जानिए कैसे वेदांता के प्रमोटर्स ने कोरोना में निवेशकों को ठगने की कोशिश की, मर्चेंट बैंकर्स ने गलत सलाह दी

मुंबई– वेदांता लिमिटेड के शेयरों की डिलिस्टिंग ने अब कंपनी की साख और मर्चेंट बैंकर्स के वैल्यूएशन को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। दरअसल इस पूरे मामले में मर्चेंट बैंकर्स ने जो सलाह दी, वह गलत निकली। साथ ही कंपनी के प्रमोटर्स ने कोरोना का फायदा उठाने के लिए एकदम कम भाव पर शेयरों की ऑफरिंग की। यही कारण है कि डिलिस्टिंग बुरी तरह से फ्लॉप हो गई।  

डिलिस्टिंग फेल कैसे हुई 

दरअसल डिलिस्टिंग फेल इसलिए हुई क्योंकि म्यूचुअल फंड के साथ-साथ जो भी निवेशक हैं, सबका एक औसत प्राइस प्रति शेयर 140 रुपए के आस-पास है। किसी ने 140 पर खरीदा, किसी ने 120 पर खरीदा, किसी ने 70 पर तो किसी ने 160 पर खरीदा। अब औसत प्रति शेयर कीमत 140 है तो कोई भी निवेशक इसे 87.25 रुपए में नहीं दे सकता है।  

डिलिस्टिंग के लिए किस भाव पर शेयर मिले 

डिलिस्टिंग के लिए अलग-अलग भाव पर शेयर मिले। किसी ने 155 पर ऑफर किया, किसी ने 175 पर ऑफर किया, किसी ने 320 पर ऑफर किया और किसी ने उससे ज्यादा भाव पर ऑफर किया।  

डिलिस्टिंग का भाव क्यों इतना कम रखा गया 

डिलिस्टिंग के लिए कंपनी ने जे पी मोर्गन को मर्चेंट बैंकर्स चुना था। मर्चेंट बैंकर्स की सलाह पर ही यह भाव रखा गया। 

कोरोना में क्यों लाया गया 

दरअसल कंपनी ने इस मामले में कोरोना में फायदा उठाना चाहा। कंपनी को लगा कि 87 रुपए में लोग कोरोना में ऑफर कर सकते हैं। लेकिन इस पर कंपनी फेल हो गई। यह अनुमान गलत साबित हुआ।  

कंपनी को कितना भाव रखना चाहिए था 

विश्लेषकों के मुताबिक कंपनी को इस डिलिस्टिंग के लिए कम से कम 180-190 रुपए प्रति शेयर भाव तय करना चाहिए था। क्योंकि ज्यादातर लोगों ने इससे थोड़े कम भाव पर शेयर खरीदा है। ऐसे में अगर 180-190 होता तो कंपनी की डिलिस्टिंग पूरी हो जाती।  

क्या एलआईसी अगर ऑफर नहीं करती तो भी डिलिस्टिंग पूरी हो जाती 

हां, क्योंकि एलआईसी के पास 6 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा हिस्सेदारी है। डिलिस्टिंग के लिए 90 प्रतिशत की जरूरत थी। ऐसे में कंपनी अगर 180 रुपए भाव रखती तो बिना एलआईसी के भी यह ऑफर पूरा हो जाता।  

क्या कंपनी के पास और कोई रास्ता था 

हां, इस पूरे मामले में कंपनी ने जल्दबाजी की। अगर उसे कम भाव पर यह ऑफर लाना था तो उसे पहले खुले बाजार से शेयर खरीदना चाहिए था। जब डिलिस्टिंग का ऑफर हुआ था, उस समय शेयर का भाव 92-94 रुपए चल रहा था। अगर उस समय कंपनी खुले बाजार से शेयर खरीदती तो करीबन 75-80 प्रतिशत उसकी हिस्सेदारी हो सकती थी। इसके बाद वह 150-180 के भाव पर 10 प्रतिशत शेयर खरीद सकती थी। इस तरह से कंपनी कम भाव पर ही इस डिलिस्टिंग को पूरा कर सकती थी। 

क्या कंपनी को आगे कोई नुकसान होगा 

कंपनी की इमेज और क्रेडिबिलिटी जरूर प्रभावित हुई है। अब कोई भी संस्थागत या अन्य निवेशक इस कंपनी के शेयरों में पैसे नहीं लगाएगा। क्योंकि इस डिलिस्टिंग के ऑफर में निवेशकों के लिए घाटे के सिवा कोई और मामला नहीं था।  

क्या शेयरों की कीमत बढ़ाकर डिलिस्टिंग नहीं की जा सकती थी 

नहीं, क्योंकि कंपनी के पास अभी जो पैसा था, वह 148 रुपए प्रति शेयर के भाव पर था, उसके पास इससे ज्यादा पैसा नहीं था। अब अगर कंपनी भाव को बढ़ाती तो उसे दस दिन के अंदर यह सभी पैसे देने होते। ऐसे में यह संभव नहीं था कि प्राइस रिवाइज करके ऑफरिंग की जाए।  

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