देश में 2041 तक 23.9 करोड़ होगी बुजुर्गों की आबादी, पर फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए कोई योजना नहीं

मुंबई– जिस तरह से देश में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि 2041 तक इनकी आबादी 23.9 करोड़ हो जाएगी। 2011 में यह कुल जनसंख्या की तुलना में 8.6% थी जो बढ़कर 2041 में 15.9% हो जाएगी। इससे सामाजिक और आर्थिक स्तर पर नीति निर्माण के लिए बड़ी चुनौतियाँ खड़ी होने वाली है।  

दरअसल पूरी दुनिया में वरिष्ठ नागरिकों के अलावा आम लोगों के लिए भी एक सोशल सिक्योरिटी या फाइनेंशियल सिक्योरिटी का कांसेप्ट है। पर भारत में यह है ही नहीं। व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं वाले विकसित देशों के विपरीत, भारत आर्थिक रूप से इतना सक्षम नहीं है कि यह अपने बुजुर्ग नागरिकों को एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवर प्रदान कर सके। हालांकि पिछले 7 वर्षों में भारत सरकार ने कम कमाई वाले अपने नागरिकों की सामाजिक समग्रता (social inclusiveness) बढ़ाने के लिए कई पहल की है। 

भारत में परिवारों की फाइनेंशियल सेविंग्स के प्रमुख घटकों में से एक स्माल सेविंग्स है। इसे हाल में लेकर तब हंगामा मचा, जब इन स्कीम की ब्याज दरों में भारी कटौती की गई। हालांकि सुबह होते-होते सरकार ने इसे वापस तो ले लिया, पर इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है। वजह यह है कि पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। पश्चिम बंगाल की इस स्माल सेविंग स्कीम में 15% हिस्सेदारी है। सरकार को डर था कि कहीं इस फैसले से उसके वोटर न बिदक जाएं। यही कारण था कि रातों रात इस फैसले को वापस लेना पड़ा। हो न हो कि चुनाव खत्म होने के बाद सरकार फिर से इनकी दरों में कमी कर दे।  

पोस्ट ऑफिस की सेविंग डिपॉजिट को ऐसे लोगों के साथ जोड़ा जाता है जिनकी आय नहीं है। जबकि बैंक डिपाजिट को हमेशा उन लोगों से जोड़ा जाता है, जो कमाई करते हैं। इससे संकेत मिलता है कि गरीब लोग अपनी बचत के लिए डाकघरों पर अधिक निर्भर हैं। जब आय में वृद्धि होती है तो वे पहले बैंक डिपॉजिट्स में शिफ्ट होते हैं न कि फाइनेंशियल प्रोडक्ट के लिए जाते हैं। 

पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार जैसे प्रति व्यक्ति कम आय वाले राज्यों में 60 साल से ज्यादा की बुजुर्ग आबादी पोस्ट ऑफिस सेविंग डिपाजिट में निवेश करने को वरीयता देती है। जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे इलाकों में बैंकों में जमा को प्राथमिकता दी जाती है। स्मॉल सेविंग्स के पीछे लोग क्यों भाग रहे हैं? यदि हम कुल स्मॉल सेविंग कलेक्शन्स पर पिछले 20 वर्षों के आंकड़ों को देखते हैं तो हम स्पष्ट रूप से 2008-09 में स्ट्रक्चरल ब्रेक देखते हैं। खासतौर पर वैश्विक वित्तीय संकट के चलते ग्रॉस स्मॉल सेविंग कलेक्शन्स में विभिन्न राज्यों की हिस्सेदारी में गिरावट आ रही थी।  

2008 में वित्तीय संकट के बाद, पोस्ट ऑफिस सेविंग्स में लोगों की दिलचस्पी अचानक बढ़ गई। यह बढ़ोतरी पश्चिम बंगाल जैसे कम आय वाले राज्यों में और यहां तक कि महाराष्ट्र जैसे उच्च आय वाले राज्यों में भी अधिक हो गई। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भारी पोस्ट ऑफिस कलेक्शन और किसान विकास पत्र में भारी निवेश से यह पता चलता है कि यहां वित्तीय साक्षरता की भारी कमी है।  

विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में जहां अक्सर वामपंथी राजनीतिक विचारधारा हावी होती है। इनका मानना है कि मार्केट जो भी करता है, वह सब कुछ खराब होता है। वहां गरीब लोग ज्यादातर चिटफंड का सहारा लेते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण 20,000-30,000 करोड़ रुपए का शारधा घोटाला है। ज्यादातर इस प्रकार के घोटाले राजनीतिक व्यवस्था की उपज भी होते हैं।  

एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष कहते हैं कि सरकार ने छोटी बचत योजनाओं (स्मॉल सेविंग स्कीम) की ब्याज दरों में बदलाव नहीं करने का सबसे अच्छा फैसला लिया है। क्योंकि वर्तमान में हम महामारी संकट से गुजर रहे हैं। हालांकि, अभी भी सरकार को ऐसा कदम उठाना चाहिए जो सभी के लिए फायदेमंद हो सकता है ।  

वे कहते हैं कि सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम पर मिलने वाला ब्याज पूरी तरह से कर योग्य (taxable) है। इसके तहत 20 फरवरी का बकाया 73,725 करोड़ रुपए था। यदि इसे पूरी तरह से टैक्स छूट दे दिया जाए तो इसका सरकारी खजाने पर नाममात्र प्रभाव पड़ेगा। घोष कहते हैं कि इस बात पर गंभीर विचार किया जा सकता है कि क्या भारत में डिपॉजिट्स पर ब्याज दरें उम्र के आधार पर तय हो सकती है? यह भी एक अच्छा कदम हो सकता है।  

वे कहते हैं कि स्मॉल सेविंग स्कीम की ब्याज दरों की हर तिमाही में समीक्षा होती है, इसलिए सरकार को पीपीएफ के लिए 15 वर्ष की लॉक-इन अवधि को हटा देना चाहिए। साथ ही निवेशकों को किसी प्रकार के चार्ज या कटौती के बिना तय समय के भीतर पैसा निकालने का विकल्प देना चाहिए। 

छोटी बचत के कलेक्शन में राज्यों का हिस्सा देखें तो पश्चिम बंगाल टॉप पर है। यहां कुल बचत में इसका हिस्सा 15% है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों का हिस्सा 11.1% है। इसी तरह उत्तर प्रदेश का कुल बचत का हिस्सा 11.7% है जबकि वरिष्ठ नागरिकों का हिस्सा इसमें 7.90% है। महाराष्ट्र में यह 10.6 और 11.5% है। गुजरात में यह 4.8 और 13.3% है। यानी यहां के वरिष्ठ नागरिक ज्यादा भरोसा स्मॉल सेविंग स्कीम में जताते हैं। इन आंकड़ों से पता चलता है कि देश में कुल स्मॉल सेविंग में टॉप 5 राज्यों का हिस्सा 50% है।  

पिछले 1 सालों में देखें तो सेविंग डिपॉजिट, पीपीएफ, 5 साल की रिकरिंग डिपॉजिट, 1 से 5 साल की टर्म डिपॉजिट, वरिष्ठ नागरिकों की स्कीम, पोस्ट ऑफिस मासिक आय स्कीम, किसान विकास पत्र, नेशनल सेविंग और सुकन्या समृद्धि जैसी स्कीम की ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इनकी ब्जाय दरें 4% से लेकर 7.6% के बीच ही हैं। सबसे ज्यादा ब्याज सुकन्या समृद्धि पर मिलती है जो 7.6% है।  

देश में कुल 4.88 लाख करोड़ रुपए की स्मॉल सेविंग की डिपॉजिट पोस्ट ऑफिस में है जबकि बैंकों में स्मॉल सेविंग की डिपॉजिट की रकम 1.08 लाख करोड़ रुपए है। कुल 5.96 लाख करोड़ रुपए स्मॉल सेविंग में लोगों ने जमा किए हैं। इसमें वरिष्ठ नागरिकों का हिस्सा 9.7% है।  

घोष कहते हैं कि ऐसी स्थिति आगे बहुत चुनौती वाली हो सकती है। क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ेगी। फाइनेंशियल दिक्कतें होंगी और बूढ़े होने पर ढेर सारी बिमारियां भी होंगी। वे कहते हैं कि देश में 4.1 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों की टर्म डिपॉजिट है जिसमें कुल 14 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। एक अकाउंट की औसत जमा 3.3 लाख रुपए है। देश में केवल 5.8 करोड़ लोग ही अलग-अलग पेंशन सिस्टम के तहत कवर हैं।   

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