 

किसी भी कैपिटल खर्च को खर्च के रूप में क्लेम नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आप लैपटॉप, फर्नीचर आदि की खरीदारी करते हैं तो इसके लिए क्लेम नहीं कर सकते हैं। GST उत्पादों और सेवाओं पर लगता है। फ्रीलांसिंग का काम भी सेवा के दायरे में आता है। इसलिए अधिकांश फ्रीलांस सेवाओं पर 18% GST लागू होता है। 

बिजनेस ऑनलाइन होने पर भी GST में कोई छूट नहीं मिलती है। भले ही ब्लॉगर अपने राज्य में अपने ब्लॉग पर जगह बेच (space sell) रहे हों, फिर भी वे GST के दायरे में आते हैं। यदि सेवाओं की कुल रकम 20 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक है तो GST अधिनियम के तहत उन्हें रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालांकि यह सीमा उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 10 लाख रुपए है। साथ ही, वे अपने व्यवसाय के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का भी क्लेम कर सकते हैं। इससे उनकी GST देनदारी कम होगी।  

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