टाटा की योजना, ग्राहकों को ऑन लाइन डिलिवरी में 1 घंटे में मिलेगी दवा
मुंबई– ऑनलाइन फार्मेसी 1mg एक्सप्रेस डिलीवरी लाने की योजना बना रही है। इसके जरिए यह ग्राहकों को एक घंटे के भीतर दवाओं को पहुंचा देगी। टाटा समूह ने हाल ही में इस कंपनी में हिस्सेदारी खरीदी है।
जानकारी के मुताबिक, यह नई दिल्ली और गुरुग्राम के कुछ हिस्सों में ऑर्डर मिलने के 4-5 घंटे के भीतर दवाओं की डिलीवरी शुरू कर चुकी है। इस सेवा को देश भर में एक एक्सप्रेस डिलीवरी के नाम पर ले जाने की प्लानिंग है। हालांकि यह टाटा द्वारा 1mg को खरीदने के बाद पहला बड़ा महत्वपूर्ण कदम होगा।
एक या दो घंटे के भीतर दवाओं की ऑन-डिमांड डिलीवरी को एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। क्योंकि इसकी ऑपरेटिंग कॉस्ट ज्यादा होगी और यह भी आशंका है कि लोग कम दाम के दवाओं का ऑर्डर करेंगे। इससे उनकी ऑपरेटिंग कॉस्ट और भी बढ़ सकती है।
इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, ई-फार्मेसी प्लेटफॉर्म पर औसत ऑर्डर साइज 1200-1500 रुपए है जबकि एक्सप्रेस डिलिवरी के लिए यह 600 रुपये होगा। यदि प्लेटफ़ॉर्म में न्यूनतम खरीद की रकम फ़िल्टर नहीं है तो यह और भी कम हो सकता है। 1mg ग्राहकों के लिए एक घंटे के भीतर डिलीवरी देने के लिए उत्सुक है। इसकी काफी मांग है, जो महामारी के बाद ही बढ़ी है। क्योंकि लोगों को कम से कम समय में विभिन्न दवाओं और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित उत्पादों की सख्त जरूरत देखी जा रही है। इसलिए इस योजना में तेजी लाने की कोशिश की जा रही है।
वेंचर कैपिटल फंड मैट्रिक्स पार्टनर्स द्वारा समर्थित बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप मायरा मुख्य रूप से दवाओं की एक घंटे की डिलीवरी पर काम करता थी। हालांकि 2019 में मेडलाइफ को खुद को बेचना पड़ा क्योंकि यह सीमित पूंजी के साथ यह चल नहीं पाई। मेडलाइफ को बाद में PharmEasy ने खरीदा और बाद में इसने भी एक्सप्रेस डिलीवरी बंद कर दी।
फिलहाल रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिकाना हक वाली नेटमेड्स 24-48 घंटे की स्टैंडर्ड डिलिवरी टाइमलाइन देती है। यह स्थानीय लॉकडाउन नियमों के आधार पर कुछ प्लेटफार्मों पर 72 घंटे तक भी हो सकता है। ऐसी एक्सप्रेस डिलीवरी को मैनेज करने में मुश्किल आ सकती है, लेकिन इसके अपने फायदे और नुकसान भी हैं। आने वाले दिनों में एक्सप्रेस डिलिवरी की डिमांड बढ़ सकती है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती एवरेज सेलिंग प्राइस होगी।
डिलीवरी की लागत मोटे तौर पर एक ऑर्डर के लिए उतना ही होगा, लेकिन जब इसे रिटर्न या एक्सचेंजों में देखा जाएगा तो कम ऑर्डर वाली डिलीवरी घाटे का सौदा होगी। एक्सप्रेस डिलिवरी एक लंबे समय का खेल है जहां किसी कंपनी को चार-पांच साल तक ऑपरेट करने के बाद सही परिणाम का आंकलन करना चाहिए। इसके लिए उस कंपनी को पर्याप्त पूंजी के साथ तीन-पांच साल तक लड़ना होगा ।
बेंगलुरु जैसे शहर में आपको 24-48 घंटे के भीतर की डिलीवरी के लिए चार गोदामों (warehouses) की आवश्यकता होगी। मुंबई में ऐसे सात-आठ की जरूरत होगी, जबकि दिल्ली-एनसीआर में एक दर्जन के करीब गोदामों की आवश्यकता होगी।
माना जा रहा है कि टाटा और अन्य निवेशकों की ओर से करीब 10 करोड़ डॉलर से अधिक की हालिया पूंजी ही इस नए वेंचर के निर्माण में 1मिलीग्राम की मदद करेगी। अधिकांश ई-फार्मेसी पुराने मरीज़ों को पर फोकस करती हैं जो पहले से अपनी खरीद की योजना बनाते हैं और हर महीने देर से दो बार दवाएं मंगाते हैं।
ग्राहक छूट के बदले में एक पॉइंट पर एक्सप्रेस डिलीवरी को महत्व देते हैं लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं। प्राइस वॉर के चरम पर ई-फार्मेसी, हर आर्डर पर औसतन 20-25% डिस्काउंट देती हैं। हालांकि पारंपरिक दुकानें इसका लगातार विरोध कर रही हैं।
वर्तमान में यह डिस्काउंट 12-15% के आस-पास है। यह देखना बाकी है कि टाटा और रिलायंस की पसंद आक्रामक मूल्य (aggressive pricing) की पेशकश को फिर से शुरू करेगी या नहीं। ई-मेडिसिन डिस्ट्रीब्यूशन को महामारी से लाभ हुआ है। ग्राहकों को अब पहले से कहीं ज्यादा तेजी से दवाओं की डिलीवरी की जरूरत महसूस की जा रही है। यही बात एक्सप्रेस डिलीवरी के पक्ष में जा रही है।