भाजपा को जिताने वाली मायावती को मिलेगा बंपर इनाम, बन सकती हैं राष्ट्रपति
मुंबई- उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मायावती ने जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को जिताने में अहम भूमिका निभाई, लग रहा है उनको इसका बड़ा इनाम मिल सकता है। या तो उनको राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का पद मिलेगा।
इसके जरिए भाजपा कई निशाना साधेगी। मायावती दलित समुदाय से हैं और उत्तर प्रदेश से हैं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा अच्छा दांव खेलेगी। इस बार विधानसभा में मायावती का पूरी दलित मतदाता भाजपा की ओर चला गया, जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। अगर मायावती दमखम के साथ लड़ी होतीं तो समाजवादी पार्टी जीत सकती थी। मायावती ने वहीं अपना उम्मीदवार खड़ा किया जहां समाजवादी पार्टी के वोटर थे।
बसपा ने यूपी की कुल 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें 91 मुस्लिम बहुल, 15 यादव बहुत सीटें थीं। ये ऐसी सीटें थीं, जिसमें सपा की जीत की प्रबल संभावना थी। इनमें से अधिकतर सीटों पर भाजपा ही जीती। अगर आप पिछले छह महीने की राजनीतिक सरगर्मियो को ध्यान से देखे तो बसपा जानबूझकर स्लीपिंग मोड में थी, जिस पार्टी को पिछले चुनाव में 22 प्रतिशत वोट मिला हो ऐसी उदासीनता दर्शाए।
इसका साफ मतलब यही था कि मायावती को अपना वोट शेयर बीजेपी की तरफ शिफ्ट करने मे कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों ने 403 सीटों में से 273 सीटों पर जीत हासिल की है। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार उसे 52 सीटों का नुकसान हुआ है। भाजपा के लिए ये जीत इतनी आसान नहीं थी। ये बात भाजपा भी जानती थी। यही कारण था कि गृहमंत्री को रोड पर पर्चा बांटने के लिए उतरना पड़ा।
भाजपा ने दलित और जातिगत आधारित राजनीति का कार्ड खुल कर खेला। भाजपा ने भी अपनी एक समय की दुश्मन बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ अंदरखाने में गठबंधन बनाकर, समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोटों में सेंध लगा कर किसी तरह सत्ता हथिया ली है। कभी उत्तर प्रदेश की ताकतवर नेता रहीं मायावती ने अपने कार्यकाल में काली कमाई से बेहिसाब संपत्ति बना ली है। इसलिए यह भी संभावना है कि उन्हें ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी का डर दिखाया गया हो।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति सबसे बड़ा मुद्दा होता है। उत्तर प्रदेश में 20% यानी कि 4 करोड़ मुस्लिम मतदाता हैं। इनमें 143 सीटों पर मुसलमान वोटों का बहुमत है। 107 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित हुए। और इन सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का दबदबा था। सपा के इस किले में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने मायावती की मदद ली थी।
बीजेपी ने अपने टिकट पर राज्य में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा। बसपा ने 88 और समाजवादी पार्टी ने 61 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। जोकि स्वाभाविक रूप से मुस्लिम वोटों में विभाजन का कारण बना। समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बंट गए, इस कारण भाजपा की जीत का आंकड़ा बढ़ गया।
बसपा ने 28 विशेष सीटों पर मजबूत मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की भी कोशिश की, जिन्हें समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है और वहां मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है। इतना ही नहीं, उन्हें भाजपा द्वारा आर्थिक मदद भी दी गई। यही कारण रहा कि सपा के उम्मीदवारों को वहां हार का मुंह देखना पड़ा।
बसपा-भाजपा के इस गठजोड़ के चलते जहां भाजपा के दमदार उम्मीदवार खड़े थे वहां मायावती ने कमजोर उम्मीदवार उतारे और भाजपा की जीत की राह आसान बनाई। इसी तरह ओवसी की पार्टी भी इस बार 103 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उन्हें ज्यादा वोट नहीं मिले लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने और सपा उम्मीदवारों के वोट काटने का काम किया।
बीते कई साल से बसपा ने कोई हिसाब-किताब ही नहीं दिया है। राष्ट्रीय पार्टियों में वह इकलौती है, जो यह दावा करती है कि उसे सारे डोनेशन 20 हज़ार रुपए से कम के मिलते हैं। यानी 1 रुपए से लेकर 19,999 तक। क्योंकि इससे ज्यादा का चंदा मिला तो उसका हिसाब देना होता है। मायावती यह भी दावा करती रहती हैं कि उनके समर्थक ग़रीब हैं और उन्हीं के चंदे से पार्टी चलती है।