लॉकडाउन खुला, 20.97 लाख करोड़ का पैकेज मिला और एमएसएमई को लोन में राहत भी मिली पर छोटे उद्योग अभी भी जूझ रहे हैं

मुंबई-महीनों के लॉकडाउन के बाद जून में फिर से कारोबार खोल दिया गया, लेकिन दिल्ली के पास मेरठ शहर के हजारों छोटे उद्यमियों के लिए यह झटका विनाशकारी रहा है। टेक्सटाइल से लेकर खेल के सामान और फर्नीचर के कारोबार या तो बंद हैं या आधी अधूरी क्षमता से काम कर रहे है। जो सड़कें और गलियां कभी  आने जाने वाले कामगारों से लगातार भरी रहती थीं, आज उन सड़कों और गलियों में आवारा पशु घूम रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 20.97 लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेज भी इन से छोटे व्यवसायों को अपने पैरों पर फिर से खड़ा करने में नाकाफी लग रहा है। देश के करीब 3 दर्जन से ज्यादा कारोबारियों से बात करने पर ऐसा लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बन चुकी कई कंपनियों को बचाने के लिए यह मदद पर्याप्त नही है।

कुछ ने कहा कि महामारी के कारण उनका व्यापार इतना बुरी तरह से प्रभावित हुआ है कि उन्हें कोई नया लोन लेने की जोखिम उठाने का मतलब नहीं दिखता है। उन्होंने कहा कि इससे बढ़िया तो यह होता कि सरकार वस्तुओं और सेवा कर (जीएसटी) में कटौती कर और ब्याज दर माफ कर उन्हें थोड़ी राहत देती।

एक करोड़ रुपए के सालाना टर्नओवर  का बिजनेस करने वाले अशोक की कंपनी मेरठ के होटलों और स्कूलों के लिए स्टील फर्नीचर के कामकाज में लगी हुई है। अशोक ने कहा कि उन्होंने अपने 10 में से 8 कामगारों को निकाल दिया है। पूरा बिजनेस बंद करने के बारे में सोच रहे हैं। अशोक ने कहा, मैं लोन लेने के लिए दर-दर भटकता फिरूँ, इससे तो बढ़िया यही होगा कि मैं अपना पूरा बिजनेस ही बंद कर दूं। उन्होंने कहा कि उनके बैंकर ने उन्हें बताया कि उनकी क्रेडिट कम है। क्योंकि उनका कारोबार संघर्ष के दौर से गुजर रहा है।

छोटे व्यवसाय जो भारत की 2.9 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का लगभग एक चौथाई हिस्सा है और 50 करोड़ से अधिक मजदूरों को रोजगार देते हैं वे महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशंस ने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखे पत्र में कहा है कि सरकारी सहायता के अभाव में देश भर के 65 करोड़ छोटे कारोबारों में से लगभग 35 प्रतिशत जल्द ही बंद हो सकते हैं।

बैंकरों ने कहा कि लोन देने के लिए सरकार का दबाव है, लेकिन मांग कम रहने के कारण कारोबारी आगे नहीं आ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक बैंकों ने 561 अरब रुपए लोन दिया है, जो निर्धारित राशि का मुश्किल से 19 प्रतिशत है। मई के तीसरे सप्ताह से 1,145 अरब रुपए के लोन को मंजूरी दी है। व्यवसायों का कहना है कि बैंक्स या तो ज्यादा कागजी कार्रवाई के लिए पूछ रहे हैं या तो जो लोग लोन लेने के लिए ज्यादा हताश दिखाई दे रहे हैं उन्हें अयोग्य ठहरा दिया जा रहा है।

मोदी के गृह राज्य गुजरात के एक उद्यमी ने कहा, मुझे जमानत (collateral) प्रदान करने और लोन प्राप्त करने के लिए एक बीमा खरीदने के लिए कहा गया था, जबकि इसे जमानत मुक्त माना जाता है। दो बैंकरों ने भी कहा कि पूरी तरह समर्थित सॉवरेन गारंटी स्कीम में भी सरकार से पैसा हासिल करना उतना आसान नहीं है।

एक सरकारी बैंक के पूर्व कॉर्पोरेट प्रमुख ने कहा, ऐसे अनुभव बुरे होते हैं। उन्होंने कहा कि आप इनमें से अधिकांश व्यवसाइयों को केवल इसलिए लोन देते हैं क्योंकि सरकार ने निर्देश दिया है। लेकिन जब पैसे वापस पाने की बात आती है, तो उसके लिए काफी संसाधन और समय खर्च करना पड़ता है।

व्यवसायों को पीछे ढकेल दिया गया है क्योंकि उनके सप्लायर्स ने भुगतान नहीं किया है। नए आर्डर जीरो हो गए हैं जबकि बिजली, मजदूरी, और पहले लिए गए लोन के किश्तों ने बची खुची जमा पूंजी को भी खत्म कर दिया है।

उत्पादन क्षमता के 25 फीसदी से अपनी फैक्ट्री चला रहे मेरठ के गारमेंट निर्माता संजीव रस्तोगी ने कहा कि हमें सरकार से एक रुपए की भी राहत नहीं मिली है।

रस्तोगी को पिछले दो महीनों में साढ़े तीन लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है और उनका मानना है कि उन्हें अगले तीन महीनों में अपना कारोबार बंद करना पड़ सकता है। इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन के मेरठ चैप्टर के अध्यक्ष अनुराग अग्रवाल ने कहा कि मेरठ में 10 हजार से अधिक टेक्सटाइल इकाइयों में से करीब 25 फीसदी छोटी फैक्ट्रियां अगले कुछ महीनों में बैंक लोन को बंद और डिफॉल्ट कर सकती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *