10.9 करोड़ टन गेहूं पैदा होने की उम्मीद, सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है ज्यादा पैदावार
मुंबई– एक तरफ जबकि भारत कोविड की दूसरी भयावह लहर से जूझ रहा है, दूसरी ओर नई दिल्ली के बाहरी इलाके में हजारों किसान अभी भी उन कैम्पों में डटे हुए हैं, जहां वे सरकारी कानून के विरोध में महीनों से धरने पर बैठे हैं। वे लगातार कहते आ रहे हैं कि किसान कानून उनके लिए काफी नुकसानदायक है। सरकार के लिए नई समस्या यह है कि इस साल देश में 10.9 करोड़ टन गेहूं की पैदावार हो सकती है।
किसानों का आंदोलन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को किसान कानून को वापस लेने का जबरदस्त दबाव बना रहा है। केंद्र सरकार इस कानून से कृषि को अधिक कुशल बनाने का दावा कर रही है। पर इस दौरान यह देखा जा रहा है कि किसान आंदोलन की धार कुंद ना पड़े इसलिए इस साल गेहूं की फसल की कटाई के लिए किसानों को गांवों की ओर आते और जाते देखा जा रहा है।
कम से कम किसानों के नजरिए से उनका लॉजिस्टिक काम कर रहा है। वे इस साल 10.9 करोड़ टन का रिकॉर्डतोड़ उत्पादन इकट्ठा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह सरकार के लिए अधिक सिरदर्द पैदा करने वाला होगा क्योंकि सरकार ने किसानों के गुस्से की ताकत को कम करके आंका है। ट्रेड से जुड़े सूत्रों का कहना है कि प्रदर्शनकारियों को लुभाने के लिए, राज्यों के अनाज खरीदार को गारंटीड कीमतों पर बड़ी मात्रा में गेहूं की खरीद करने की संभावना है जिससे सरकार का बजट और भी बिगड़ जाएगा।
फूड पॉलिसी एक्स्पर्ट्स देविंदर शर्मा ने कहा कि सरकार शायद यह मानती थी कि किसान फसल काटने के लिए अपने गांव को निकलेंगे, लेकिन वे ज्यादा से ज्यादा दिनों तक इस आंदोलन को चलाने के लिए जुटे हैं। कृषि नीति में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सरकार ने किसानों के साथ कई दौर की बातचीत की और सरकार किसानों के साथ अब भी बैठना चाहती है और उनकी शिकायतों को दूर करना चाहती है, लेकिन किसानों को भी खुले दिमाग से आगे आने की जरूरत है।
उन्होंने बताया कि किस तरह से हरियाणा राज्य के अनाज उगाने वाले शाहजहांपुर गाँव में किसानों के जाने के बावजूद उनकी साइट पर प्रदर्शनकारियों की संख्या लगातार बनी हुई है। स्वयंसेवकों ने यह सुनिश्चित करने के लिए गांव में रोस्टर तैयार किए हैं कि हर बार किसानों का एक समूह गेहूं की फसल काटने के लिए जाता है, तो उतनी ही तादाद में किसानों का दूसरा समूह विरोध प्रदर्शन में शामिल होता है। सिंधु बॉर्डर पर देख-रेख कर रहे एक आंदोलनकारी ने कहा कि हरियाणा के अलावा पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था थी, जहां किसानों का एक जत्था गाँव खेती करने जाता है तो दूसरा आंदोलन को सपोर्ट करने आ जाता है। सिंधु मे आयोजकों ने गर्मियों में प्रदर्शनकारियों के लिए सफेद टेंट और कूटिया बना दी है जो उन्हें गर्मी से राहत प्रदान करने में मदद कर रही है।
उन्हीं किसानों में से एक राजेंद्र बेनीवाल हैं, जिन्होंने कटाई में हिस्सा लेने के लिए मध्य अप्रैल में दिल्ली के उत्तर में लगभग 100 किमी की यात्रा की। उन्होंने काम पूरा होते ही विरोध प्रदर्शन पर लौटने का लक्ष्य रखा है। अपने 12 एकड़ के प्लॉट के बगल में गेहूं के फसल के पास खड़े 55 साल के इस किसान ने कहा कि मैं अपने गाँव के 23 किसानों के साथ आया हूँ। गेहूं की कटाई हमेशा से थोड़ा मुश्किल भरी रही है, लेकिन इस साल जैसा कभी नहीं हुआ। बड़ी निराशा होती है। फ़सल काटने के समय, कोई भी अपने खेतों और अपने गाँवों से दूर नहीं रहना चाहता है।
किसानों ने तीन कानूनों के विरोध में पिछले साल नवंबर में नई दिल्ली की ओर मार्च करना शुरू किया। मोदी, उनकी सरकार और कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि भारत की कृषि को आधुनिक बनाने के लिए कानूनों की आवश्यकता है, जिससे इस क्षेत्र में प्राइवेट इनवेस्टमेंट आकर्षक बन सके।
किसानों के कैम्प में अब स्वयंसेवकों ने फेस मास्क बांटना और कीटाणुनाशक का छिड़काव करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही हैंड सैनिटाइजर डिस्पेंसर भी लगा दिए हैं। पिछले साल से शुरू आंदोलन के साथ किसान अपनी आजीविका को नहीं भूले। नवंबर के अंत तक उन्होंने रिकॉर्ड 34.5 मिलियन हेक्टेयर पर गेहूं बोया था, जिसके परिणामस्वरूप इस साल की बंपर फसल का अनुमान लगभग 40 अरब डॉलर से अधिक है।
बम्पर फसल ने सरकारी अनाज खरीदार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के लिए समस्याएं खड़ी कर दी हैं, जो उत्पादन बढ़ने पर अधिक गेहूं खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है। चूंकि निजी वैश्विक व्यापारिक कंपनियां कोरोना के बीच गायब हैं इसलिए इन फसल की खरीदारी का दारोमदार सरकार पर ही होगा।1 अप्रैल को एफसीआई के गोदामों में गेहूं का स्टॉक लक्ष्य से लगभग चार गुना अधिक 2.73 करोड़ टन था। 13.6 मिलियन के लक्ष्य के बावजूद कुल चावल 49.9 मिलियन टन जमा था। पिछले साल एफसीआई को अस्थायी शेड (temporary sheds) में 14 मिलियन टन से अधिक गेहूं का स्टोरेज करना था। अब 2021/22 में अधिक अस्थायी स्टोरेज खोजना होगा।
पिछले एक दशक में, एफसीआई ने किसानों से गेहूं और सामान्य चावल खरीदने की कीमत क्रमशः 64% और 73% बढ़ाई है जबकि इस दौरान स्टोरेज लागत भी बढ़ी है। फिर भी एफसीआई हर महीने 5 किलोग्राम गेहूं और चावल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को क्रमशः 2 रुपए और 3 रुपए किलो पर बेचता है।
एफसीआई का कर्ज 3.81 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ गया है, जो कि खतरनाक है। मार्च 2021 तक के वित्तीय वर्ष में, सरकार ने अपने 2020-21 के खाद्य सब्सिडी बिल के लिए FCI को 3.44 लाख करोड़ रुपए दिए। इसमें 1.18 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त दिए गए, ताकि यह अपने कर्ज को कम कर सके। एफसीआई को अतिरिक्त आवंटन और राजस्व में कमी के कारण भारत का राजकोषीय घाटा 3.5% से बढ़कर 9.5% हो गया।
भारतीय गेहूं की कीमत इस समय विदेशों में 280 डॉलर प्रति टन है जबकि अच्छी क्वालिटी वाले ऑस्ट्रेलियाई गेहूं की कीमत 220- 225 डॉलर प्रति टन है। जून-जुलाई तक, रूस और यूक्रेन से भी गेहूं आ जाएगा जिससे भारतीय निर्यात का दरवाजा पूरी तरह से बंद हो जाएगा। भारत की हालिया बंपर फसल 1960 के दशक की “हरित क्रांति” का परिणाम है। इसने सरकार को 2014 और 2015 में सूखे से उबरने में मदद की और मोदी के प्रशासन को पिछले साल के लॉकडाउन के दौरान मुफ्त अनाज वितरित करने के योग्य बनाया।