एडीजी को विकास दूबे की गिरफ्तारी जब तक नहीं हो तब तक कानपुर में ही रहना होगा

मुंबई- मुख्यमंत्री ने एडीजी क़ानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार को तब तक कानपुर में ही रहने को कहा है जब तक कि विकास दुबे पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ जाते।

विभूति नारायण राय ही नहीं बल्कि राज्य में तैनात कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अब तक इस तरह की कार्रवाई नहीं देखी है।

क़ानूनी जानकारों की राय में इसे कहीं से भी विधिक कार्रवाई नहीं कहा जा सकता है। जानकारों के मुताबिक एक प्रोसीजर ऑफ़ क्राइम होता है। प्रतिबंधित सामान कहीं पाया जाता है जैसे नार्कोटिक्स इत्यादि के मामलों में तो उसे कोर्ट के आदेश के बाद नष्ट किया जाता है लेकिन बदले की भावना से काम करने को क़ानून नहीं कहता, भले ही कितने दुर्दांत तरीक़े से अपराध किया गया हो।

कानपुर ज़िला प्रशासन की इस कार्रवाई का उन्हें कोई लीगल ग्राउंड नहीं दिखता है।वो कहते हैं, “क़ानूनी प्रक्रिया यह है कि गिरफ़्तार करिए, संपत्ति का नुक़सान किया है तो उसकी वसूली करिए लेकिन संपत्ति को डैमेज करने या नष्ट करने का अधिकार क़ानून नहीं देता है। हिन्दुस्तान में कोई भी प्रक्रिया अवैधानिक नहीं हो सकती है।

शनिवार को कानपुर ज़िला प्रशासन की एक टीम ने बिकरू गांव पहुंचकर विकास दुबे के क़िलेनुमा घर को गिरा दिया था। मकान को जमींदोज करने के साथ ही विकास की लग्ज़री कारों को भी जेसीबी से पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसके साथ ही ट्रैक्टर और अन्य वाहनों के साथ मकान की एक-एक चीज़ को नष्ट कर दिया गया। बताया जा रहा है कि कानपुर के बाद अब लखनऊ स्थित विकास दुबे के घर को भी ध्वस्त करने की तैयारी हो रही है।

कानपुर के बिकरू गांव वाले घर में विकास दुबे के पिता और उनके एक घरेलू नौकर का परिवार रहता है। विकास दुबे के पिता और नौकर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और नौकर की पत्नी अपने दो बच्चों के साथ किसी दूसरी जगह चली गई है।

दरअसल, अपनी नाकामी को छिपाने के लिए उसे ऐसे रास्ते ज़्यादा मुफ़ीद लगते हैं जिनकी आम जनता में चर्चा होती रहे। विकास दुबे ने जो नरसंहार किया है, उसका साथ देने वाले कौन हैं, यह बताने की बजाय मुद्दों से भटकाया जा रहा है। दरअसल, सस्ती लोकप्रियता बटोरने का उपक्रम है और सरकार हर मामले में ऐसा ही कर रही है।

चूंकि यह सरकार भयमुक्त प्रदेश, ज़ीरो टॉलरेंस जैसे नारों के साथ आई थी और मुख्यमंत्री ने अपनी वही छवि गढ़ने की कोशिश की। वह छवि लगातार खंडित हो रही है। मकान गिराने की घटनाएं एकाध बार हुई हैं लेकिन वो तब जबकि अवैध बना हुआ हो। ऐसी घटना तो नहीं हुई है कभी मेरी जानकारी में कि बिना किसी अदालती आदेश के, बिना किसी विधिक प्रक्रिया के किसी का मकान गिरा दिया जाए।

कुर्की की भी एक प्रक्रिया है और उसके तहत भी मकान गिराया नहीं जाता है सिर्फ़ संपत्ति ज़ब्त की जाती है और अभियुक्त की हाज़िरी के बाद उसकी अपील पर संपत्ति वापस भी हो सकती है। “क्रिमिनल प्रोसीजर कोड यानी सीआरपीसी में कुर्की का प्रावधान है जिसका मक़सद किसी अभियुक्त को कोर्ट में लाने के लिए बाध्य करना है। इसके तहत पहले अभियुक्त को सीधे सम्मन भेजा जाता है, यदि समन नहीं फॉलो किया गया तो पुलिस के माध्यम से वारंट जारी किया जाता है और उसके बाद कुर्की यानी 82-83 की जाती है. इसमें यह ऐलान किया जाता है कि आप कोर्ट में प्रस्तुत हों नहीं तो संपत्ति की कुर्की होगी।

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