म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं आप तो जानिए ज्यादा रिस्क क्यों होगा, सेबी ने कहा अब 6 जोखिम की जानकारी देनी होगी
मुंबई- आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। आपको इसके जोखिम के बारे में अब तक जो पता था, उससे ज्यादा अब पता चलेगा। पूंजी बाजार नियामक सेबी ने अब बताया है कि 6 जोखिम के बारे में म्यूचुअल फंड कंपनियों को जानकारी देनी होगी। अभी तक पांच जोखिम के बारे में जानकारी दी जाती थी। इस तरह से आपको निवेश करने से पहले इन 6 जोखिमों को जानना चाहिए।
सेबी ने इस संबंध में एक सर्कुलर जारी किया है। सेबी ने इसमें बहुत ज्यादा जोखिम (वेरी हाई रिस्क) कैटिगरी की शुरुआत की है। नई स्कीम के साथ साथ पुरानी स्कीमों के लिए भी ऐसा करना जरूरी होगा। बता दें कि अभी तक रिस्क को मापने के लिए मौजूदा 5 श्रेणियां हैं। इसमें लो, मॉडरेट लो, मॉडरेट, मॉडरेट हाई और हाई। अब इसमें वेरी हाई भी जोड़ा जाएगा।
सर्कुलर के मुताबिक सभी म्यूचुअल फंड्स के लिए हर महीने इस रिस्क-ओ-मीटर की समीक्षा करनी होगी। बदलाव की जानकारी ई-मेल या एसएमएस के ज़रिए सभी यूनिटहोल्डर्स को देनी होगी। पोर्टफोलियो का ब्योरा भी महीना पूरा होने के 10 दिन के भीतर अपनी और एंफी की वेबसाइट पर बताना होगा। साथ ही कारोबारी साल खत्म होने के बाद यह बताना होगा कि कारोबारी साल की शुरुआत में क्या था और कारोबारी साल के अंत में रिस्क-ओ-मीटर में क्या बदलाव हुआ और कितनी बार हुआ।
इक्विटी में ये होंगे जोखिम
इक्विटी सेगमेंट में मार्केट कैपिटलाइजेशन, वोलाटिलिटी और इंपैक्ट कॉस्ट को पैमाना बनाया गया है। मार्केट कैपिटलाइजेशन डेटा एंफी की छमाही रिपोर्ट से तय होगी। वोलाटिलिटी के लिए सिक्योरिटी की कीमत में रोजाना उतार-चढ़ाव आधार होगा। इसके लिए दो साल के आंकड़ों को आधार बनाया जाएगा। इंपैक्ट कॉस्ट का मतलब शेयर को बेचने और खरीदने की लागत कितनी आती है, इससे तय होगा।
डेट में ये जोखिम होंगे
अगर कोई डेट सिक्योरिटी है तो उसके लिए क्रेडिट रिस्क वैल्यू, इंटरेस्ट रेट रिस्क वैल्यू और लिक्विडिटी रिस्क वैल्यू अहम पैमाना होगा। क्रेडिट रिस्क में क्रेडिट रेटिंग के आधार पर जोखिम तय होगा। जबकि इंटरेस्ट रेट रिस्क के लिए पोर्टफोलियो के मैकाले ड्यूरेशन को आधार बनाया जाएगा। लिक्विडिटी रिस्क निकालने के लिए क्रेडिट रेटिंग के अलावा लिस्टिंग की स्थिति और डेट के स्ट्रक्चर को आधार बनाया जाएगा।
बता दें कि हाल में म्यूचुअल फंड में अच्छा खासा निवेशकों ने निवेश किया है। इसलिए सेबी ने अब रिस्क को ज्यादा बढ़ा दिया है। यानी म्यूचुअल फंड हाउसों को रिस्क के बारे में ज्यादा जानकारी निवेशकों को देनी होगी। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि अगर कोई निवेशक पैसा लगाता है तो उसे पैसा लगाने से पहले इस तरह के जोखिम का पता रहे। ताकि वह निवेश करते समय सावधानी बरते।