सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक के कर्मचारियों के लिए योजना, निजी बैंक बनने पर मिलेगा ऑफर
मुंबई– दो सरकारी बैंकों के प्राइवेट बनने के बाद इसमें कर्मचारियों के लिए बड़े पैमाने पर स्वेच्छा से रिटायरमेंट (VRS) का अवसर मिलेगा। यह काफी आकर्षक ऑफर होगा। इन दोनों बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं।
बैंक ऑफ इंडिया के पास 50 हजार कर्मचारी हैं, जबकि सेंट्रल बैंक में 33 हजार कर्मचारी हैं। इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी हैं। इस तरह कुल मिलाकर एक लाख से ज्यादा कर्मचारी इन चारों सरकारी बैंकों में हैं।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में दो बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस को निजी बनाने की बात कही थी। इसी के बाद से इन दोनों बैंकों का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि इसके तहत प्राइवेट सेक्टर के जो भी बैंक या कंपनी इन दोनों को लेगी, वह आकर्षक VRS ऑफर कर सकता है।
VRS ऐसी स्कीम है जिसके तहत आप जल्दी रिटायरमेंट ले सकते हैं और इसमें कंपनी की ओर से एक अच्छा फाइनेंशियल पैकेज दिया जाता है। यह आपकी इच्छा पर है, इसमें रिटायरमेंट का कोई दबाव नहीं होता है। हालांकि यह योजना प्राइवेट होने से पहले भी बैंकों की ओर से आ सकती है। नीति आयोग ने कैबिनेट सेक्रेटरी के नेतृत्व में हाई लेवल पैनल को दो बैंकों के नामों को प्राइवेट करने की सिफारिश की है। सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग ही इसे पूरा करेगा। हालांकि शुरुआत में सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक के साथ बैंक ऑफ महाराष्ट्र और बैंक ऑफ इंडिया का भी नाम सामने आया था।
सेक्रेटरीज के कोर ग्रुप द्वारा क्लियरेंस मिलने के बाद बैंकों के नाम को फाइनल करने का मामला अल्टरनेटिव मैकेनिज्म के पास मंजूरी के लिए जाएगा। साथ ही यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमिटी के पास भी जाएगा। रिजर्व बैंक भी सरकार के साथ इसमें बातचीत कर रहा है। हालांकि बैंक यूनियन लगातार इस योजना का विरोध कर रही है और अप्रैल में दो दिन का आंदोलन भी किया गया था। इस समय भी सोशल मीडिया पर इसका विरोध यूनियन कर रही हैं। प्रधानमंत्री स्वानिधी स्कीम के तहत 95% लोन सरकारी बैंक मंजूर करते हैं। इस स्कीम के तहत 10 हजार रुपए रोड पर धंधा लगाने वालों को दिया जाता है।
अकाउंट होल्डर्स का जो भी पैसा इन 4 बैंकों में जमा है, उस पर कोई खतरा नहीं है। खाता रखने वालों को फायदा ये होगा कि प्राइवेटाइजेशन के बाद उन्हें डिपॉजिट्स, लोन जैसी बैंकिंग सर्विसेज पहले के मुकाबले बेहतर तरीके से मिल सकेंगीं। एक जोखिम यह रहेगा कि कुछ मामलों में उन्हें ज्यादा चार्ज देना होगा। उदाहरण के लिए सरकारी बैंकों के बचत खातों में अभी एक हजार रुपए का मिनिमम बैलेंस रखना होता है। कुछ प्राइवेट बैंकों में मिनिमम बैलेंस की जरूरी रकम बढ़कर 10 हजार रुपए हो जाती है।