आईएलएंडएफएस के ऑडिट के मामले में डेलॉय के ऑडिटर पर पांच साल का प्रतिबंध और 15 लाख रुपए का जुर्माना लगा
(अर्थलाभ संवाददाता)
मुंबई- आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड (आईफिन) के ऑडिट के मामले में नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (एनएफआरए) ने डेलॉय हैस्किंस एंड सेल्स एलएलपी के प्रोफेशनल ऑडिटर पर 15 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। इसके साथ ही पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया है। इसी ऑडिटर ने 2017-18 के लिए आईफिन का ऑडिट किया था। यह आदेश डेलॉय में पार्टनर और आईफिन ऑडिट पर रिव्यू पार्टनर श्रेनिक बैद द्वारा प्रोफेशनल मिसकंडक्ट (professional misconduct) के आरोपों को लेकर जारी किया गया।
पिछले हफ्ते जारी किए गए पहले के दो आदेशों में डेलॉय के पूर्व सीईओ उदयन सेन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना और सात साल का प्रतिबंध लगा था। इसी तरह आईफिन के ऑडिट में एंगेजमेंट क्वालिटी कंट्रोल समीक्षक रहे रुकशाद दारूवाला पर पांच लाख रुपए का जुर्माना और पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया था।
बैद के खिलाफ प्रोफेशनल मिस कंडक्ट के अपने आरोपों में एनएफआरए ने कहा कि चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) ने घोर लापरवाही बरती। वित्तीय डिटेल्स में उन्होंने सही काम नहीं किया। इससे तथ्यों और सामग्री के गलत बयानों का खुलासा करने में विफलता हाथ लगी।
92 पेज के आदेश में कहा गया है कि सेन सौंपी गई जिम्मेदारी की हैसियत से एक सच्चे इंगेजमेंट पार्टनर (EP) थे। बैद डी फॅक्टो इंगेजमेंट पार्टनर थे। जो रोजाना के आधार पर लेखा परीक्षक के प्रमुख पहलुओं की निगरानी कर रहे थे। आदेश में कहा गया कि यह निश्चित रूप से ऑडिट क्वालिटी में विफलता के मुख्य कारणों में से एक था जो अब साबित हो गया है। इसमें जवाबदेही नहीं निभाई गई और क्वालिटी कंट्रोल के सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया गया।
बैद का कहना था कि वह एंगेजमेंट में भागीदार थे और इंगेजमेंट पार्टनर के बजाय ऑडिट के कुछ पहलुओं की देखरेख के लिए जिम्मेदार थे। एनएफआरए ने कहा कि कंपनी एक्ट की धारा 144 का उल्लंघन करते हुए डेलॉय को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आईफिन की ऑडिट कमिटी की मंजूरी के बिना ऑडिट होने वाली कंपनी या उसकी होल्डिंग कंपनी को प्रतिबंधित सेवाएं प्रदान करते हुए पाया गया।
एनएफआरए ने कहा कि इस तर्क ने मैनेजमेंट की जिम्मेदारियों के साथ मैनेजमेंट सेवाओं की बराबरी की। एक के बाद एक कार्रवाई ने पूरी इंडस्ट्री को हाई अलर्ट पर डाल दिया है। अब सबकी निगाहें 31 जुलाई को दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर टिकी है। इस फैसले से तय होगा कि एनएफआरए के आदेश प्रभावी होते हैं या नहीं। फरवरी में दारूवाला ने इस मामले की जांच के लिए एनएफआरए के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। तीनों मामलों में एनएफआरए ने उल्लेख किया है कि उसके आदेश 31 जुलाई तक प्रभावी नहीं होंगे।