नए लेबर वेज को रोकने के लिए सीआईआई, फिक्की सहित अन्य संगठन करेंगे मीटिंग
मुंबई- कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) और फिक्की जैसे इंडस्ट्री बॉडी के प्रतिनिधि गुरुवार को रोजगार मंत्रालय के टॉप अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे। बैठक में मजदूरी (वेज) की नई परिभाषा को लागू करने को कुछ समय तक के लिए रोकने के लिए बात होगी। नई मजदूरी का मतलब यह है कि इससे सामाजिक सुरक्षा कटौती (social security deductions) में वृद्धि होगी और कामगारों के हाथ में आने वाली सैलरी में कमी आएगी।
उद्योग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि अन्य उद्योग संगठनों के बीच CII और फिक्की के प्रतिनिधि 24 दिसंबर को केंद्रीय श्रम मंत्रालय के टॉप अधिकारियों से मिलेंगे ताकि मजदूरी की नई परिभाषा पर चर्चा की जा सके। इस नए वेज को 1 अप्रैल 2021 तक लागू किए जाने की संभावना है।
सूत्र ने यह भी कहा कि पैरवी करने वाले चाहते हैं कि वेज की नई परिभाषा को सरकार होल्ड पर रखे। क्योंकि इससे और डर है कि इससे हाथ में आने वाला पैसाा काफी कम हो जाएगा और कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ेगा। मजदूरी की नई परिभाषा पिछले साल संसद द्वारा पारित मजदूरी की संहिता (Code on Wages) का हिस्सा है। इस कानून को लागू करने के नियमों को भी पिछले साल कड़ा कर दिया गया था। अब, इसे औद्योगिक संबंधों (industrial relations), सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक स्वास्थ्य सुरक्षा तथा कामकाजी परिस्थितियों पर अन्य तीन कोड के साथ 1 अप्रैल, 2021 से लागू करने की योजना है।
नई परिभाषा में प्रावधान है कि किसी कर्मचारी का भत्ता (allowance) कुल वेतन के 50 पर्सेंट से अधिक नहीं हो सकता। इससे प्रॉविडेंट फंड जैसी सामाजिक सुरक्षा कटौती बढ़ेगी। वर्तमान में कंपनियां और कर्मचारी EPFO द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में 12 पर्सेंट का योगदान करते हैं।
वर्तमान में बड़ी संख्या में कंपनियां सामाजिक सुरक्षा योगदान को कम करने के लिए सैलरी को कई भत्तों में बांट देते हैं। इससे कर्मचारियों के साथ-साथ उन्हें भी मदद मिलती है जैसे कि कामगारों के टेक-होम सैलरी में वृद्धि होती है। कंपनियां भविष्य निधि अंशदान देयता (provident fund contribution liability) को कम करती हैं।
कुल सैलरी के 50 पर्सेंट तक भत्ता सीमित करने से उन कर्मचारियों को ग्रेच्युटी भुगतान पर कंपनियों का भुगतान भी बढ़ेगा जो एक फर्म में पांच साल से अधिक समय तक काम करते हैं । ग्रेच्युटी की दर भी औसत वेतन के अनुपात में निर्धारित की जाती है। सूत्र ने कहा कि उद्योग संस्थान इस बात से सहमत हैं कि इससे कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा का लाभ बढ़ेगा लेकिन मौजूदा आर्थिक मंदी के चलते अभी इसे लागू करने के हालात नहीं हैं।
उद्योग संगठन चाहते हैं कि जब तक अर्थव्यवस्था में फिर से रिकवरी नहीं हो जाती तब तक इसे लागू नहीं करना चाहिए। इस बीच, श्रम मंत्रालय ने केंद्रीय सलाहकार बोर्ड के गठन के लिए सक्षम प्रावधानों को बताया है। इसका मुख्य काम न्यूनतम मजदूरी तय करने और देश में रोजगार बढ़ाने के तरीकों पर सरकार को सलाह देना है।